ब्लैक-रम्प्ड फ्लेमबैक

ब्लैक-रम्प्ड फ्लेमबैक अथवा लेस्सर गोल्डेन-बैक्ड कठफोड़वा (डाईनोपियम बेंग्हालेंस) दक्षिण-एशिया में विस्तृत रूप से पाया जाने वाला कठफोड़वा है। यह शहरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले कुछ कठफोड़वों में से एक है। यह काली गर्दन तथा काली दुम वाला एकमात्र सुनहरी पीठ वाला कठफोड़वा है।[2]

Black-rumped Flameback
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Animalia
संघ: Chordata
वर्ग: Aves
गण: Piciformes
कुल: Picidae
वंश: Dinopium
जाति: D. benghalense
द्विपद नाम
Dinopium benghalense
(Linnaeus, 1758)
Subspecies
  • dilutum (Edward Blyth, 1852)
    (Pakistan and northwest India)
  • benghalense (Linnaeus, 1758)
    (northern India to Assam and Myanmar)
  • puncticolle (Malherbe, 1845)
    (peninsular India, northern Sri Lanka)
  • psarodes (A. A. H. Lichtenstein, 1793)
    (southern Sri Lanka)
पर्यायवाची

Brachypternus benghalensis
Brachypternus aurantius

 
मनोनीत जाति कोलकाता, भारत.

26-29 सेंमी की लम्बाई के साथ ब्लैक-रम्प्ड फ्लेमबैक एक बड़ी प्रजाति है। इसका आकर विशिष्ट कठफोड़वा की तरह ही होता है, तथा पंखों के घने हिस्से जो कि सुनहरे होते हैं, विशेष दिखते हैं। ग्रेटर फ्लेमबैक से अलग, इसकी दुम काली होती है, लाल नहीं. शरीर के निचले हिस्से सफ़ेद होते हैं जिनमें गहरे रंग की पट्टियां होती हैं। गर्दन काली होती है जिसमें सफ़ेद रंग की महीन धारियां होती हैं, जिनसे यह भारतीय क्षेत्र में पाए जाने वाले किसी भी अन्य सुनहरी पीठ वाले कठफोड़वे से अलग पहचाना जा सकता है। इसका सिर सफ़ेद होता है, गर्दन के पीछे का भाग तथा गला काला होता है, आंख का हिस्सा धूसर होता है। ग्रेटर फ्लेमबैक (क्राइसोकोलेप्टेस ल्युसिदस) के विपरीत इसकी मूछों के स्थान पर गहरे रंग की धारियां नहीं होती हैं।[2][3]

वयस्क नर ब्लैक-रम्प्ड फ्लेमबैक के लाल रंग के मुकुट तथा क्रेस्ट होते हैं। मादाओं में सफ़ेद धब्बों के साथ काला फोरक्राउन होता है जो की सिर्फ पीछे वाले क्रेस्ट पर लाल होता है। युवा पक्षी मादाओं जैसे ही होते हैं परन्तु उनका रंग कुछ कम चटख होता है।[2]

कठफोड़वा की अन्य प्रजातियों की तरह ही, इस प्रजाति में भी सीधी नोक वाली चोंच होती है, एक कड़ी पूंछ जो की पेड़ की डालियों पर सहारा प्रदान करती है, तथा इनमें भी ज़ाईगोडैक्टाइल पांव होते हैं, जिनमें दो सिरे आगे की ओर तथा दो पीछे की ओर होते हैं। कीड़ों को पकड़ने के लिए लंबी जीभ को तेज़ी से आगे फेंका जा सकता है।[4]

इन पक्षियों में ल्युसिज्म (त्वचा अथवा बालों में रंजक की कमी) भी देखा गया है।[5] उत्तरी पश्चिमी घाट से नर पक्षियों के दो नमूनों में मलार क्षेत्र के पंखों के किनारे लाल रंग के देखे गए हैं, जिससे कि मलार पत्तियों का निर्माण होता है। लखनऊ से प्राप्त के नमूने में एक मादा की चोंच असामान्य रूप से बढ़ कर नीचे की तरफ आकर हूपू जैसी दिखने लगी.[6]

उप-प्रजातियां

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गंगा के मैदानों में पायी गयी इसी प्रजाति की तुलना में उत्तर पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के शुष्क क्षेत्रों में पायी जाने वाली प्रजाति, डाईल्यूटम, में पीले रंग का ऊपरी हिस्सा, एक लम्बी क्रेस्ट तथा सफ़ेद सा नीचे का भाग पाया जाता है। ऊपरी भाग में कम चकत्ते होते हैं। वे पुराने तथा गांठदार टैमेरिस्क, अकासिया, तथा डालबर्गिया की शाखों में प्रजनन करना पसंद करते हैं। इस प्रजाति की आबादी भारत भर में 1000 मीटर तक की कम ऊंचाई पर मिलती है। दक्षिणी प्रायद्वीपीय रूप पंक्टीकोल की गर्दन छोटे सफ़ेद तिकोनाकर चकत्तों के साथ काली होती है तथा ऊपरी भाग उज्ज्वल सुनहरा-पीला होता है। पश्चिमी घाट में मिलने वाली उप-प्रजातियों को कभी-कभी तहमीने (सालिम अली की पत्नी का नाम) के रूप में अलग वर्गीकृत किया जाता है, ऊपर से ये जैतूनी रंग वाली होती हैं, गाली गर्दन पर सफ़ेद चकत्ते होते हैं तथा पंखों के निचले बाग़ पर पर ये चकत्ते नहीं दिखते है। दक्षिणी श्रीलंका की उप-प्रजाति डी.बी. सैरोड्स की पीठ गहरे लाल रंग की तथा गहरे रंग के निशान और अधिक गहरे तथा स्पष्ट होते हैं। यह छोटी चोंच वाली श्रीलंका की प्रजाति जैफनेन्स के साथ संकरण करती है।[2] श्रीलंका की प्रजाति सैरोड्स को कभी-कभी एक अलग प्रजाति माना जाता है, हालांकि इसे पुत्तालम, केकिरावा तथा त्रिंकोमाली में जैफनेन्स के साथ इंटरग्रेड करने वाला माना जाता है।[7]

वितरण और आवास

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यह फ्लेमबैक पाकिस्तान, भारत, हिमालय के दक्षिणी तथा पूर्वी भाग जो कि पश्चिमी असम घाटी तथा मेघालय तक है, बांग्लादेश तथा श्रीलंका के 1200 मीटर तक की ऊंचाई के मैदानों में पाए जाती हैं। ये खुले वनों तथा तथा कृषि से सम्बन्ध रखती हैं। वे अक्सर शहरी क्षेत्रों में लकड़ी के आवासों में देखे जाते हैं।[4] कच्छ और राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में इसका पाया जाना दुर्लभ है।[8]

व्यवहार और पारिस्थितिकी

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एक मादा

इस प्रजाति को अक्सर जोड़े अथवा छोटे समूहों में देखा जाता है, कई बार यह मिश्रित-प्रजातियों के चारा खोजने वाले झुण्ड में भी दिखते हैं।[9] वे चारा ढूंढने के लिए जमीन से शिखरों तक जाते हैं। ये कीड़े खाते हैं, मुख्य रूप से बीटल के लार्वा, दीमक के छत्तों पर भी धावा करते हैं तथा कभी-कभी नेक्टर भी पीते हैं।[10][11] शाखाओं के आस-पास वे कूद कर गतिविधि करते हुए वे अपने को खिकारियों से छिपाए रखते हैं।[12] वे मानव निर्मित आवासों में कृत्रिम निर्माण को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं,[13] गिरे हुए फलों[14] तथा अवशिष्ट भोजन को भी खा लेते हैं।[15]

प्रजनन का समय मौसम के साथ बदलता रहता है और फरवरी से जुलाई के बीच होता है। प्रजनन के मौसम के दौरान वे अक्सर ध्वनियां निकालते हैं।[16] घोंसला बनाने के लिए पक्षियों द्वारा टनों को खोदा जाता है तथा इसका प्रवेश-द्वार क्षैतिज होता है जो कि अन्दर के खोह जैसा बन जाता है। कभी-कभी ये पक्षी अन्य पक्षियों का घोंसला हड़प लेते हैं।[17] घोंसले में छोर पर अक्सर कीचड़ भी लगाया जाता है।[18] अंडे खोह के अंदर दिए जाते हैं। सामान्य रूप से तीन अंडे दिए जाते हैं जो कि लम्बे आकार के तथा चमकदार सफ़ेद होते हैं।[4][19] अंडे 11 दिनों के ऊष्मायन के बाद फूटते हैं। बच्चे लगभग 20 दिनों तक घोंसले में रहने के बाद चले जाते हैं।[20]

संस्कृति में

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श्रीलंका में इस कठफोड़वे को सिंहली भाषा में केराला (kæralaa) के नाम से जाना जाता है। द्वीप के कुछ हिस्सों में इसे कोट्टोरुवा भी कहा जाता है, हालांकि यह संबोधन बसंत (barbet) के लिए अधिक प्रयुक्त होता है।[21] यह पक्षी श्रीलंका में 4.50 रुपये की डाक-टिकट पर बना होता है।[22] बांग्लादेश में भी यह 3.75 टका के डाक-टिकट में मुद्रित होता है।

  1. BirdLife International (2009). Dinopium benghalense. 2008 संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची. IUCN 2008. Retrieved on 30 दिसम्बर 2009.
  2. Rasmussen, PC & JC Anderton (2005). Birds of South Asia: The Ripley Guide. Volume 2. Smithsonian Institution and Lynx Edicions. पृ॰ 289.
  3. Blanford, WT (1895). The Fauna of British India. Birds. Volume 3. Taylor and Francis, London. पपृ॰ 58–60. मूल से 5 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  4. Whistler, Hugh (1949). Popular handbook of Indian birds (4 संस्करण). Gurney and Jackson, London. पपृ॰ 285–287. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1406745766. मूल से 29 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  5. Khacher,Lavkumar (1989). "An interesting colour phase of the Lesser Goldenbacked Woodpecker (Dinopium benghalense)". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 86 (1): 97.
  6. Goodwin, Derek (1973). "Notes on woodpeckers (Picidae)". Bulletin of the British Museum (Natural History). 17 (1): 1–44. मूल से 10 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  7. Ali S & Ripley SD (1983). Handbook of the Birds of India and Pakistan. Volume 4 (2 संस्करण). New Delhi: Oxford University Press. पपृ॰ 196–201.
  8. Himmatsinhji,MK (1979). "Unexpected occurrence of the Goldenbacked Woodpecker Dinopium benghalense (Linnaeus) in Kutch". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 76 (3): 514–515.
  9. Kotagama, SW & E Goodale (2004). "The composition and spatial organisation of mixedspecies flocks in a Sri Lankan rainforest" (PDF). Forktail. 20: 63–70. मूल (PDF) से 10 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  10. Chakravarthy,AK (1988). "Predation of Goldenbacked Woodpecker, Dinopium benghalense (Linn.) on Cardamom Shoot-and-Fruit Borer, Dichocrocis punctiferalis (Guene)". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 85 (2): 427–428.
  11. Balasubramanian,P (1992). "Southern Goldenbacked Woodpecker Dinopium benghalense feeding on the nectar of Banana Tree Musa paradisiaca". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 89 (2): 254.
  12. Nair, Manoj V (1995). "Unusual escape behaviour in Goldenbacked Woodpecker Dinopium benghalense (Linn.)". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 92 (1): 122.
  13. Rajan,S Alagar (1992). "Unusual foraging site of Goldenbacked Woodpecker Dinopium benghalense (Linn.)". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 89 (3): 374.
  14. Nameer, PO (1992). "An unusual get together between a squirrel and a woodpecker". Newsletter for Birdwatchers. 32 (3&4): 9–10. मूल से 10 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  15. Mukherjee,A (1998). "Lesser Goldenbacked Woodpecker and Koel feeding on cooked rice". Newsl. for Birdwatchers. 38 (4): 70. मूल से 10 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  16. Neelakantan,KK (1962). "Drumming by, and an instance of homo-sexual behaviour in, the Lesser Goldenbacked Woodpecker (Dinopium benghalense)". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 59 (1): 288–290.
  17. Santharam,V (1998). "Nest usurpation in Woodpeckers". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 95 (2): 344–345.
  18. Singh,Thakur Dalip (1996). "First record of the Lesser Golden Backed Woodpecker nesting in an earthen wall". Newsl. for Birdwatchers. 36 (6): 111. मूल से 9 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  19. Hume, AO (1890). The nests and eggs of Indian birds. Volume 2 (2 संस्करण). R H Porter, London. पपृ॰ 309–311. मूल से 8 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  20. Osmaston, BB (1922). "Woodpecker occupying nesting box". J. Bombay Nat. Hist. Soc. 28 (4): 1137–1138.
  21. Anonymous (1998). "Vernacular Names of the Birds of the Indian Subcontinent" (PDF). Buceros. 3 (1): 53–109. मूल (PDF) से 1 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.
  22. "संग्रहीत प्रति". मूल से 6 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2011.

बाहरी कड़ियाँ

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