भारत में समलैंगिकता
भारत में समलैंगिकता को कानूनी रूप से अनुमति दी गई है। समलैंगिक लिव-इन सम्बन्ध को भी कानूनी रूप से अनुमति दी गई है।[1] इसके साथ कुछ कानूनी सुरक्षा और अधिकार भी जुड़े हैं। कई समलैंगिक जोड़ों ने पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों से विवाह किया है। हालाँकि, ये विवाह पंजीकृत नहीं होते हैं और जोड़ों को पुरुष-महिला विवाहित जोड़ों के समान सभी अधिकार और लाभ प्राप्त नहीं होते हैं।
भारत में समलैंगिकता के खिलाफ भेदभाव मुख्य रूप से इस्लामी राज्यों और यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान ईसाई-व्युत्पन्न नैतिकता के माध्यम से पश्चिमी दुनिया से आयातित किये गए। इसमें 17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के फ़तवा आलमगीरी और 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य के भारतीय दंड संहिता में इसे गैर-क़ानूनी घोषित करना शामिल हैं।
नौ साल की कानूनी लड़ाई के बाद, भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक हिस्से को 7 सितंबर 2018 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया।[2] इससे समलैंगिक यौन संबंध फिर से वैध हो गए। हालांकि धारा 377 के अन्य हिस्सों को रद्द नहीं किया गया था। दंड संहिता के वे एकमात्र हिस्से थे जिनका इस्तेमाल वयस्कों के समलैंगिक बलात्कार के लिए मुकदमा चलाने के लिए किया जा सकता था। दिसंबर 2023 में भारतीय दंड संहिता के भारतीय न्याय संहिता द्वारा प्रतिस्थापन के साथ समलैंगिक बलात्कार अभी सीधे तौर पर अपराध नहीं है।[3]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने का अधिकार संसद और विधानसभाओं का: सुप्रीम कोर्ट". बीबीसी हिन्दी. 17 अक्टूबर 2023. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2024.
- ↑ "Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह के फैसले को चुनौती, याचिका पर 10 जुलाई को सुनवाई करेगा SC". hindi.moneycontrol.com. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2024.
- ↑ "धारा 377 को बहाल करने की सिफारिश". पंजाब केसरी. 10 नवम्बर 2023. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2024.