मल्ल महाजनपद के राजा महाराज विश्वसेन थे उनका यहाँ पर राज्य चलता था इनका जन्म चंद्रकेतु के परिवार में हुआ था विश्व सेन एक वीर प्रतापी राजा थे महाभारत कलिंग, वंगा और अंग के साथ मल्लों को पूर्वी लोगों के रूप में स्वीकार करता है। मल्लों के प्रभुत्व में नौ क्षेत्र शामिल हैं। मनुश्रुति ने लिच्छवियों जैसे मल्लों को व्रात्य क्षत्रियों के रूप में स्वीकार किया। यह कुश्ती का पारंपरिक रूप है जो भारत में उभरा है। 13वीं शताब्दी के मल्ल पुराण में भारतीय कुश्ती का चित्रण मिलता है। मल्ला युद्ध दक्षिण पूर्व एशियाई कुश्ती शैली नबन से निकटता से संबंधित है। मल्ला युद्ध में पंचिंग, चोकिंग, बाइटिंग, कुश्ती, जॉइंट ब्रेकिंग और प्रेशर पॉइंट स्ट्राइकिंग शामिल हैं। पारंपरिक मैचों को चार प्रकारों में संहिताबद्ध किया गया था। बौद्ध साहित्य में मल्ल जनपद के भोग नगर , अनुप्रिय तथा उरुवेलकप्प नामक नगरों के नाम मिलते हैं। बौद्ध तथा जैन साहित्य में मल्लों और लिच्छवियों की प्रतिद्वंदिता के अनेक उल्लेख हैं—[७] मल्ल युद्ध को चार श्रेणियों में बांटा गया है:

मल्ल महाजनपद


जम्बू वटी - प्रतियोगी को समर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए ताले और क्लैप्स का उपयोग करता है। भीमसेनी - अपरूपण शक्ति पर केंद्रित है। हनुमति - तकनीकी श्रेष्ठता पर केंद्रित है। जरासंधी - लड़ते समय जोड़ों और अंगों को तोड़ने पर ध्यान केंद्रित करता है।

बुद्ध के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त करने के उपरान्त, उनके अस्थि-अवशेषों का एक भाग मल्लों को मिला था जिसके संस्मरणार्थ उन्होंने कुशीनगर में एक स्तूप या चैत्य का निर्माण किया था। इसके खंडहर कसिया में मिले हैं। इस स्थान से प्राप्त एक ताम्रपट्टलेख से यह तथ्य प्रमाणित भी होता है—‘(परिनि) वार्ण चैत्यताभ्रपट्ट इति’। मगध के राजनीतिक उत्कर्ष के समय मल्ल जनपद इसी साम्राज्य की विस्तरणशील सत्ता के सामने न टिक सका चौथी शती ई. पू. में चंद्रगुप्त मौर्य के महान् साम्राज्य में विलीन हो गया


मल्ल प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका उल्लेख अंगुत्तर निकाय में आया है। 'मल्ल' नाम 'मल्ल राजवंश' के नाम पर है जो इस महाजनपद की उस समय शासक थे। उल्लेखनीय है कि महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध दोनों ही महापुरुषों ने अपने निर्वाण के लिए मल्ल महाजनपद को ही चुना था।

मल्लों की दो शाखाएँ थीं। एक की राजधानी कुशीनारा थी जो वर्तमान कुशीनगर है तथा दूसरे की राजधानी पावा थी जो वर्तमान फाजिलनगर है।[1]

इन्हें भी देखें

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  1. नाहर, डॉ रतिभानु सिंह (1974). प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास. इलाहाबाद, भारत: किताबमहल. पृ॰ 112. पाठ "editor: " की उपेक्षा की गयी (मदद); |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)