भूतापीय प्रवणता (Geothermal gradient) पृथ्वी में बढ़ती गहराई के साथ बढ़ते तापमान की प्रवणता (rate) को कहते हैं। भौगोलिक तख़्तों की सीमाओं से दूर और पृथ्वी की सतह के पास, हर किमी गहराई के साथ तापमान लगभग २५° सेंटीग्रेड बढ़ता है।[1]

पृथ्वी के अंदर तापमान - गहराई के साथ तापमान बढ़ता जाता है

गरमी के स्रोत संपादित करें

पृथ्वी के अंदर यह गरमी पृथ्वी के निर्माण-काल में मलबे के टकराव व दबाव से बची ऊर्जा, पृथ्वी के भीतरी भागों में उपस्थित पोटैशियम-४०, यूरेनियम-२३८, यूरेनियम-२३५, थोरियम-२३२ जैसा रेडियोसक्रियता वाले समस्थानिक तत्व से पैदा होने वाली ऊर्जा और अन्य सम्भावित स्रोतों से उत्पन्न होती है।[2] भूवैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी के ठीक केन्द्र में तापमान लगभग ७०००° सेंटीग्रेड और दबाव ३६० गिगापास्कल (यानि सतह पर वायु के दबाव से ३६ लाख गुना) हो सकता है।[3] रेडियोसक्रीय समस्थानिक (आइसोटोप) समय के साथ क्षीण होते जाते है इसलिए वैज्ञानिक यह भी समझते हैं कि यह तापमान पृथ्वी के निर्माण के समय बहुत अधिक रहा होगा और काल के साथ गिरता चला गया है और आगे भी धीरे-धीरे गिरता रहेगा।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  2. Sanders, Robert (2003-12-10). "Radioactive potassium may be major heat source in Earth's core". UC Berkeley News. मूल से 8 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-02-28.
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर