भारतीय विधिज्ञ परिषद

भारत सरकार का एक संगठन

भारतीय विधिज्ञ परिषद (अंग्रेज़ी: Bar Council of India) भारत की एक व्यावसायिक विनियामक संस्था है जो भारत में विधिक व्यवसाय एवं विधिक शिक्षा का नियमन करती है। यह एक स्वायत्त संस्था है। यही परिषद व्यावसायिक आचरण एवं शिष्टाचार एवं विधि शिक्षा के मानक तय करती है। अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 4 के अंतर्गत भारतीय विधिज्ञ परिषद का गठन किया जाता है।

भारतीय विधिज्ञ परिषद
Bar Council of India
चित्र:Bar council of India logo.jpg
Statutory body अवलोकन
गठन 1961
मुख्यालय नई दिल्ली
Statutory body कार्यपालक मनन कुमार मिश्र, अध्यक्ष
एस॰ एल॰ भोजेगौड़ा, उपाध्यक्ष
वेबसाइट
barcouncilofindia.org

इसकी स्थापना 1961 में हुई थी।[1] इसके पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार सेन रहे हैं, जो भारतीय विधि क्षेत्र के प्रख्यात थे।

अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 4 के अन्तर्गत भारतीय विधिज्ञ परिषद का गठन किया जाता है। यह धारा बहुत महत्वपूर्ण धारा है जो समस्त भारत में अधिवक्ताओं के नियमन के लिए एक परिषद का गठन करती है।

अधीनस्थ संस्थान
  • क्षेत्रीय विधिज्ञ परिषदें
  • विधि महाविद्यालय
  • विधि संस्थान
  • भारतीय विधिज्ञ परिषद, भारतीय विधि व्यवसाय (वकालत) को विनियमित तथा प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत बनाया गया एक सांविधिक निकाय है।
  • यह संस्था अधिवक्ताओं के लिये पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों को तय करती है तथा अपने अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके विनियमन करती है।
  • यह संस्था कानूनी शिक्षा के मानक तय करती है तथा ऐसे विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करती है जिनके द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी डिग्री एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये योग्य होती है।
  • यह संस्था अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और उनके हितों की रक्षा करती है तथा उनके लिये प्रारंभ की गई कल्याणकारी योजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये कोष का सृजन करती है।
 
भारतीय विधिज्ञ परिषद kaa स्वर्ण जयन्ती समारोह

अधिकार एवं शक्तियाँ

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इस परिषद के अपने अधिकार एवं शक्तियां है।भारतीय विधिज्ञ परिषद के अन्तर्गत अनुशासन समिति भी बनायी जाती है जो एक न्यायालय की सम्पूर्ण शक्तियां रखती है जैसे-

  • किसी भी व्यक्ति को समन करना और एवं उसे हाजिर कराना एवं शपथ पर उसकी परीक्षा कराना,
  • किन्हीं दस्तावेजों को पेश कराने की अपेक्षा करना,
  • शपथपत्र पर सबूत लेना,
  • किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख की प्रतिलिपि प्राप्त करने की अपेक्षा करना,
  • भारतीय विधिज्ञ परिषद के अन्तर्गत ही समस्त भारत के राज्यक्षेत्रों के लिए राज्य विधिज्ञ परिषद का गठन किया जाता है।

भारतीय विधिज्ञ परिषद के सदस्य

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अधिवक्ता अधिनियम की धारा 4 सदस्यों का भी वर्णन करती है। इस धारा के अन्तर्गत निम्न लोगों को परिषद का सदस्य बताया गया है-

  • (१) भारत का महान्यायवादी (पदेन)
  • (२) भारत का महा सॉलिसिटर (पदेन)
  • (३) प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद के सदस्यों में से निर्वाचित सदस्य।

राज्य विधिज्ञ परिषद

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अधिनियम की धारा 3 राज्य विधिज्ञ परिषदों का गठन करती है। यह धारा भारत के समस्त राज्य क्षेत्रो का उल्लेख करती है जिन राज्यों में विधिज्ञ परिषद का गठन किया जाएगा।यह परिषद अधिवक्ताओं की सूची रखती है तथा नवीन अधिवक्ता का नामांकन करती है।यह अपने रजिस्टर के माध्यम से अधिवक्ता नामांकन का रख रखाव करती है। इसे परिषद के सम्बन्ध में नियम बनाने की शक्तियां प्राप्त हैं।

अनुशासन समितियाँ

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अधिवक्ता अधिनियम के अन्तर्गत ही अनुशासन समिति का गठन किया गया है।यह समितियां वकीलों की निगरानी का कार्य करती है।कोई भी व्यक्ति इन समितियों को वकीलों की शिकायत कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय में वकीलों के निम्न दुराचारों को शिकायत के योग्य माना गया है-

(1) बिना उचित प्रमाण-पत्र के विधि व्यवसाय करना,

(2) न्यायालय में बिना उचित कारण अनुपस्थित होना और प्रकरण को स्थगित करना,

(3) मामले के विषय में मवक्किल के निर्देश के बिना कार्यवाही करना,

(4) कूटरचित शपथ-पत्र अथवा दस्तावेज प्रस्तुत करना और शपथ अधिनियम 1969 में दिये गये वैधानिक कर्त्तव्य की अवहेलना करना। (ए.आई.आर. 1985 सुप्रीम कोर्ट 287)

(5) अधिवक्ता द्वारा बार-बार न्यायालय की अवमानना करना,

(6) न्यायाधीश से अपने संबधों की जानकारी देकर मुवक्किल से राशि वसूल करना,

(7) न्यास भंग करना,

(8) अपने मुवक्किल को नुकसान पहुंचाने का कृत्य करना,

(9) विधि व्यवसाय के साथ अन्य व्यवसाय करना,

(10) मामले से संबंधित प्रापर्टी का क्रय करना,

(11) लीगल एड प्रकरणों में फीस की मांग करना,

(12) मामले से संबंधित सच्चाई को छुपाना,

(13) वकालत नामा प्रस्तुत करने के पूर्व तय की गई फीस के अतिरिक्त फीस की मांग करना और न्यायालय के आदेश पर प्राप्त रकम में शेयर की मांग करना,

(14) लोकपद का दुरूपयोग करना,

(15) मुवक्किल से न्यायालय में जमा करने हेतु प्राप्त रकम जमा न करना,

(16) रिकार्ड एवं साक्ष्य को बिगाड़ना एवं साथी को तोड़ना,

(17) मुवक्किल द्वारा अपनी केस फाईल वापस मांगने पर फाईल वापस न करना और फीस की मांग करना (सुप्रीम कोर्ट 2000(1) मनिसा नोट 27 पेज 183 सुप्रीम कोर्ट)

(18) अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24 के अन्तर्गत अपात्र व्यक्ति द्वारा विधि व्यवसाय करना। (ए.आई.आर. 1997 सुप्रीम कोर्ट 864)

विज्ञापन प्रतिबंधित करने वाले प्रावधान

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भारतीय विधिज्ञ परिषद के नियम 36 में कहा गया है कि भारतीय कानून फर्म और वकीलों को ऑफलाइन या ऑनलाइन दोनों तरह से अपना विज्ञापन करने/देने की अनुमति नहीं है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के नियम 36 में यह कहा गया है कि भारत में वकील, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिपत्रों, विज्ञापनों, व्यक्तिगत संचार या साक्षात्कारों के माध्यम से या अखबारों में टिप्पणियों या तस्वीरों को प्रस्तुत करने या प्रेरित करने के माध्यम से काम मांग या अपना विज्ञापन नहीं कर सकते हैं।

नियम यह भी कहता है कि एक वकील के नाम की साइनबोर्ड या नेम-प्लेट, एक उचित आकार की होनी चाहिए और इनके जरिये यह इंगित नहीं किया जाना चाहिए कि वह वकील, बार काउंसिल के अध्यक्ष या सदस्य हैं, या किसी एसोसिएशन के सदस्य हैं या वह किसी व्यक्ति या संगठन से जुड़े हैं या वह न्यायाधीश या महाधिवक्ता रहे हैं।

हालाँकि, परिषद ने नियम 36 में संशोधन करने हेतु वर्ष 2008 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके अन्तर्गत वकीलों को अपनी वेबसाइट पर, अपना नाम, पता, टेलीफोन नंबर, ईमेल आईडी, व्यावसायिक और शैक्षणिक योग्यता, नामांकन और अपने प्रैक्टिस क्षेत्र से संबंधित जानकारी प्रस्तुत करने की अनुमति दे दी गयी है। यह जानकारी प्रदान करने वाले कानूनी पेशेवरों को यह घोषणा भी करनी होती है कि उन्होंने पूर्ण रूप से वास्तविक जानकारी प्रस्तुत की है।[2]

अनुशासन समिति के निर्णय के विरुद्ध भारतीय विधिज्ञ परिषद में अपील किया जा सकता है। राज्य विधिज्ञ परिषद की समिति के निर्णय से आहत व्यक्ति भारतीय विधिज्ञ परिषद को निर्णय की संसूचना से साठ दिन के भीतर अपील कर सकता है।भारतीय विधिज्ञ परिषद के निर्णय से व्यथित व्यक्ति भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संसूचना से साठ दिन के भीतर अपील कर सकता है

बाहरी कड़ियाँ

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