भारत का लैंगिक इतिहास

सनातन धर्म में काम को चार पुरुषार्थों में स्थान प्राप्त है। सेक्स के इतिहास में भारत की भूमिका अति महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में ही पहले ऐसे ग्रन्थ (कामसूत्र ) की रचना हुई जिसमें संभोग को विज्ञान के रूप में देखा गया। यह भी कहा जा सकता है कि कला और साहित्य के माध्यम से यौन शिक्षा का अग्रदूत भारत ही था।

खजुराहो में अप्सराओं का चित्रण
शतायुर्वै पुरुषो विभज्य कालम् अन्योन्य अनुबद्धं परस्परस्य अनुपघातकं त्रिवर्गं सेवेत। (कामसूत्र १.२.१)
बाल्ये विद्याग्रहणादीन् अर्थान् (कामसूत्र १.२.२)
कामं च यौवने (१.२.३)
स्थाविरे धर्मं मोक्षं च (१.२.४)
पुरुष को सौ वर्ष की आयु को तीन भागों में बाँटकर बाल्यकाल में विद्या और अर्थ का अर्जन करना चाहिये, काम यौवन में तथा बुढ़ापे में धर्म और मोक्ष का अर्जन करना चाहिये।

इसी प्रकार,

एषां समवाये पूर्वः पूर्वो गरीयान (कामसूत्र, १.२.१४)
अर्थश्च राज्ञः/ तन्मूलत्वाल् लोकयात्रायाः/ वेश्यायाश् चैति त्रिवर्गप्रतिपत्तिः (कामसूत्र १.२.१५)
(सामान्य लोगों के लिये) धर्म, अर्थ से श्रेष्ठ है ; अर्थ, काम से श्रेष्ठ है। लेकिन राजा को अर्थ को प्राथमिकता देनी चाहिये क्योंकि अर्थ ही लोकयात्रा का आधार है। वेश्याओं के लिये इनके महत्व का क्रम उल्टा है (काम सबसे श्रेष्ठ है, फिर अर्थ है, और सबसे अन्त में धर्म)।

इन्हें भी देखें संपादित करें