ब्रजावली भाषा
ब्रजावली (असमिया : ব্ৰজাৱলী) एक साहित्यिक भाषा थी जिसका उपयोग शंकरदेव ने अपने बरगीतों एवं अंकिया नाट की रचना के लिए किया था। यद्यपि वैष्णव धर्म के सन्दर्भ में उड़ीसा में तथा बंगाल में इसी प्रकार की भाषाएँ प्रयुक्त होतीं थीं, किन्तु ब्रजावली उनसे इस दृष्टि से अलग थी कि यह मैथिली भाषा पर आधारित थी (ब्रजभाषा पर नहीं)। इसके अलावा ब्रजावली में असमिय और पश्चिमी हिन्दी के भी कुछ छीटे थे। [1]
ब्रजावली | |
---|---|
ব্ৰজাৱলী | |
बोलने का स्थान | भारत |
विलुप्त | unknown |
भाषा परिवार |
भारोपीय
|
लिपि | असमिया |
भाषा कोड | |
आइएसओ 639-3 | कोई नहीं |
इन्हें भी देखें
संपादित करें- ब्रजबुलि - एक अन्य साहित्यिक भाषा, जो मैथिली भाषा पर आधरित थी।
टिप्पणियाँ
संपादित करें- ↑ 'The Brajabuli idiom developed in Orissa and Bengal also. But as Dr Sukumar Sen has pointed out "Assamese Brajabuli seems to have developed through direct connection with Mithila" (A History of Brajabuli Literature, Calcutta, 1931 p1). This artificial dialect had Maithili as its basis to which Assamese and a sprinkling of Western Hindi was added.' (Neog 1980, p. 257f)
सन्दर्भ
संपादित करें- Neog, Maheshwar (1980). Early History of the Vaishnava Faith and Movement in Assam. Delhi: Motilal Banarasidass.