भारत के सर्वोच्च न्यायालय का कॉलेजियम
कॉलेजियम प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों वकीलों की नियुक्ति/उन्नयन और उच्च न्यायालयों और शीर्ष अदालतों के न्यायाधीशों के स्थानांतरण का निर्णय भारत के मुख्य मुख्य न्यायाधीश (CJI) और सर्वोच्च सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के एक मंच द्वारा किया जाता है ।[1] यानि ये भारत के चीफ़ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों का एक समूह है। ये पाँच लोग मिलकर तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में कौन जज होगा। कॉलेजियम संवैधानिक संस्था नही है और ना ही वैधानिक है , अपितु इसकी स्थापना सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के माध्यम से हुई है। भारत के मूल संविधान या क्रमिक संशोधनों मे कॉलेजियम का कोई उल्लेख नहीं है। जजों की नियुक्ति करने की यह पूरी प्रक्रिया असंवैधानिक है। जज चुने जाने की प्रक्रिया में भयंकर वंशवाद है या भाई भतीजावाद है जिसे न्यायपालिका में 'अंकल कल्चर' कहते है, यानी ऐसे लोगों को जज चुने जाने की संभावना ज़्यादा होती है जिनकी जान-पहचान के लोग पहले से ही न्यायपालिका में ऊँचे पदों पर हैं। हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति भी कॉलेजियम की सलाह से होती है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और राज्य के राज्यपाल शामिल होते हैं। कॉलेजियम बहुत पुराना सिस्टम नहीं है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली " तीन न्यायाधीशों के केस " के माध्यम से पैदा हुई थी , जिसने 28 अक्टूबर , 1998 को संवैधानिक अनुच्छेदों की व्याख्या की थी ।[1][2][3][4]
इतिहास एवं अन्य
संपादित करेंभारत के संविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है. इस अनुच्छेद के अनुसार “राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से, जिनसे परामर्श करना वह आवश्यक समझे, परामर्श करने के पश्चात् उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा.” इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश से जरुर परामर्श किया जाएगा. संविधान में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के सम्बन्ध में अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है. पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किये जाने की परम्परा रही है. हालाँकि संविधान इस पर खामोश है. पर इसके दो अपवाद भी हैं अर्थात् तीन बार वरिष्ठता की परम्परा का पालन नहीं किया गया. एक बार स्वास्थ्यगत कारण व दो बार कुछ राजनीतिक घटनाक्रम के कारण ऐसा किया गया. 6 अक्टूबर, 1993 को एडवोकेट्स ऑन रेकॉर्ड असोसिएसन बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए.
नियुक्ति में कॉलेजियम की व्यवस्था सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को एक कॉलेजियम द्वारा अनुशंसा की जाती है. राष्ट्रपति चाहे तो अनुशंसा को स्वीकार भी कर सकता है अथवा अस्वीकार भी. यदि वह अस्वीकार करता है तो अनुशंसा वापस कॉलेजियम को लौट जाती है. यदि कॉलेजियम द्वारा अपनी अनुशंसा राष्ट्रपति को भेजता है तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकार करना पड़ता है।
कोलेजियमपूर्व काल से वर्तमान तक
संपादित करें- वर्ष 1993 के पहले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं होता था । सब कुछ राष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्रिपरिषद् द्वारा ही किया जाता था ।
- 1970 के दशक में भारत के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण संबंधी मामलों में विचलन को देखते हुए न्यायपालिका की स्वायत्तता के सम्मुख खतरा महसूस होने लगा ।
- उल्लेखनीय है कि 1973 में श्रीमति इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में उच्चतम न्यायालय में तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को नजरअंदाज करते हुए कनिष्ठ न्यायाधीश अजित कुमार राय को उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया था। जिसके फलस्वरूप विरोध में तीनों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया था । इस घटना के बाद न्यायपालिका न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानातरण के संदर्भ में नई व्यवस्था सृजित करने का प्रयास करने लगी ।
- 1981 में प्रथम न्यायाधीश मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश के साथ पूर्ण एवं प्रभावी परामर्श होना चाहिए । परन्तु यहाँ परामर्श का आशय सहमति नहीं , बल्कि विचारों के आदान - प्रदान से है । न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और कुछ अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के परामर्श से होना चाहिए , यहाँ परामर्श से आशय सहमति है । इसके बाद उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कॉलेजियम व्यवस्था प्रभावी हुई , और सरकार की भूमिका प्राथमिक नहीं , बल्कि द्वितीयक हो गई । केन्द्र सरकार उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनाई गई कॉलेजियम की सिफारिश को मानने के लिए बाध्य हो गई । शुरू में कॉलेजियम व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित तीन सदस्य हुआ करते थे , जो मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठता सूची में क्रमश : दूसरे और तीसरे नंबर के होते थे ।
- वर्ष 1998 में उच्चतम न्यायालय ने तृतीय न्यायाधीश मामले में निर्णय देते हुए कहा कि राष्ट्रपति को दिया गया परामर्श बहुसंख्यक न्यायाधीशों का परामर्श माना जाएगा । इस निर्णय के माध्यम से 1998 में ही कॉलेजियम व्यवस्था को 5 सदस्यीय बना दिया गया जिसमें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य चार वरिष्ठ न्यायाधीश सम्मिलित होते हैं । इसके बाद से कॉलेजियम व्यवस्था के माध्यम से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में राष्ट्रपति को सिफारिश की जाने लगी । इसी कॉलेजियम की अनुशंसा पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण भी किया जाता है।
- कॉलेजियम व्यवस्था ही उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नाम का चयन करती है और अपनी अनुशंसा सरकार के पास भेजती है । इसके बाद सरकार कार्यवाही करती है ।
- वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कॉलेजियम व्यवस्था की सिफारिश सरकार के लिए बाध्यकारी है । कॉलेजियम व्यवस्था द्वारा सरकार को न्यायाधीशों के नाम का चयन करके नियुक्ति के लिए भेजा जाता है । सरकार को यह अधिकार है कि वह उसे एक बार पुन : कॉलेजियम व्यवस्था को पुनर्विचार करने के लिए वापस भेज सकती है । सरकार द्वारा पुनर्विचार के लिए वापस भेजे जाने के बाद कॉलेजियम विचार करके पुन : उन्हीं नामों को सरकार के पास भेज देता है , तब ऐसी स्थिति में सरकार स्वीकार करने के लिए बाध्य है । सरकार न चाहते हुए भी उन नामों को अंतिम रूप से स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति को भेजती है , और राष्ट्रपति द्वारा उसे अपनी अंतिम स्वीकृति दी जाती है ।[5]
विवाद
संपादित करेंविवाद की जड़ यह है कि कॉलेजियम सिस्टम न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की राय को महत्व नहीं देता है , और मनमाने तरीके से कार्य करता है । कॉलेजियम व्यवस्था पर भाई - भतीजावाद का भी आरोप लगता रहा है । कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की तरह वर्तमान (एनडीए) सरकार भी असहजता व्यक्त कर चुकी है ।[6]
यूपीए सरकार ने 2012 में कॉलेजियम व्यवस्था में बदलाव करने की पहल की थी । 2014 में सत्ता परिवर्तन होने के बाद नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सरकार 99 वां संविधान संशोधन अधिनियम संसद से पारित कराया । इस अधिनियम में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रावधान किया गया था । वर्ष 2015 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने उक्त संविधान संशोधन को अवैधानिक घोषित कर दिया । कॉलेजियम सिस्टम के संदर्भ में कहा जाता है कि यहां सबसे बड़ी समस्या पारदर्शिता का अत्यधिक अभाव है । वर्तमान में विश्व में कहीं भी ऐसी व्यवस्था नहीं है कि न्यायाधीश ही अपने साथी का चयन करते हों ।[6]
संसद ने एक बहुत ही आवश्यक ऐतिहासिक कदम में इस एनजेएसी के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाला 99वां संवैधानिक संशोधन विधेयक पारित किया था जिसे अभूतपूर्व समर्थन मिला। 13 अगस्त 2014 को, लोकसभा ने सर्वसम्मति से इसके पक्ष में मतदान किया। संविधान के किसी भी प्रावधान को प्रक्रिया के अनुसार परिवर्धन, परिवर्तन या निरस्त करने के माध्यम से संशोधित करने के लिए अपनी संवैधानिक शक्ति का प्रयोग करने के लिए संसद की शक्ति निर्बाध और सर्वोच्च है। लोकतांत्रिक शासन में किसी भी ‘मूल संरचना’ का मूल आधार संसद में परिलक्षित जनादेश की प्रधानता है। संसद संविधान की वास्तुकला का अनन्य और अंतिम निर्धारक है। इतिहास में इस तरह के विकास की कोई तुलना नहीं है, जहां एक विधिवत वैध संवैधानिक अनुज्ञा को न्यायिक रूप से नष्ट कर दिया गया हो। यह संसदीय संप्रभुता के साथ गंभीर समझौते और लोगों के जनादेश की अवहेलना का एक ज्वलंत उदाहरण है। [7]
उल्लेखनीय है कि पूर्व में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश चालेश्वर ने भी एक बार कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली विफल हो गई है । विधि के शासन का सिद्धांत है कि प्रशासनिक कानून का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है , जो विवेक पर नियंत्रण करता है । प्रशासनिक कानून के आधार पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत से विवेक का उपयोग करने वाला कोई भी व्यक्ति जांच के अधीन है , समग्रता की स्थिति को ध्यान में रखते हुए देश में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक नए कानून की आवश्यकता है ।[6]
विगत में कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच काफी मतभेद उत्पन्न हो गया था। कानून मंत्री और उपराष्ट्रपति द्वारा इसको लेकर चिंता व्यक्त कर चुके हैं । विगत कानून मंत्री लगातार कॉलेजियम सिस्टम पर प्रहार कर चुके हैं और इसमें सुधार की बात कर चुके हैं । उनका यह भी कहना है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की इस प्रकार की कोई व्यवस्था किसी भी देश में नहीं है । विश्व के अनेक देशों में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग की नियुक्ति की जा चुकी है ।[6]
दक्षिण अफ्रीका में 25 सदस्यीय दक्षिण अफ्रीकी न्यायिक सेवा आयोग है । इस आयोग द्वारा एक पद के लिए 4 नामों की सिफारिश की जाती है । जिनमें से किसी एक को राष्ट्रपति द्वारा चुना जाता है । दक्षिण अफ्रीका में आयोग की यह संरचना समाज के सभी वर्गों और राजनीतिक समूहों का प्रतिनिधित्व करती है । इसमें कानूनी बिरादरी सहित समाज के सभी क्षेत्रों से उचित प्रतिनिधित्व होता है । किसी भी प्रकार के संघर्ष की संभावना नहीं रहती है । [6]
भारतीय संविधान के तहत, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पास मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और कानून की व्याख्या करने का अधिकार है। संविधान न्यायालयों को कानून बनाने का अधिकार नहीं देता है।[8] किंतु फिर भी न केवल कोलेजियम प्रणाली का कानून सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनाया गया अपितु उसके विकल्प मे पारित संसद के पूर्ण बहुमत प्राप्त कानून को असंवैधानिक घोषित किया गया। यही कोलेजियम संबंधित विवाद है।
संदर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ Agrawal, CA Ashish K. Agrawal & Aditi (2021-12-27). भारत का संविधान - एक परिचय (एक चित्रमय और सारणीबद्ध प्रस्तुति). CA. Ashish K Agrawal. पृ॰ 217.
भारत के मूल संविधान या क्रमिक संशोधनों में कॉलेजियम का कोई उल्लेख नहीं है । न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली " तीन न्यायाधीशों के केस " के माध्यम से पैदा हुई थी , जिसने 28 अक्टूबर , 1998 को संवैधानिक अनुच्छेदों की व्याख्या की थी ।
सीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link) - ↑ Chakra, Sam Samayik Ghatna (2023-04-12). BPSC Mukhya Pariksha Nibandh 2023. Sam Samyik Ghatna Chakra.
- ↑ IAS (AIR-49), Dr Ranjit Kumar Singh (2023-08-24). NCERT Ki Pathshala Bharat Ka Samvidhan Evam Rajvyavastha (Class 6-12): NCERT Ki Pathshala Bharat Ka Samvidhan Evam Rajvyavastha (Class 6-12): Comprehensive Guide to Indian Constitution and Political System. Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5488-706-2.
- ↑ IAS, Sanskriti. "Rethinking the collegium system - Sanskriti IAS". www.sanskritiias.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-11-12.
- ↑ Singh, UdayBhan (2023-07-14). Indian Constitution and Polity Bhartiya Samvidhan Evam Rajvyavastha भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था For Union and State Service Commission Exams 2023 Book In Hindi: Indian Constitution and Polity Bhartiya Samvidhan Evam Rajvyavastha: For Union and State Service Commission Exams 2023 Book in Hindi (ebook). Prabhat Prakashan. पृ॰ 19. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5488-671-3.सीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link)
- ↑ अ आ इ ई उ Singh, UdayBhan (2023-07-14). Indian Constitution and Polity Bhartiya Samvidhan Evam Rajvyavastha भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था For Union and State Service Commission Exams 2023 Book In Hindi: Indian Constitution and Polity Bhartiya Samvidhan Evam Rajvyavastha: For Union and State Service Commission Exams 2023 Book in Hindi. Prabhat Prakashan. पपृ॰ 19–20. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5488-671-3.सीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link)
- ↑ ब्यूरो, पाञ्चजन्य. "कॉलेजियम प्रणाली : मी लॉर्ड का, मी लॉर्ड द्वारा, मी लॉर्ड के लिए". panchjanya.com. अभिगमन तिथि 2024-11-13.
- ↑ "Home: The National Institute of Open Schooling (NIOS)". www.nios.ac.in. अभिगमन तिथि 2024-11-13.