भारत में आपातकाल की स्थिति
आपातकाल सम्पूर्ण देश या फिर किसी भी राज्य की वह असंतुलित स्थिति है जिसमें संवैधानिक और प्रशासनिक संतुलन छिन्न भिन्न हो जाते हैं। भारत के संविधान में राष्ट्रपति की कुछ शक्तियों के बारे में लिखा गया है—कि राष्ट्रपति कब किस तरह की शक्ति का प्रयोग कर सकता है उन्हीं शक्तियों में से एक शक्ति आपातकाल की है। जब सम्पूर्ण देश या किसी राज्य पर अकाल, बाहरी देशों के आक्रमण या आंतरिक प्रशासनिक अव्यवस्थता आदि की स्थिति आती है तो उस समय उस क्षेत्र की सभी राजनैतिक और प्रशासनिक शक्तियाँ राष्ट्रपति के हाथों में चली जाती हैं।
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भारत में आपातकाल की स्थिति
संपादित करेंअब तक भारत में कुल तीन बार आपातकाल लग चुका है जिसमें वर्ष 1962, 1971 तथा 1975 में अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया था।
- पहला उदाहरण 26 अक्टूबर 1962 से 10 जनवरी 1968 के बीच भारत चीन युद्ध के दौरान हुआ था, जब "भारत की सुरक्षा" को "बाहरी आक्रमण से खतरा" घोषित किया गया था।[1] [2]
- दूसरी उदाहरण 3 से 17 दिसंबर 1971 के बीच की है, जो मूल रूप से भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान घोषित की गई थी।
- तीसरी उद्घोषणा इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में राजनीतिक अस्थिरता की विवादास्पद परिस्थितियों में हुई थी, जब "आंतरिक गड़बड़ी" के आधार पर आपातकाल की घोषणा की गई थी। यह उद्घोषणा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले के तुरंत बाद की गई, जिसने 1971 के भारतीय आम चुनाव में रायबरेली से प्रधान मंत्री के चुनाव को रद्द कर दिया। उन्हें अपने पद पर बने रहने की वैधता को चुनौती देते हुए अगले 6 वर्षों तक चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया था। इंदिरा गांधी ने अपना कार्यकाल मजबूत करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करने की सिफारिश की।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ बारी, एम॰ एहतेशामुल (2017). आपातकाल की स्थिति और कानून : बांग्लादेश का अनुभव (अंग्रेज़ी में). रूटलेज. पृ॰ 62–64. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781351685917.
- ↑ ऑस्टिन, ग्रानविले (1999). लोकतांत्रिक संविधान पर कार्य करना : भारत का अनुभव (अंग्रेज़ी में). Oxford University Press. पृ॰ 63–66. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0195648889.