मनिहारी
मनिहारी (Manihari) भारत के बिहार राज्य के कटिहार ज़िले में स्थित एक नगर है।[1][Purnia District Gajjetier by Francis Buchanan 1810-11 1]
मनिहारी Manihari | |
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निर्देशांक: 25°27′04″N 87°15′07″E / 25.451°N 87.252°Eनिर्देशांक: 25°27′04″N 87°15′07″E / 25.451°N 87.252°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | बिहार |
ज़िला | कटिहार ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 26,629 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी, अंगिका |
मिथिलांचल, सीमांचल और पूर्वोत्तर राज्यों की काशी मनिहारी - राष्ट्रीय नदी मां गंगा किनारे अवस्थित मनिहारी नगर भारत में एक अन्तिम नगर है जो सम्पूर्ण मिथिलांंचल, सीमांचल और पूर्वोत्तर राज्यों के साथ हीं साथ चीन, तिब्बत, वर्तमान बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और म्यांमार के हिन्दू सह बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए काशी के समान है, जहां से एक समय नॉर्थ ईस्ट क्वीन एक्सप्रेस जैसी रेलगाड़ियां गुवाहाटी तक चला करती थीं! माघी पूर्णिमा सह गंगा स्नान का जिक्र करते हुए तत्कालीन बंगाल के सर्वे कर्ता श्रीमान फ्रांसिस बुचानन 1810 - 11 के पूर्णियां जिला गजट में लिखते हैं कि उस वर्ष मनिहारी गंगा घाट पर लगभग 4 लाख श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा हुईं थी, जो मनिहारी गंगा घाट के महत्त्व और ऐतिहासिकता का स्वयमेव प्रमाण है जबकि मनिहारी रेलवे 1887 में शुरू हुआ था और उस समय पक्की सड़कें भी नहीं हुआ करती थीं। जहां गोगाबील सामुदायिक पक्षी अभ्यारण्य सह गोखुर झील एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इस राष्ट्रीय नदी मार्ग एक में राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन या सोंस के लिए भागलपुर से मनिहारी तक अभ्यारण्य भी है। सातवीं शताब्दी के विश्व विख्यात चीनी बौद्घ तीर्थ यात्री ह्वेन त्सांग का यात्रा मार्ग भी मनिहारी गंगा घाट होकर हीं कामरूप भ्रमण का रहा है। यहां अर्धनारीश्वर गौरी शंकर मन्दिर, मध्यकालीन हज घर शाही मस्जिद, पीर पहाड़, नीलहा कोठी, 1936 में निर्मित संतमत सत्संग कुटी (महर्षि मेंही जी का ज्ञान प्राप्ति स्थल), 1900 में बना स्वास्थ्य केन्द्र, थाना 333, 1887 में बना रेलवे स्टेशन, 1855 - 56 की लड़ाई पूर्णियां के नवाब शौकत जंग और बंगाल के नवाब सिराजुदौला के बीच हुई लड़ाई का गवाह बाल्डियाबादी, मोवार राज परिवार मेदनीपुर, मिर्जापुर, नवाबगंज, रेलवे कॉलोनी, गंगा नदी में अवस्थित राजमहल पहाड़ी शिला आदि प्रमुख स्थल दर्शनीय स्थल हैं। इतिहासकार एवम् दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी धीरज कु. निर्भय बताते हैं कि मनिहारी का इतिहास प्राचीन काल से रहा है। चाहे आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए या पुरातात्विक दृष्टि से, आप मनिहारी को विशेष पाएंगे, भले ही सरकार और नेताओं की अनदेखी का यह शिकार होता रहा है अन्यथा आज भी गंगा स्नान, माघी पूर्णिमा मेला, छठ महापर्व, सावन का पवित्रतम मास अथवा पूरे मिथिलांचल, सीमांचल की कोई भी सांस्कृतिक गतिविधि हो, लोग मनिहारी गंगा घाट अवश्य आते हैं। आज मनिहारी से जानकी एक्सप्रेस ट्रेन चलाई जाती है, जो मिथिला की संस्कृति को मनिहारी घाट से जोड़ती है। भौगोलिक दृष्टि से आप पूरे मिथिलांचल व कोसी क्षेत्र का एकमात्र पहाड़ मनिहारी में देख सकते हैं। साथ ही गंगा नदी किनारे अंग्रेजों की कोठी के निकट राजमहल पहाड़ियों के हिस्से को भी जनवरी माह से जून माह तक देख सकते हैं। दोमट मिट्टी का यह क्षेत्र प्राकृतिक सुन्दरता के लिए भी प्रसिद्ध है। नार्वे की संस्था के सहयोग से चलने वाला ईसाइयों के लिए एकमात्र चर्च सह बेतेल मिशन स्कूल, आज़ादी की क्रांति को प्रदर्शित करता पुरानी धर्मशाला की दीवारें भी आप यहां देख सकते हैं।
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इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect Archived 2017-01-18 at the वेबैक मशीन," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
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