भाई दया सिंह (१६६१–१७०८) १७वीं सदी के भारत में ख़ालसा पंथ की शुरूआत करने वाले प्रथम पाँच सिखों पंज प्यारे में से एक थे। बिचित्र नाटक में, गुरु गोविन्द सिंह ने दयाराम की बहादुरी की भगानी के युद्ध में प्रशंसा की है और महाभारत के द्रोणाचार्य से तुलना की है।[1] उनके नाम का महत्व जीवों के प्रति दया भाव रखना भी है।[2]

भाई दया सिंह

सन्दर्भ संपादित करें

  1. बचितर नाटक, पाठ 8, चौपाई 6 Archived 2011-07-17 at the वेबैक मशीन
  2. "आज सजेगा मुख्य दीवान". दैनिक जागरण. १४ अप्रैल २०१४. मूल से 29 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १६ अप्रैल २०१४.