भगवानदास मोरवाल
भगवानदास मोरवाल : जन्म 23 जनवरी, 1960 नगीना, मेवात (हरियाणा) में जन्मे भारत के सुप्रसिद्ध कहानी व उपन्यास लेखक हैं। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल की। उन्हें पत्रकारिता में डिप्लोमा भी हासिल है। दिल्ली हिन्दी अकादमी के सम्मानों के अतिरिक्त मोरवाल को बहुत से अन्य सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनके लेखन में मेवात क्षेत्र की ग्रामीण समस्याएं उभर कर सामने आती हैं। उनके पात्र हिन्दू-मुस्लिम सभ्यता के गंगा जमुनी किरदार होते हैं। कंजरों की जीवन शैली पर आधारित उपन्यास रेत को लेकर उन्हें मेवात में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, किंतु इसके लिए उन्हें 2009 में यू के कथा सम्मान द्वारा सम्मानित भी किया गया है।[1]
भगवानदास मोरवाल | |
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जन्म | २३ जनवरी १९६० मेवात, राजस्थान, भारत |
भाषा | हिन्दी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
विधा | गद्य |
विषय | सामाजिक |
उल्लेखनीय कामs | रेत(उपन्यास) |
भगवानदास मोरवाल द्वारा ग्यारह उपन्यास, अनेक कहानियाँ, कविता संग्रह का सृजन तथा व्यंग्य आदी का संपादन किया है। मोरवाल जी के लेखन में मेवात क्षेत्र की ग्रामीण समस्याएं उभर कर सामने आती हैं। उनके पात्र हिन्दू-मुस्लिम सभ्यता के गंगा जमुनी किरदार होते हैं। मोरवालजी की कुछ प्रमुख औपन्यासिक कृतियां है... काला पहाड़ (1999), बाबल तेरा देस में (2004), रेत (2008), नरक मसीहा (2014), हलाला (2016), सुर बंजारन (2017), वंचना (2019),शकुंतिका (2020), ख़ानज़ादा (2021), मोक्षवन, काँस सभी उपन्यास ।
सन्दर्भ
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