भाई मणी सिंह
भाई मणी सिंह (भाई मनी सिंघ ;07 अप्रैल 1644 – 14 जून 1738) १८वीं शताब्दी के सिख विद्वान तथा शहीद थे। जब उन्होने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया तो मुगल शासक ने उनके शरीर के सभी जोड़ों से काट-काट कर उनकी हत्या का आदेश दिया।
आदरणीय जत्थेदार भाई मणि सिंह | |
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अकाल तख्त के द्वितीय जथेदार
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पद बहाल 1721–1737 | |
पूर्वा धिकारी | भाई गुरदास |
उत्तरा धिकारी | दरबार सिंह |
जन्म | 07 अप्रैल 1644 अलीपुर राज, मुल्तान (अब पाकिस्तान में) |
मृत्यु | जून 14, 1738 नखास चौक, लाहौर | (उम्र 94 वर्ष) को शहीद हुए
जन्म का नाम | मनि राम |
जीवन संगी | Seeto Kaur |
बच्चे | चितर सिंह भाई बचित्तर सिंह उदय सिंह अनेक सिंह अजब सिंह |
धर्म | सिख धर्म |
भाई मणि सिंह के बचपन का नाम 'मणि राम' था। उनका जन्म अलीपुर उत्तरी में एक राजपूत परिवार मे हुआ था जो सम्प्रति पाकिस्तान के मुजफ्फरगढ़ जिले में है। उनके पिता का नाम माई दास तथा माता का नाम मधरी बाई था। वे गुरु गोबिन्द सिंह के बचपन के साथी थे। १६९९ में जब गुरुजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी तब 'सिख' धर्म निभाने की प्रतिज्ञा ली थी। इसके तुरन्त बाद गुरुजी ने उन्हें अमृतसर जाकर हरमंदिर साहब की व्यवस्था देखने के लिये नियुक्त कर दिया।
इतिहास पढ़ने से पता चलता है कि भाई मणी सिंह के परिवार को गुरुघर से कितना प्यार और लगावा था। भाई मणी सिंह के 12 भाई हुए जिनमें 12 के 12 की शहीदी हुई, 9 पुत्र हुए 9 के 9 पुत्र शहीद। इन्हीं पुत्रों में से एक पुत्र थे भाई बचित्र सिंह जिन्होंने नागणी बरछे से हाथी का मुकाबला किया था। दूसरा पुत्र उदय सिंह जो केसरी चंद का सिर काट कर लाया था। 14 पौत्र भी शहीद, भाई मनी सिंह जी के 13 भतीजे शहीद और 9 चाचा शहीद जिन्होंने छठे पातशाह की पुत्री बीबी वीरो जी की शादी के समय जब फौजों ने हमला कर दिया तो लोहगढ़ के स्थान पर जिस सिक्ख ने शाही काजी का मुकाबला करके मौत के घाट उतारा वो कौन था, वे मनी सिंह जी के दादा जी थे। दादा के 5 भाई भी थे जिन्होंने ने भी शहीदी दी। [1]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "भाई मनी सिंह जी की शहीदी". मूल से 10 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 मई 2019.