भीमादेवी
माता भीमा देवी महाशक्ति जगदंबा शाकम्भरी देवी का ही एक स्वरूप है। माँ भीमा देवी हिमालय और शिवालिक पर्वतों पर तपस्या करने वालों की रक्षा करने वाली देवी है। जब हिमालय पर्वत पर असुरों का अत्याचार बढा तब भक्तों के निवेदन से महामाया ने भीमा देवी का भयानक भयनाशक रूप धारण किया। माँ भीमा देवी का प्रमुख मंदिर हरियाणा राज्य के पिंजौर के समीप स्थित है। माँ भीमा देवी नीले वर्ण वाली और चार भुजाओं मे चंद्रहास नामक तलवार, कपाल और डमरू धारण करती है। माँ भीमा देवी की एक प्रतिमा माँ शाकम्भरी शक्तिपीठ जी के मंदिर मे भी है जो कि सहारनपुर की शिवालिक पर्वमाला मे विराजमान है।दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य के अनुसार-
भीमापि नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा। विशाललोचना नारी वृत्तपीनपयोधरा चन्द्रहासं च डमरुं शिर: पात्रं च बिभ्रती। एकावीरा कालरात्रि: सैवोक्ता कामदा स्तुता। अर्थात: भीमादेवी का वर्ण भी नीला ही है। उनकी दाढें और दाँत चमकते रहते हैं। उनके नेत्र बडे-बडे हैं,माँ का स्वरूप स्त्री का है। वे अपने हाथों में चन्द्रहास नामक खड्ग, डमरू, मस्तक और पानपात्र धारण करती हैं। वे ही एकवीरा, कालरात्रि तथा कामदा कहलाती और इन नामों से प्रशंसित होती हैं। लेखक अनिल कुमार