कुशीनगर
कुशीनगर (Kushinagar) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कुशीनगर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह एक ऐतिहासिक स्थल है जहाँ महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। प्रबुद्ध सोसाइटी नेचुआ जलालपुर गोपालगंज बिहार कुशीनगर में प्रति वर्ष प्रबुद्ध सम्मेलन एवं सम्मान समारोह 10अगस्त को करता है![1][2]
कुशीनगर Kushinagar | |
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![]() परिनिर्वाण मंदिर के निकट खुदाई में मिली बुद्ध प्रतिमा | |
निर्देशांक: 26°44′28″N 83°53′20″E / 26.741°N 83.889°Eनिर्देशांक: 26°44′28″N 83°53′20″E / 26.741°N 83.889°E | |
देश | ![]() |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | कुशीनगर ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 22,214 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 274403 |
वाहन पंजीकरण | UP 57 |
वेबसाइट | www |
तीर्थ यात्रा बौद्ध धार्मिक स्थल |
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चार मुख्य स्थल |
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लुंबिनी · बोध गया सारनाथ · कुशीनगर |
चार अन्य स्थल |
श्रावस्ती · राजगीर सनकिस्सा · वैशाली |
अन्य स्थल |
पटना · गया कौशांबी · मथुरा कपिलवस्तु · देवदह केसरिया · पावा नालंदा · वाराणसी |
बाद के स्थल |
साँची · रत्नागिरी एल्लोरा · अजंता भरहुत · दीक्षाभूमि |
विवरणसंपादित करें
कुशीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर गोरखपुर से लगभग 53 किमी पूर्व में स्थित है। कुशीनगर से 20 किमी पूरब की ओर जाने पर बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है।
यहाँ कई देशोंं के अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। यहाँ बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुद्ध इण्टरमडिएट कालेज, प्रबुद्ध सोसाइटी,भिक्षु संघ, एक्युप्रेशर परिषद्, चन्दमणि निःशुल्क पाठशाला, महर्षि अरविन्द विद्या मंदिर तथा कई छोटे-छोटे विद्यालय भी हैं। कुशीनगर के आस-पास का क्षेत्र मुख्यतः कृषि-प्रधान है। जन-सामन्य की बोली भोजपुरी है। यहाँ गेहूँ, धान, गन्ना आदि मुख्य फसलें पैदा होतीं हैं।
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर में एक माह का मेला लगता है। यहाँ प्रत्येक बर्ष 10 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, मिलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन भिक्षु संघ, एकयुप़ेशर काउंसिल एवं प्रबुद्ध सोसाइटी द्वारा किया जाता है । यह तीर्थ महात्मा बुद्ध से सम्बन्धित है, किन्तु आस-पास का क्षेत्र हिन्दू बहुल है। यहाँ के काकार्यक्रम में आस-पास की जनता पूर्ण श्रद्धा से भाग लेती है और विभिन्न मन्दिरों में पूजा-अर्चना एवं दर्शन करती है। किसी को संदेह नहीं, कि बुद्ध उनके 'भगवान' हैं।
धार्मिक व ऐतिहासिक परिचयसंपादित करें
कुशीनगर का इतिहास अत्यन्त ही प्राचीन व गौरवशाली है। इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। प्राचीन काल में यह नगर मल्ल वंश की राजधानी तथा 16 महाजनपदों में एक था। चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृत्तातों में भी इस प्राचीन नगर का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह स्थान त्रेता युग में भी आबाद था और यहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी जिसके चलते इसे 'कुशावती' नाम से जाना गया। पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार बौद्ध काल में यह स्थान सोलह महाजनपदों में से एक था। मल्ल राजाओं की यह राजधानी तब 'कुशीनारा' के नाम से जानी जाती थी। ईसापूर्व पांचवी शताब्दी के अन्त तक या छठी शताब्दी की शुरूआत में यहां भगवान बुद्ध का आगमन हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था।
इस प्राचीन स्थान को प्रकाश में लाने के श्रेय जनरल ए कनिंघम और ए. सी. एल. कार्लाइल को जाता है जिन्होंनें 1861 में इस स्थान की खुदाई करवाई। खुदाई में छठी शताब्दी की बनी भगवान बुद्ध की लेटी प्रतिमा मिली थी। इसके अलावा रामाभार स्तूप और और माथाकुंवर मंदिर भी खोजे गए थे। 1904 से 1912 के बीच इस स्थान के प्राचीन महत्व को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने अनेक स्थानों पर खुदाई करवाई। प्राचीन काल के अनेक मंदिरों और मठों को यहां देखा जा सकता है।
कुशीनगर के करीब फाजिलनगर कस्बा है जहां के 'छठियांव' नामक गांव में किसी ने महात्मा बुद्ध को सूअर का कच्चा मांस खिला दिया था जिसके कारण उन्हें दस्त की बीमारी शुरू हुई और मल्लों की राजधानी कुशीनगर तक जाते-जाते वे निर्वाण को प्राप्त हुए। फाजिलनगर में आज भी कई टीले हैं जहां गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की ओर से कुछ खुदाई का काम कराया गया है और अनेक प्राचीन वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। फाजिलनगर के पास ग्राम जोगिया जनूबी पट्टी में भी एक अति प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं जहां बुद्ध की अतिप्रचीन मूर्ति खंडित अवस्था में पड़ी है। गांव वाले इस मूर्ति को 'जोगीर बाबा' कहते हैं। संभवत: जोगीर बाबा के नाम पर इस गांव का नाम जोगिया पड़ा है। जोगिया गांव के कुछ जुझारू लोग `लोकरंग सांस्कृतिक समिति´ के नाम से जोगीर बाबा के स्थान के पास प्रतिवर्ष मई माह में `लोकरंग´ कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमें देश के महत्वपूर्ण साहित्यकार एवं सैकड़ों लोक कलाकार सम्मिलित होते हैं।
कुशीनगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में मल्लों का एक और गणराज्य पावा था। यहाँ बौद्ध धर्म के समानांतर ही जैन धर्म का प्रभाव था। माना जाता है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ( जो बुद्ध के समकालीन थे) ने पावानगर (वर्तमान में फाजिलनगर ) में ही परिनिर्वाण प्राप्त किया था। इन दो धर्मों के अलावा प्राचीन काल से ही यह स्थल हिंदू धर्मावलंम्बियों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। गुप्तकाल के तमाम भग्नावशेष आज भी जिले में बिखरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ दर्जन प्राचीन टीले हैं जिसे पुरातात्विक महत्व का मानते हुए पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित कर रखा है। उत्तर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर भी इसी जिले के तुर्कपट्टी में स्थित है। भगवान सूर्य की प्रतिमा यहां खुदाई के दौरान ही मिली थी जो गुप्तकालीन मानी जाती है। इसके अलावा भी जनपद के विभिन्न हिस्सों में अक्सर ही जमीन के नीचे से पुरातन निर्माण व अन्य अवशेष मिलते ही रहते हैं।
कुशीनगर जनपद का जिला मुख्यालय पडरौना है जिसके नामकरण के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि भगवान राम के विवाह के उपरान्त पत्नी सीता व अन्य सगे-संबंधियों के साथ इसी रास्ते जनकपुर से अयोध्या लौटे थे। उनके पैरों से रमित धरती पहले पदरामा और बाद में पडरौना के नाम से जानी गई। जनकपुर से अयोध्या लौटने के लिए भगवान राम और उनके साथियों ने पडरौना से 10 किलोमीटर पूरब से होकर बह रही बांसी नदी को पार किया था। आज भी बांसी नदी के इस स्थान को 'रामघाट' के नाम से जाना जाता है। हर साल यहां भव्य मेला लगता है जहां उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों श्रद्धालु आते हैं। बांसी नदी के इस घाट को स्थानीय लोग इतना महत्व देते हैं कि 'सौ काशी न एक बांसी' की कहावत ही बन गई है। मुगल काल में भी यह जनपद अपनी खास पहचान रखता था।
साँची स्तूप से प्राप्त प्रथम शताब्दी ईसापूर्व की एक चित्रवल्लरी जिसमें कुशीनगर का ५वीं शताब्दी ईसापूर्व का एक दृष्य अंकित है। |
कुशीनगर का प्राचीन वर्णनसंपादित करें
कुशीनगर उत्तरी भारत का एक प्राचीन नगर है जो मल्ल गण की राजधानी था। दीघनिकाय में इस नगर को 'कुशीनारा' कहा गया है (दीघनिकाय २।१६५)। इसके पूर्व इसका नाम 'कुशावती' था। कुशीनारा के निकट एक सरिता 'हिरञ्ञ्वाती' (हिरण्यवती) का बहना बताया गया है। इसी के किनारे मल्लों का शाल वन था। यह नदी आज की छोटी गंडक है जो बड़ी गंडक से लगभग १२ किलोमीटर पश्चिम बहती है और सरयू में आकर मिलती है। बुद्ध को कुशीनगर से राजगृह जाते हुए ककुत्था नदी को पार करना पड़ा था। आजकल इसे बरही नदी कहते हैं और यह कुशीनगर से 12 किमी की दूरी पर बहती है।
बुद्ध के कथनानुसार कुशीनगर पूर्व-पश्चिम में १२ योजन लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में ७ योजन चौड़ा था। किन्तु राजगृह, वैशाली अथवा श्रावस्ती नगरों की भाँति यह बहुत बड़ा नगर नहीं था। यह बुद्ध के शिष्य आनन्द के इस वाक्य से पता चलता है- "अच्छा हो कि भगवान की मृत्यु इस क्षुद्र नगर के जंगलों के बीच न हो।" भगवान बुद्ध जब अन्तिम बार रुग्ण हुए तब शीघ्रतापूर्वक कुशीनगर से पावा गए किन्तु जब उन्हें लगा कि उनका अन्तिम क्षण निकट आ गया है तब उन्होंने आनन्द को कुशीनारा भेजा। कुशीनारा के संथागार में मल्ल अपनी किसी सामाजिक समस्या पर विचार करने के लिये एकत्र हुए थे। संदेश सुनकर वे शालवन की ओर दौड़ पड़े जहाँ बुद्ध जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे। मृत्यु के पश्चात् वहीं तथागत की अंत्येष्टि क्रिया चक्रवर्ती राजा की भाँति की गई। बुद्ध के अवशेष के अपने भाग पर कुशीनगर के मल्लों ने एक स्तूप खड़ा किया। कसया गाँव के इस स्तूप से ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें उसे "परिनिर्वाण चैत्याम्रपट्ट" कहा गया है। अतः इसके तथागत के महापरिनिर्वाण-स्थान होने में कोई सन्देह नहीं है।
मौर्य युग में कुशीनगर की उन्नति विशेष रूप से हुई। किन्तु उत्तर मौर्यकाल में इस नगर की महत्ता कम हो गई। गुप्तयुग में इस नगर ने फिर अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त किया। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के काल में यहाँ अनेक विहारों और मंदिरों का निर्माण हुआ। गुप्त शासकों ने यहाँ जीर्णोद्वार कार्य भी कराए। खुदाई से प्राप्त लेखों से ज्ञात होता है कि कुमारगुप्त (प्रथम) (४१३-४१५ ई.) के समय हरिबल नामक बौद्ध भिक्षु ने भगवान् बुद्ध की महापरिनिर्वाणावस्था की एक विशाल मूर्ति की स्थापना की थी और उसने महापरिनिर्वाण स्तूप का जीर्णोद्वार कर उसे ऊँचा भी किया था और स्तूप के गर्भ में एक ताँबे के घड़े में भगवान की अस्थिधातु तथा कुछ मुद्राएँ रखकर एक अभिलिखित ताम्रपत्र से ढककर स्थापित किया था।[3][4]
गुप्तों के बाद इस नगर की दुर्दशा हो गई। प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएन्त्सांग ने इसकी दुर्दशा का वर्णन किया है। वह लिखता है-
- इस राज्य की राजधानी बिल्कुल ध्वस्त हो गई है। इसके नगर तथा ग्राम प्रायः निर्जन और उजाड़ हैं, पुरानी ईटों की दीवारों का घेरा लगभग १० मीटर रह गया है। इन दीवारों की केवल नीवें ही रह गई हैं।"
कुशीनगर के उत्तरीपूर्वी कोने पर सम्राट् अशोक द्वारा बनवाया एक स्तूप है।[5] यहाँ पर ईटों का विहार है जिसके भीतर भगवान् के परिनिर्वाण की एक मूर्ति बनी है। सोते हुए पुरुष के समान उत्तर दिशा में सिर करके भगवान् लेटे हुए है। विहार के पास एक अन्य स्तूप भी सम्राट् अशोक का बनवाया हुआ है। यद्यपि यह खंडहर हो रहा है, तो भी २०० फुट ऊँचा है। इसके आगे एक स्तंभ है जिसपर तथागत के निर्वाण का इतिहास है।
११वीं-१२वीं शताब्दी में कलचुरी तथा पाल नरेशों ने इस नगर की उन्नति के लिए पुनः प्रयास किया था, यह माथाबाबा की खुदाई में प्राप्त काले रंग के पत्थर की मूर्ति पर उत्कीर्ण लेख से ध्वनित होता है।
१९वीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में ब्रितानी पुरातत्त्वविद अलेक्ज़ैंडर कन्निघम ने पुनः कुशीनगर की खोज की। उनके साथी सी एल कार्लाइल ने धरती के अन्दर से १५०० वर्ष पुरानी बुद्ध का चित्र खोद निकाला। [6][7][8] उसके बाद से यह स्थान एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ बन गया है। ईसापूर्व तीसरी शताब्दी के पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि यह स्थान (कुशीनगर) एक प्राचीन तीर्थस्थल था।
मैत्रेय-बुद्ध परियोजनासंपादित करें
संसार की विशालतम प्रतिमा- 'मैत्रेय बुद्ध' का निर्माण कुशीनगर में ही किया जा रहा है। मैत्रेय परियोजना के तहत इस पर त्वरित गति से काम हो रहा है। इस परियोजना को सभी बौद्ध राष्ट्रों का सहयोग प्राप्त है और दलाई लामा का संरक्षकत्व भी। यह मूर्ति पांच सौ फुट ऊंची होगी। जिस मंच पर बुद्ध आसीन होंगे उसके अन्दर चार हजार लोगों के साथ बैठ कर ध्यान करने की व्यवस्था होगी। प्रतिमा की शैली तिब्बती है। वेशभूषा भी तिब्बती है। बुद्ध के बैठने के मुद्रा ऐसी होगी जैसे कि वे सिंहासन पर बैठे हों और उठ कर चल देने को तत्पर हों। तिब्बती बौद्ध मान्यता है कि मैत्रेय बुद्ध सुखावती लोक में ठीक इसी मुद्रा में बैठे हैं और किसी भी पल वे पृथ्वी की ओर चल देंगे। इस प्रतिमा में इसी धारणा का शिल्पांकन होगा।
प्रमुख आकर्षणसंपादित करें
निर्वाण स्तूपसंपादित करें
ईंट और रोड़ी से बने इस विशाल स्तूप को 1876 में कार्लाइल द्वारा खोजा गया था। इस स्तूप की ऊंचाई 2.74 मीटर है। इस स्थान की खुदाई से एक तांबे की नाव मिली है। इस नाव में खुदे अभिलेखों से पता चलता है कि इसमें महात्मा बुद्ध की चिता की राख रखी गई थी।
महानिर्वाण मंदिरसंपादित करें
महानिर्वाण या निर्वाण मंदिर कुशीनगर का प्रमुख आकर्षण है। इस मंदिर में महात्मा बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी प्रतिमा स्थापित है। 1876 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह सुंदर प्रतिमा चुनार के बलुआ पत्थर को काटकर बनाई गई थी। प्रतिमा के नीचे खुदे अभिलेख के पता चलता है कि इस प्रतिमा का संबंध पांचवीं शताब्दी से है। कहा जाता है कि हरीबाला नामक बौद्ध भिक्षु ने गुप्त काल के दौरान यह प्रतिमा मथुरा से कुशीनगर लाया था।
माथाकुंवर मंदिरसंपादित करें
यह मंदिर निर्वाण स्तूप से लगभग 400 गज की दूरी पर है। भूमि स्पर्श मुद्रा में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा यहां से प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा बोधिवृक्ष के नीचे मिली है। इसके तल में खुदे अभिलेख से पता चलता है कि इस मूर्ति का संबंध 10-11वीं शताब्दी से है। इस मंदिर के साथ ही खुदाई से एक मठ के अवशेष भी मिले हैं।
रामाभर स्तूपसंपादित करें
15 मीटर ऊंचा यह स्तूप महापरिनिर्वाण मंदिर से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि यह स्तूप उसी स्थान पर बना है जहां महात्मा बुद्ध को 483 ईसा पूर्व दफनाया गया था। प्राचीन बौद्ध लेखों में इस स्तूप को मुकुट बंधन चैत्य का नाम दिया गया है। कहा जाता है कि यह स्तूप महात्मा बुद्ध की मृत्यु के समय कुशीनगर पर शासन करने वाले मल्ल शासकों द्वारा बनवाया गया था।
आधुनिक स्तूपसंपादित करें
कुशीनगर में अनेक बौद्ध देशों ने आधुनिक स्तूपों और मठों का निर्माण करवाया है। चीन द्वारा बनवाए गए चीन मंदिर में महात्मा बुद्ध की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। इसके अलावा जापानी मंदिर में अष्ट धातु से बनी महात्मा बुद्ध की आकर्षक प्रतिमा देखी जा सकती है। इस प्रतिमा को जापान से लाया गया था।
बौद्ध संग्रहालयसंपादित करें
कुशीनगर में खुदाई से प्राप्त अनेक अनमोल वस्तुओं को बौद्ध संग्रहालय में संरक्षित किया गया है। यह संग्रहालय इंडो-जापान-श्रीलंकन बौद्ध केन्द्र के निकट स्थित है। आसपास की खुदाई से प्राप्त अनेक सुंदर मूर्तियों को इस संग्रहालय में देखा जा सकता है। यह संग्रहालय सोमवार के अलावा प्रतिदिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
मां भवानी देवी मंदिरसंपादित करें
जिस प्राचीन हिरण्यवती नदी के किनारे भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार हुआ था, उसके ठीक बगल में मल्ल राजाओं की कुलदेवी का भी स्थान था, जो आज 'माँ भवानी मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध है। यहां होने वाले राजा अर्थात युवराजों का मुकुट बंधन जैसा पवित्र संस्कार इसी स्थान पर कराया जाता था।
पुरातात्विक दृष्टिकोण से उपेक्षित इस मंदिर में वर्षों से पूजा-पाठ होती रही है। चैत्र मास की रामनवमी के दिन यहां एक विशाल मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें भाग लेने व मन्नौती मांगने के लिए श्रद्धालु काफी दूर-दूर से आते हैं।[9]
इन दर्शनीय स्थलों के अलावा कुशीनगर में क्रिएन मंदिर, शिव मंदिर, राम-जानकी मंदिर, मेडिटेशन पार्क, बर्मी मंदिर आदि भी देखे जा सकते हैं।
1. नामद्रोलिंग मठसंपादित करें
नामद्रोलिंग मठ, जिसे स्वर्ण मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, कुशलनगर में सबसे सुंदर और शांत पर्यटन स्थलों में से एक है। मंदिर हरे-भरे हरियाली से घिरा हुआ है और हजारों भिक्षुओं और ननों का घर है। जटिल वास्तुकला, चमकीले रंग के भित्ति चित्र, और बुद्ध की सोने की मूर्तियाँ इसे अवश्य ही आकर्षण का केंद्र बनाती हैं। मंदिर का शांतिपूर्ण वातावरण ध्यान और विश्राम के लिए उपयुक्त है।
2. डबरे हाथी शिविरसंपादित करें
3. हरंगी बांधसंपादित करें
हरी-भरी हरियाली के बीच स्थित हरंगी बांध कुशलनगर का एक और खूबसूरत पर्यटन स्थल है। बांध पश्चिमी घाटों का एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है और एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। जगह का शांत वातावरण विश्राम के लिए एकदम सही है, और आगंतुक बांध के किनारे टहल सकते हैं या कुछ मछली पकड़ने में लिप्त हो सकते हैं।
4. कावेरी निसारगधामासंपादित करें
कावेरी नदी से घिरा एक विशाल द्वीप कावेरी निसारगधामा प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। बांस के झुरमुट, हिरण पार्क, और जिप-लाइनिंग और हाथी की सवारी जैसी साहसिक गतिविधियां इसे एक जरूरी गंतव्य बनाती हैं। जगह का शांतिपूर्ण माहौल इसे पारिवारिक सैर या रोमांटिक पलायन के लिए एकदम सही बनाता है।
5. बाइलाकुप्पेसंपादित करें
कुशलनगर के पास स्थित बाइलाकुप्पे एक और खूबसूरत पर्यटन स्थल है। यह शहर कई तिब्बती मठों और पारंपरिक तिब्बती कलाकृतियों को बेचने वाली हस्तशिल्प और स्मारिका दुकानों का घर है। शहर का शांत वातावरण और सुंदर परिवेश इसे शांति और शांति चाहने वालों के लिए एक ज़रूरी गंतव्य बनाता है।
6. कॉफी के बागानसंपादित करें
कुशालनगर अपने कॉफी बागानों के लिए भी जाना जाता है जो आगंतुकों के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं। आगंतुक बागान के माध्यम से टहल सकते हैं और कॉफी बनाने की प्रक्रिया के बारे में सीख सकते हैं, फलियों को चुनने से लेकर भूनने और पीसने तक। हवा में ताज़ी पीसे हुए कॉफ़ी की महक अनुभव को और बढ़ा देती है। वृक्षारोपण पक्षियों की कई प्रजातियों का घर भी है, जो इसे पक्षी देखने वालों के लिए स्वर्ग बनाता है।
7. तिब्बती हस्तशिल्प और स्मृति चिन्हसंपादित करें
कुशलनगर उन लोगों के लिए स्वर्ग है जो हस्तशिल्प और स्मृति चिन्ह पसंद करते हैं। यह शहर कई दुकानों का घर है जो पारंपरिक तिब्बती कलाकृतियों को बेचते हैं, जिनमें प्रार्थना झंडे, तिब्बती थांगका और बौद्ध मूर्तियाँ शामिल हैं। आगंतुक हस्तनिर्मित कालीन, शॉल और क्षेत्र में बसे तिब्बती शरणार्थियों द्वारा बनाए गए अन्य सामान भी खरीद सकते हैं।
8. नागरहोल राष्ट्रीय उद्यानसंपादित करें
कुशालनगर से लगभग 30 किमी दूर स्थित नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान एक और खूबसूरत गंतव्य है। पार्क बाघों, तेंदुओं, हाथियों और हिरणों सहित जानवरों की कई प्रजातियों का घर है। आगंतुक जंगल सफारी ले सकते हैं और जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में देख सकते हैं। पार्क की हरी-भरी हरियाली और शांत वातावरण इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए एक ज़रूरी जगह बनाता है।
9. झरनेसंपादित करें
कुशालनगर कई खूबसूरत झरनों का भी घर है जो Read More
आवागमनसंपादित करें
- वायु मार्ग
कुशीनगर अन्तरराष्ट्रीय विमानपत्तन कुशीनगर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर है। इसका उद्घाटन 20 अक्टूबर 2021 को भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने किया। इसे फरवरी 2021 में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के परिचालन के लिए नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) से आवश्यक मंजूरी मिल गई थी।[10]
इसके अलावा गोरखपुर विमानक्षेत्र यहां का निकटतम प्रमुख हवाई-अड्डा है। दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता और पटना आदि शहरों से यहां के लिए नियमित उड़ानें हैं। इसके अतिरिक्त लखनऊ और गोरखपुर भी वायुयान से आकर यहाँ आया जा सकता है।
- रेल मार्ग
देवरिया यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो यहां से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। कुशीनगर से 53 किलोमीटर दूर स्थित गोरखपुर यहां का प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो देश के अनेक प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
गाड़ी संख्या | गाड़ी का नाम | कहाँ से | कहाँ तक |
---|---|---|---|
1016 | कुशीनगर एक्सप्रेस | गोरखपुर | कुर्ला (मुम्बई) |
... | बुद्ध परिक्रमा एक्सप्रेस | कालका | कोलकाता |
2554 | वैशाली एक्सप्रेस | नयी दिल्ली | बरौनी |
4674 | शहीद एक्सप्रेस | अमृतसर | दरभंगा |
5208 | आम्रपाली एक्सप्रेस | अमृतसर | बरौनी |
5087 | अमरनाथ एक्सप्रेस | गोरखपुर | जम्मू तवी |
5651 | लोहित एक्सप्रेस | गुवहाटी | जम्मू तवी |
5047 | पूर्वांचल एक्सप्रेस | गोरखपुर | हावड़ा |
3020 | बाघ एक्सप्रेस | काठगोदाम | हावड़ा |
5012 | राप्ती-सागर एक्सप्रेस | गोरखपुर | कोचीन |
5092 | गोरखपुर-बंगलोर एक्सप्रेस | गोरखपुर | बंगलोर |
5090 | गोरखपुर-सिकन्दराबाद एक्सप्रेस | गोरखपुर | सिकन्दराबाद |
5046 | गोरखपुर-अहमदाबाद एक्सप्रेस | गोरखपुर | अहमदाबाद |
9166 | साबरमती एक्सप्रेस | मुजफ्फरपुर | अहमदाबाद |
- सड़क मार्ग
कुशीनगर से जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 28 इसे अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ता है। राज्य के प्रमुख शहरों से यहां के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
चित्रावलीसंपादित करें
परिनिर्वाण के पश्चात इसी स्थान पर एक सप्ताह तक भगवान बुद्ध का शरीर रखा गया था।
इन्हें भी देखेंसंपादित करें
बाहरी कड़ियाँसंपादित करें
विकिमीडिया कॉमन्स पर Kushinara से सम्बन्धित मीडिया है। |
सन्दर्भसंपादित करें
- ↑ "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
- ↑ "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the Wayback Machine," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975
- ↑ Gina Barns (1995). "An Introduction to Buddhist Archaeology". World Archaeology. 27 (2): 166–168. doi:10.1080/00438243.1995.9980301.
- ↑ Robert Stoddard (2010). "The Geography of Buddhist Pilgrimage in Asia" Archived 2020-04-02 at the Wayback Machine. Pilgrimage and Buddhist Art. Yale University Press. 178: 3–4.
- ↑ Akira Hirakawa; Paul Groner (1993). A History of Indian Buddhism: From Śākyamuni to Early Mahāyāna Archived 2020-04-02 at the Wayback Machine. Motilal Banarsidass. p. 101. ISBN 978-81-208-0955-0.
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- ↑ Asher, Frederick (2009). "From place to sight: locations of the Buddha´s life". Artibus Asiae. 69 (2): 244.
- ↑ Himanshu Prabha Ray (2014). The Return of the Buddha: Ancient Symbols for a New Nation Archived 2019-12-15 at the Wayback Machine. Routledge. pp. 74–75, 86. ISBN 978-1-317-56006-7.
- ↑ "मां भवानी देवी मंदिर कुशीनगर - विकिपीडिया". hi.m.wikipedia.org. अभिगमन तिथि 2021-09-10.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ उत्तर प्रदेश में तीसरे इंटरनेशनल एयरपोर्ट को मिली मंजूरी