पटना

बिहार की राजधानी

पटना (Patna) भारत के बिहार राज्य के पटना ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है और राज्य की राजधानी है।[6] यह बिहार का सबसे बड़ा नगर है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र, पुष्पपुरी और कुसुमपुर था।[7][8][9][10]

पटना
Patna
महानगर
पटना के दृश्य
पटना के दृश्य
पटना is located in बिहार
पटना
पटना
बिहार में स्थिति
निर्देशांक: 25°36′N 85°06′E / 25.6°N 85.1°E / 25.6; 85.1निर्देशांक: 25°36′N 85°06′E / 25.6°N 85.1°E / 25.6; 85.1
देश भारत
प्रान्तबिहार
ज़िलापटना ज़िला
पाटलिपुत्र490 ईपू
संस्थापकउदायिभद्र
शासन
 • प्रणालीनगर निगम
 • सभापटना नगर निगम
नगर परिषद् दानापुर निजामत
 • भारतीय संसदरवि शंकर प्रसाद (भाजपा)
रामकृपाल यादव(भाजपा)
 • मेयरसीता साहू[1]
क्षेत्रफल
 • महानगर250 किमी2 (100 वर्गमील)
 • महानगर409 किमी2 (158 वर्गमील)
क्षेत्र दर्जा18
ऊँचाई[2]53 मी (174 फीट)
जनसंख्या (2011)[3]
 • महानगर16,83,200
 • महानगर20,46,652
 • महानगर38,74,000
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी, मैथिली, मगही
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
पिनकोड8000xx
दूरभाष कोड+91-(0)612
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोडIN-BR-PA
IN PAT
वाहन पंजीकरणBR-01
साक्षरता83.37%[4]
लिंगानुपात980 /1000 [3]
HDIवृद्धि 0.549[5] (High)
वेबसाइटpatna.nic.in
patnanagarnigam.in

विवरण

 

पटना शहर का ऐतिहासिक महत्व है। पटना संसार के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। सोलह लाख (2011 की जनगणना के अनुसार 1,683,200) से भी अधिक आबादी वाला पटना का मुख्य शहर, लगभग 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। 136 वर्ग किलोमीटर (53 वर्ग मील) के क्षेत्र और 20 लाख से अधिक लोगों की आबादी के साथ, पटना शहर (अपने शहरी समूह के साथ) भारत में 18 वां सबसे बड़ा है।

प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना सिक्खों के लिये एक अत्यन्त ही पवित्र स्थल है। सिक्खों के 10वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोविन्द सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमन्दिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं। ऐतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा, वाणिज्य, और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केन्द्र है। दिवारों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, पटना सिटी के नाम से जाना जाता है ।

नाम

पटना नाम पटन देवी (एक हिन्दू देवी) से प्रचलित हुआ है। एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत के पत्तन से आया है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है। मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है। यह ऐतिहासिक नगर पिछली दो सहस्त्राब्दियों में कई नाम पा चुका है - पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र, पुष्पपुर, कुसुमपुर, अजीमाबाद और पटना। ऐसा समझा जाता है कि वर्तमान नाम शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ। शेरशाह ने इसका नाम 'पैठना' रखा था जिसे शेर शाह के मृत्यु के पश्चात् अंतिम हिन्दु सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने पटना कर दिया।

इतिहास

 
सन १८१४-१५ में पटना के मुख्य भाग का दृष्य
 
पटना, १९वीं शताब्दी में

प्राचीन पटना (पूर्वनाम- पाटलिग्राम या पाटलिपुत्र) सोन और गंगा नदी के संगम पर स्थित था। सोन नदी आज से दो हजार वर्ष पूर्व अगमकुँआ से आगे गंगा में मिलती थी। पाटलिग्राम में गुलाब (पाटली का फूल) काफी मात्रा में उपजाया जाता था। गुलाब के फूल से तरह-तरह के इत्र, दवा आदि बनाकर उनका व्यापार किया जाता था इसलिए इसका नाम पाटलिग्राम हो गया। लोककथाओं के अनुसार, राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है। उसने अपनी रानी पाटलि के लिये जादू से इस नगर का निर्माण किया। इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा। पाटलिपुत्र नाम भी इसी के कारण पड़ा। संस्कृत में पुत्र का अर्थ बेटा तथा ग्राम का अर्थ गांव होता है।

पुरातात्विक अनुसंधानो के अनुसार पटना का लिखित इतिहास 490 ईसा पूर्व से होता है जब हर्यक वंश के महान शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह या राजगीर से बदलकर यहाँ स्थापित की। यह स्थान वैशाली के लिच्छवियों से संघर्ष में उपयुक्त होने के कारण राजगृह की अपेक्षा सामरिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण था क्योंकि यह युद्ध अनेक माह तक चलने वाला एक भयावह युद्ध था। उसने गंगा के किनारे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण यह स्थान चुना और अपना दुर्ग स्थापित कर लिया। उस समय से इस नगर का इतिहास लगातार बदलता रहा है। २५०० वर्षों से अधिक पुराना शहर होने का गौरव दुनिया के बहुत कम नगरों को हासिल है। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अपने अन्तिम दिनों में यहाँ से होकर गुजरे थे। उनकी यह भविष्यवाणी थी कि नगर का भविष्य उज्जवल होगा, बाढ़ या आग के कारण नगर को खतरा बना रहेगा। आगे चल कर के महान नन्द शासकों के काल में इसका और भी विकास हुआ एवं उनके बाद आने वाले शासकों यथा मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र भारतीय उपमहाद्वीप में सत्ता का केन्द्र बन गया।[11] चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़गानिस्तान तक फैल गया था। मौर्य काल के आरंभ में पाटलिपुत्र के अधिकांश राजमहल लकड़ियों से बने थे, पर सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना में तब्दील किया। चीन के फाहियान ने, जो कि सन् 399-414 तक भारत यात्रा पर था, अपने यात्रा-वृतांत में यहाँ के शैल संरचनाओं का जीवन्त वर्णन किया है।

मेगास्थनीज़, जो कि एक यूनानी इतिहासकार और चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी शासक सिल्यूकस के एक राजदूत के नाते आया था, ने पाटलिपुत्र नगर का प्रथम लिखित विवरण दिया है उसने अपनी पुस्तक में इस शहर के विषय में एवं यहां के लोगों के बारे में भी विशद विवरण दिया है जो आज भी भारतीय इतिहास के छात्रों के लिए सन्दर्भ के रूप में काम आता है। शीघ्र ही पाटलीपुत्र ज्ञान का भी एक केन्द्र बन गया। बाद में, ज्ञान की खोज में कई चीनी यात्री यहाँ आए और उन्होने भी यहां के बारे में अपने यात्रा-वृतांतों में बहुत कुछ लिखा है। मौर्यों के पश्चात कण्व एवं शुंगो सहीत अनेक शासक आये लेकिन इस नगर का महत्व कम नहीं हुआ।

इसके पश्चात नगर पर गुप्त वंश सहित कई राजवंशों का राज रहा। इन राजाओं ने यहीं से भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। गुप्त वंश के शासनकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है। पर लगातार होने वाले हुणो के आक्रमण एवं गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद इस नगर को वह गौरव नहीं मिल पाया जो एक समय मौर्य वंश या गुप्त वंश के समय प्राप्त था। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा। 12 वीं सदी में बख़्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर डाला। इस समय के बाद पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केन्द्र नहीं रहा। मुगलकाल में दिल्ली के सत्ताधारियों ने अपना नियंत्रण यहाँ बनाए रखा। इस काल में सबसे उत्कृष्ठ समय तब आया जब शेरशाह सूरी ने नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उसने गंगा के तीर पर एक किला बनाने की सोची। उसका बनाया कोई दुर्ग तो अभी नहीं है, पर अफ़ग़ान शैली में बना एक मस्जिद अभी भी है।

मुगल बादशाह अकबर की सेना 1574 ईसवी में अफ़गान सरगना दाउद ख़ान को कुचलने पटना आया। अकबर के राज्य सचिव एवं आइने-अकबरी के लेखक अबुल फ़जल ने इस जगह को कागज, पत्थर तथा शीशे का सम्पन्न औद्योगिक केन्द्र के रूप में वर्णित किया है। पटना राइस के नाम से यूरोप में प्रसिद्ध चावल के विभिन्न नस्लों की गुणवत्ता का उल्लेख भी इन विवरणों में मिलता है। मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने प्रिय पोते मुहम्मद अज़ीम के अनुरोध पर 1704 में, शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया, पर इस कालखंड में नाम के अतिरिक्त पटना में कुछ विशेष बदलाव नहीं आया। अज़ीम उस समय पटना का सूबेदार था।

मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही पटना बंगाल के नबाबों के शासनाधीन हो गया जिन्होंने इस क्षेत्र पर भारी कर लगाया पर इसे वाणिज्यिक केन्द्र बने रहने की छूट दी। १७वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गया। अंग्रेज़ों ने 1620 में रेशम तथा कैलिको के व्यापार के लिये यहाँ फैक्ट्री खोली। जल्द ही यह सॉल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केन्द्र बन गया जिसके कारण फ्रेंच और डच लोग से प्रतिस्पर्धा तेज हुई। बक्सर के निर्णायक युद्ध के बाद नगर इस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चला गया और वाणिज्य का केन्द्र बना रहा। ईसवी सन 1912 में बंगाल विभाजन के बाद, पटना उड़ीसा तथा बिहार की राजधानी बना। आई एफ़ मुन्निंग ने पटना के प्रशासनिक भवनों का निर्माण किया। संग्रहालय, उच्च न्यायालय, विधानसभा भवन इत्यादि बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि पटना के नए भवनों के निर्माण में हासिल हुई महारथ दिल्ली के शासनिक क्षेत्र के निर्माण में बहुत काम आई। सन 1935 में उड़ीसा बिहार से अलग कर एक राज्य बना दिया गया। पटना राज्य की राजधानी बना रहा।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नगर ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नील की खेती के लिये १९१७ में चम्पारण आन्दोलन तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन के समय पटना की भूमिका उल्लेखनीय रही है। आजादी के बाद पटना बिहार की राजधानी बना रहा। सन 2000 में झारखंड राज्य के अलग होने के बाद पटना बिहार की राजधानी पूर्ववत बना रहा।

भूगोल

 
पटना से देखने पर गंगा नदी का दृश्य

पटना गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। पटना गंगा के दक्षिणी तथा पुनपुन के उत्तरी तट पर स्थित है। गंगा नदी नगर के साथ एक लम्बी तट रेखा बनाती है। पटना का विस्तार उत्तर-दक्षिण की अपेक्षा पूर्व-पश्चिम में बहुत अधिक है। नगर तीन ओर से गंगा, सोन नदी और पुनपुन नदी नदियों से घिरा है। नगर से ठीक उत्तर हाजीपुर के पास गंडक नदी भी गंगा में आ मिलती है। हाल के दिनों में पटना शहर का विस्तार पश्चिम की ओर अधिक हुआ है और यह दानापुर से जा मिला है।

महात्मा गांधी सेतु जो कि पटना से हाजीपुर को जोड़ने के लिये गंगा नदी पर उत्तर-दक्षिण की दिशा में बना एक पुल है, दुनिया का सबसे लम्बा सड़क पुल है। दो लेन वाले इस प्रबलित कंक्रीट पुल की लम्बाई 5575 मीटर है। गंगा पर बना दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल पटना और सोनपुर को जोड़ता है।[12]

  • समुद्रतल से ऊँचाई: 53 मीटर
  • तापमान: गर्मी 43 °C - 21 °C, सर्दी 20 °C - 6 °C
  • औसत वर्षा : 1,200 मिलीमीटर

राजनीति

बिहार सरकार की सीट के रूप में, शहर में राजभवन सहित कई संघीय सुविधाएं हैं: गवर्नर हाउस, बिहार विधान सभा; राज्य सचिवालय, जो पटना सचिवालय में स्थित है; और पटना उच्च न्यायालय। पटना उच्च न्यायालय भारत के सबसे पुराने उच्च न्यायालयों में से एक है। पटना उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र बिहार राज्य पर है।[13] पटना में निचली अदालतें भी हैं; दीवानी मामलों के लिए लघु वाद न्यायालय, और आपराधिक मामलों के लिए सत्र न्यायालय।[14][15] वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की कमान वाली पटना पुलिस की निगरानी बिहार सरकार के गृह विभाग द्वारा की जाती है। पटना जिला भारत के निचले सदन, लोकसभा,[16] के लिए दो प्रतिनिधियों और राज्य विधान सभा के लिए 14 प्रतिनिधियों का चुनाव करता है। पटना की राजधानी में 8 राज्य विधान सभा क्षेत्र हैं,[17] जो लोकसभा के दो निर्वाचन क्षेत्रों (भारत की संसद के निचले सदन) का निर्माण करते हैं।

 
पटना की राजधानी शहर में 8 राज्य विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र
City representatives (Legislators) 
Member Party Constituency स्रोत
रवि शंकर प्रसाद , MP भाजपा पटना साहिब [18]
रामकृपाल यादव, MP भाजपा पाटलिपुत्र [19]
संजीव चौरसिया, MLA भाजपा दीघा [20]
Nitin Naveen, MLA भाजपा बांकीपुर [20]
नंद किशोर यादव, MLA भाजपा पटना साहिब [20]
अरुण कुमार सिन्हा, MLA भाजपा कुम्हरार [20]
Rama Nand Yadav, MLA RJD फतुहा [21]
रीतलाल यादव, MLA RJD दानापुर [20]
Gopal Ravidas, MLA CPI-ML(L) फुलवारी [22]
Bhai Virendra, MLA RJD मनेर [23]

जलवायु

बिहार के अन्य भागों की तरह पटना में भी गर्मी का तापमान उच्च रहता है। गृष्म ऋतु में सीधा सूर्यातप तथा उष्ण तरंगों के कारण असह्य स्थिति हो जाती है। गर्म हवा से बनने वाली लू का असर शहर में भी मालूम पड़ता है। देश के शेष मैदानी भागों (यथा - दिल्ली) की अपेक्षा हलाँकि यह कम होता है। चार बड़ी नदियों के समीप होने के कारण नगर में आर्द्रता सालोभर अधिक रहती है।

गृष्म ऋतु अप्रैल से आरंभ होकर जून- जुलाई के महीने में चरम पर होती है। तापमान 46 डिग्री तक पहुंच जाता है। जुलाई के मध्य में मॉनसून की झड़ियों से राहत पहुँचती है और वर्षा ऋतु का श्रीगणेश होता है। शीत ऋतु का आरंभ छठ पर्व के बाद यानी नवंबर से होता है। फरवरी में वसंत का आगमन होता है तथा होली के बाद मार्च में इसके अवसान के साथ ही ऋतु-चक्र पूरा हो जाता है।

जनसांख्यिकी

प्रखंड

पटना जिले में 23 ब्लॉक (प्रखंड/अंचल) हैं: पटना सदर, फुलवारी शरीफ, सम्पतचक, पलिगंज, फतुहा, खुसरपुर, दानीयावाँ, बख्तियारपुर, बाढ़, बेल्ची, अथमलगोला, मोकामा, पंडारक, घोसवारी, बिहटा प्रखण्ड (पटना), मनेर प्रखण्ड (पटना), दानापुर प्रखण्ड (पटना), नौबतपुर, दुलहिन बाजार, बिक्रम, मसूरी, धनरुआ , पुनपुन प्रखण्ड (पटना)[24]

स्थानीय निकाय

ऐतिहासिक जनसंख्याएं
वर्ष जन.
1807-14* 3,12,000
1872 1,58,000 −49.4%
1881 1,70,684 8.0%
1901 1,34,785 −21.0%
1911 1,36,153 1.0%
1921 1,19,976 −11.9%
1931 1,59,690 33.1%
1941 1,96,415 23.0%
1951 2,83,479 44.3%
1961 3,64,594 28.6%
1971 4,75,300 30.4%
1981 8,13,963 71.3%
1991 9,56,418 17.5%
2001 13,76,950 44.0%
2011 16,83,200 22.2%
टिप्पणी: 1814 के बाद विशाल जनसंख्या में गिरावट, कारण नदी जनित व्यापार, लगातार अस्वास्थ्यकरता और पट्टिका की महामारी।
* - अनुमानित
(स्रोत -[25])

पटना की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 16,83,200 है, जो 2001 में 13,76,950 थी। जबकि पटना महानगर की जनसंख्या 2,046,652 है। जनसंख्या का घनत्व 1132 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर तथा स्त्री पुरूष अनुपात है - 882 स्त्री प्रति 1,000 पुरूष। साक्षरता की दर पुरूषों में 87.71% तथा स्त्रियों में 81.33% है।[26]

पटना में अपराध की दर अपेक्षाकृत कम है। मुख्य जेल आदर्श केंद्रीय कारा बेउर है।

पटना में कई भाषाएँ तथा बोलियाँ बोली जाती हैं। हिन्दी राज्य की आधिकारिक भाषा है तथा उर्दू द्वितीय राजभाषा है। अंग्रेजी का भी प्रयोग होता है। मागधी अथवा मगही यहाँ की स्थानीय बोली है। अन्य भाषाएँ, जो कि बिहार के अन्य भागों से आए लोगों की मातृभाषा हैं, में अंगिका, भोजपुरी, बज्जिका और मैथिली प्रमुख हैं। आंशिक प्रयोग में आनेवाली अन्य भाषाओं में बंगाली और उड़िया का नाम लिया जा सकता है।

पटना के मेमन को पाटनी मेमन कहते है और उनकी भाषा मेमनी भाषा का एक स्वरूप है।

धर्मों का वितरण (2001)[27]
धर्म प्रतिशत
हिन्दू
  
91.8%
इस्लाम
  
7.8%
ईसाई
  
0.2%
सिख
  
0.1%
अन्य लोग
  
0.1%

अन्य शामिल जैन (0.04%) नास्तिक (0.04%) & बौद्ध (0.02%)

जनजीवन दशा

यह शहर मगही संस्कृति का केन्द्र है,साथ ही मैथिल भोजपुरी तथा बंगाली संस्कृति भी शुद्ध रूप मे जीवित है। स्त्रियों का परिवार में सम्मान होता है तथा पारिवारिक निर्णयों में उनकी बात भी सुनी जाती है। यद्यपि स्त्रियां अभी तक घर के कमाऊ सदस्यों में नहीं हैं पर उनकी दशा उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों से अच्छी है। भ्रूण हत्या की खबरें शायद ही सुनी जाती है लेकिन कही कहीं स्त्रियों का शोषण भी होता है। शिक्षा के मामले में स्त्रियों की तुलना में पुरूषों को तरजीह मिलती है।

संस्कृति

पर्व-त्यौहार

दीवाली, दुर्गापूजा, होली,अनंत पूजा, छठ पूजा, गंगा दशहरा, रामनवमी ,कृष्ण जन्माष्टमी,झूलन, गुरुगोविंद सिंह जयन्ती,विजयादशमी, महाशिवरात्रि, ईद, क्रिसमस, छठ, सोहराई, गोधन,रक्षाबंधन,कर्मा,गोवर्धन पूजा जीवित पुत्रिका व्रत तीज आदि लोकप्रियतम पर्वो में से है। छठ पर्व पटना ही नहीं वरन् सारे बिहार का एक प्रमुख पर्वं है जो कि सूर्य देव की आराधना के लिए किया जाता है।

दशहरा

दशहरा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की लम्बी पर क्षीण होती परम्परा है। इस परंपरा की शुरुआत वर्ष 1944 में मध्य पटना के गोविंद मित्रा रोड मुहल्ले से हुई थी। धुरंधर संगीतज्ञों के साथ-साथ बड़े क़व्वाल और मुकेश या तलत महमूद जैसे गायक भी यहाँ से जुड़ते चले गए। 1950 से लेकर 1980 तक तो यही लगता रहा कि देश के शीर्षस्थ संगीतकारों का तीर्थ-सा बन गया है पटना। डीवी पलुस्कर, ओंकार नाथ ठाकुर, भीमसेन जोशी, अली अकबर ख़ान, निखिल बनर्जी, विनायक राव पटवर्धन, पंडित जसराज, कुमार गंधर्व, बीजी जोग, अहमद जान थिरकवा, बिरजू महाराज, सितारा देवी, किशन महाराज, गुदई महाराज, बिस्मिल्ला ख़ान, हरिप्रसाद चौरसिया, शिवकुमार शर्मा ... बड़ी लंबी सूची है। पंडित रविशंकर और उस्ताद अमीर ख़ान को छोड़कर बाक़ी प्रायः सभी नामी संगीतज्ञ उन दिनों पटना के दशहरा संगीत समारोहों की शोभा बन चुके थे।

60 वर्ष पहले पटना के दशहरा और संगीत का जो संबंध सूत्र क़ायम हुआ था वह 80 के दशक में आकर टूट-बिखर गया। उसी परंपरा को फिर से जोड़ने की एक तथाकथित सरकारी कोशिश वर्ष 2006 के दशहरा के मौक़े पर हुई लेकिन नाकाम रही।

खान-पान

जनता का मुख्य भोजन भात-दाल-रोटी-तरकारी-अचार है। वर्तमान में कुछ वर्षों से भोजपुरी व्यञ्जन लिट्टी -चोखा सर्वत्र मिलने लगे हैं। सरसों का तेल जिसे यहां आम बोलचाल में कड़वा तेल अथवा करुआ तेल कहा जाता है पारम्परिक रूप से खाना तैयार करने में प्रयुक्त होता है। खिचड़ी, जोकि चावल तथा दालों से साथ कुछ मसालों को मिलाकर पकाया जाता है, भी भोज्य व्यंजनों में काफी लोकप्रिय है। खिचड़ी, प्रायः शनिवार को, दही, पापड़, घी, अचार तथा चोखा के साथ-साथ परोसा जाता है। बिहार के खाद्य पदार्थों में लिटटी एवं बैंगन एवं टमाटर व आलू के साथ मिला कर बनाया गया चोखा बहुत ही प्रमुख है। विभिन्न प्रकार के सत्तूओं का प्रयोग इस स्थान की विशेषता है।

पटना को केन्द्रीय बिहार के मिष्ठान्नों तथा मीठे पकवानों के लिए भी जाना जाता है। इनमें खाजा, मावे का लड्डू,मोतीचूर के लड्डू, काला जामुन, केसरिया पेड़ा, परवल की मिठाई, खुबी की लाई और चना मर्की एवं ठेकुआ आदि का नाम लिया जा सकता है। इन पकवानो का मूल इनके सम्बन्धित शहर हैं जो कि पटना के निकट हैं, जैसे कि सिलाव का खाजा, बाढ का मावे का लाई,मनेर का लड्डू, विक्रम का काला जामुन, गया का केसरिया पेड़ा, बख्तियारपुर का खुबी की लाई, फतुहां की नमकीन व्यञ्जन मिरजई, चना मर्की, बिहिया की पूरी इत्यादि उल्लेखनीय है। हलवाईयों के वंशज, पटना के नगरीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में बस गए इस कारण से यहां नगर में ही अच्छे पकवान तथा मिठाईयां उपलब्ध हो जाते हैं। बंगाली मिठाईयों से, जोकि प्रायः चाशनी में डूबे रहते हैं, भिन्न यहां के पकवान प्रायः सूखे रहते हैं।

इसके अतिरिक्त इन पकवानों का प्रचलन भी काफी है -

  • पुआ, - मैदा, दूध, घी, चीनी मधु इत्यादि से बनाया जाता है।
  • पिठ्ठा - चावल के चूर्ण को पिसे हुए चने के साथ या खोवे के साथ तैयार किया जाता है।
  • तिलकुट - जिसे बौद्ध ग्रंथों में पलाला नाम से वर्णित किया गया है, तिल तथा चीनी गुड़ बनाया जाता है।
  • चिवड़ा या च्यूरा' - चावल को कूट कर या दबा कर पतले तथा चौड़ा कर बनाया जाता है। इसे प्रायः दही या अन्य चाजो के साथ ही परोसा जाता है।
  • मखाना - (पानी में उगने वाली फली) इसकी खीर काफी पसन्द की जाती है।
  • सत्तू - भूने हुए चने को पीसने से तैयार किया गया सत्तू, दिनभर की थकान को सहने के लिए सुबह में कई लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसको रोटी

के अन्दर भर कर भी प्रयोग किया जाता है जिसे स्थानीय लोग मकुनी रोटी कहते हैं।

  • लिट्टी-चोखा - लिट्टी जो आंटे के अन्दर सत्तू तथा मसाले डालकर आग पर सेंकने से बनता है, को चोखे के साथ परोसा जाता है। चोखा उबले आलू या बैंगन को गूंथने से तैयार होता है।

आमिष व्यंजन भी लोकप्रिय हैं। मछली काफी लोकप्रिय है और मुग़ल व्यंजन भी पटना में देखे जा सकते हैं। अभी हाल में कॉन्टिनेन्टल खाने भी लोगों द्वारा पसन्द किये जा रहे हैं। कई तरह के रोल, जोकि न्यूयॉर्क में भी उपलब्ध हैं, का मूल पटना ही है। विभाजन के दौरान कई मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गए और बाद में अमेरिका। अपने साथ -साथ वो यहां कि संस्कृति भी ले गए। वे कई शाकाहारी तथा आमिष रोलों रोल-बिहारी नाम से, न्यूयार्क में बेचते हैं। इस स्थान के लोग खानपान के विषय में अपने बड़े दिल के कारण मशहूर हैं।

दर्शनीय स्थल

 
विधान सभा
 
सभ्यता द्वार
 
हरमंदिर साहेब, पटना सिटी.
 
पटना के निकट बांकिपुर स्थित गोलघर (१८१४-१५)
  • सभ्यता द्वार - पटना महानगर की एक अलग पहचान के लिए यहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने गाँधी मैदान के उत्तर दिशा की ओर गंगा नदी के किनारे एक द्वार का निर्माण कराया जिसका नाम 'सभ्यता द्वार' है। यह बलुआ पत्थर से निर्मित चापनुमा स्मारक है। सभ्यता द्वार को मौर्य-शैली वास्तुकला के साथ बनाया गया है। इसमें बिहार राज्य तथा पाटलिपुत्र की परम्पराओं और प्राचीन संस्कृति की महिमा दिखाने के उद्देश्य से बनाया गया है। यहाँ प्रवेश पूर्णतः निःशुल्क है। यहां शाम को काफी पर्यटक आते हैं।
  • अगम कुँआमौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक के काल का एक कुआँ गुलजा़रबाग स्टेशन के पास स्थित है। पास ही स्थित एक मन्दिर स्थानीय लोगों के शादी-विवाह का महत्वपूर्ण स्थल है।
  • कुम्हरार - चंद्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार तथा अशोक कालीन पाटलिपुत्र के भग्नावशेष को देखने के लिए यह सबसे अच्छी जगह है। कुम्रहार परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित तथा संचालित है और सोमवार को छोड़ सप्ताह के हर दिन १० बजे से ५ बजे तक खुला रहता है।
  • क़िला हाउस (जालान हाउस) - दीवान बहादुर राधाकृष्ण जालान द्वारा शेरशाह के किले के अवशेष पर निर्मित इस भवन में हीरे जवाहरात तथा चीनी वस्तुओं का एक निजी संग्रहालय है।
  • तख्त श्रीहरमंदिर साहेब - पटना सिखों के दसमें और अंतिम गुरु गोविन्द सिंह की जन्मस्थली है। नवम गुरु श्री तेगबहादुर के पटना में रहने के दौरान गुरु गोविन्दसिंह ने अपने बचपन के कुछ वर्ष पटना सिटी में बिताए थे। बालक गोविन्दराय के बचपन का पंगुरा (पालना), लोहे के चार तीर, तलवार, पादुका तथा 'हुकुमनामा' यहाँ गुरुद्वारे में सुरक्षित है। यह स्थल सिक्खों के लिए अति पवित्र है।
  • महावीर मन्दिर - संकटमोचन रामभक्त हनुमान मन्दिर पटना जंक्शन के ठीक बाहर बना है। न्यू मार्किट में बने मस्जिद के साथ खड़ा यह मन्दिर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
  • गांधी मैदान - वर्तमान शहर के मध्यभाग में स्थित यह विशाल मैदान पटना का दिल है। जनसभाओं, सम्मेलनों तथा राजनीतिक रैलियों के अतिरिक्त यह मैदान पुस्तक मेला तथा दैनिक व्यायाम का भी केन्द्र है। इसके चारों ओर अति महत्वपूर्ण सरकारी इमारतें और प्रशासनिक तथा मनोरंजन केंद्र बने हैं।
  • गोलघर - 1770 ईस्वी में इस क्षेत्र में आए भयंकर अकाल के बाद अनाज भंडारण के लिए बनाया गया यह गोलाकार ईमारत अपनी खास आकृति के लिए प्रसिद्ध है। 1786 ईस्वी में जॉन गार्स्टिन द्वारा निर्माण के बाद से गोलघ‍र पटना शहर क प्रतीक चिह्न बन गया। दो तरफ बनी सीढियों से ऊपर जाकर पास ही बहनेवाली गंगा और इसके परिवेश का शानदार अवलोकन संभव है।
  • गाँधी संग्रहालय - गोलघर के सामने बनी बाँकीपुर बालिका उच्च विद्यालय के बगल में महात्मा गाँधी की स्मृतियों से जुड़ी चीजों का नायाब संग्रह देखा जा सकता है। हाल में इसी परिसर में नवस्थापित चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का अध्ययन केंद्र भी अवलोकन योग्य है।
  • श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र - गाँधी मैदान के पश्चिम भाग में बना विज्ञान परिसर स्कूली शिक्षा में लगे बालकों के लिए ज्ञानवर्धक केंद्र है।
  • पटना संग्रहालय - जादूघर के नाम से भी जानेवाले इस म्यूज़ियम में प्राचीन पटना के हिन्दू तथा बौद्ध धर्म की कई निशानियां हैं। लगभग ३० करोड़ वर्ष पुराने पेड़ के तने का फॉसिल यहाँ का विशेष धरोहर है।
  • ताराघर - संग्रहालय के पास बना इन्दिरा गाँधी विज्ञान परिसर में बना ताराघर देश में वृहत्तम है।
  • ख़ुदाबख़्श लाईब्रेरी - अशोक राजपथ पर स्थित यह राष्ट्रीय पुस्तकालय 1891 में स्थापित हुआ था। यहाँ कुछ अतिदुर्लभ मुगल कालीन पांडुलपियां हैं।
  • संजय गांधी जैविक उद्यान - राज्यपाल के सरकारी निवास राजभवन के पीछे स्थित जैविक उद्यान शहर का फेफड़ा है। विज्ञानप्रेमियों के लिए ‌यह जन्तु तथा वानस्पतिक गवेषणा का केंद्र है। व्यायाम करनेवालों तथा पिकनिक के लिए यह् पसंदीदा स्थल है।
  • दरभंगा हाउस - इसे नवलखा भवन भी कहते हैं। इसका निर्माण दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने करवाया था। गंगा के तट पर अवस्थित इस प्रासाद में पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों का कार्यालय है। इसके परिसर में एक काली मन्दिर भी है जहां राजा खुद अर्चना किया करते थे।
  • बेगू हज्जाम की मस्जिद - सन् 1489 में बंगाल के शासक अलाउद्दीन शाह द्वारा निर्मित
  • 'पत्थर की मस्जिद - जहाँगीर के पुत्र शाह परवेज़ द्वारा 1621 में निर्मित यह छोटी सी मस्जिद अशोक राजपथ पर सुलतानगंज में स्थित है।
  • शेरशाह की मस्जिद - अफगान शैली में बनी यह मस्जिद बिहार के महान शासक शेरशाह सूरी द्वारा 1540-1545 के बीच बनवाई गयी थी। पटना में बनी यह सबसे बड़ी मस्जिद है।

यातायात

 
जगदेव पथ मोर से शेखपुरा मोर तक बिहार का सबसे लंबा फ्लाईओवर

स्थानीय परिवहन - पटना शहर का सार्वजनिक यातायात मुख्यतः सिटी बसों, ऑटोरिक्शा और साइकिल रिक्शा पर आश्रित है। लगभग ३० किलोमीटर लंबे और ५ किलोमीटर चौड़े राज्य की राजधानी के यातायात की ज़रुरतें मुख्यरूप से ऑटोरिक्शा (जिसे टेम्पो भी कहा जाता है) ही पूरा करती हैं। स्थानीय भ्रमण हेतु टैक्सी सेवा उपलब्ध है, जो निजी मालिकों द्वारा संचालित मंहगा साधन है। नगर बस सेवा कुछ इलाको के लिए उपलब्ध है पर उनकी सेवा और समयसारणी भरोसे के लायक नहीं है। नगर का मुख्य मार्ग अशोक राजपथ टेम्पो, साइकिल-रिक्शा तथा निजी दोपहिया और चौपहिया वाहनों के कारण हमेशा जाम का शिकार रहता है।

सड़क परिवहन राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 तथा 19 नगर से होकर गुजरता है। राज्य की राजधानी होने से पटना बिहार के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है। बिहार के सभी जिला मुख्यालय तथा झारखंड के कुछ शहरों के लिए नियमित बस-सेवा यहाँ से उपलब्ध है। गंगा नदी पर बने महात्मा गांधी सेतु के द्वारा पटना हाजीपुर से जुड़ा है।

रेल परिवहन भारतीय रेल के नक्शे पर पटना एक महत्वपूर्ण जंक्शन है। भारतीय रेल द्वारा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अतिरिक्त यहाँ से मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, जम्मू, अमृतसर, गुवाहाटी तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध है।[28] पटना देश के अन्य सभी महत्वपूर्ण शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है। पटना से जाने वाले रेलवे मार्ग हैं- पटना-मोकामा, पटना-मुगलसराय' तथा पटना-गया। यह पूर्व रेलवे के दिल्ली-हावड़ा मुख्य मार्ग पर स्थित है।

 
दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल

वर्ष 2003 में दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। इसके 13 वर्ष बाद तीन फरवरी, 2016 से इस पर ट्रेन परिचालन शुरू किया गया।[29]

मेट्रो- वर्तमान में मेट्रो का डी.पी.आर. तैयार हो चुका है तथा चार-पांच वर्षों में पटना जंक्शन, नए बनते अन्तरराज्यीय बस अड्डा तथा उच्च न्यायालय को जोड़ती हुई मेट्रो यथार्थ होगी।

हवाई परिवहन पटना के अंतरराष्ट्रीय हवाई पट्टी का नाम लोकनायक जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है और यह नगर के पश्चिमी भाग में स्थित है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा संचालित लोकनायक जयप्रकाश हवाईक्षेत्र, पटना (IATA कोड- PAT) अंतर्देशीय तथा सीमित अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए बना है। air india, गो एयर, जेटएयर, स्पाइसजेट तथा इंडिगो की उडानें दिल्ली, रांची, कलकत्ता, मुम्बई तथा कुछ अन्य नगरों के लिए नियमित रूप से उपलब्ध है।

जल परिवहन पटना शहर १६८० किलोमीटर लंबे इलाहाबाद-हल्दिया राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-१ पर स्थित है। गंगा नदी का प्रयोग नागरिक यातायात के लिए हाल तक किया जाता था पर इसके ऊपर पुल बन जाने के कारण इसका महत्व अब भारवहन के लिए सीमित रह गया है। देश का एकमात्र राष्ट्रीय अंतर्देशीय नौकायन संस्थान पटना के गायघाट में स्थित है।

आर्थिक स्थिति

 
सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया, पटना

प्राचीन काल में व्यापार का केन्द्र रहे इस शहर में अब निर्यात करने लायक कम उपादान ही बनते हैं, हालांकि बिहार के अन्य हिस्सों में पटना के पूर्वी पुराने भाग (पटना सिटी) निर्मित माल की मांग होने के कारण कुछ उद्योग धंधे फल फूल रहे हैं। वास्तव में ब्रिटिश काल में इस क्षेत्र में पनपने वाले पारंपरिक उद्योगों का ह्रास हो गया एवं इस प्रदेश को सरकार के द्वारा अनुमन्य फसल ही उगानी पड़ती थी इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव इस प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा| आगे चल कर के इस प्रदेश में होने वाले अनेक विद्रोहों के कारण भी इस प्रदेश की तरफ से सरकारी ध्यान हटता गया एवं इस प्रकार यह क्षेत्र अत्यंत ही पिछड़ता चला गया।

आगे चल कर के स्वतंत्रता संग्राम के समय होने वाले किसान आंदोलन ने नक्सल आंदोलन का रूप ले लिया एवं इस प्रकार यह भी इस प्रदेश की औद्योगिक विकास के लिए घातक हो गया एवं आगे चल कर के युवाओं का पलायन आरंभ हो गया।

शिक्षा

साठ और सत्तर के दशक में अपने गौरवपूर्ण शैक्षणिक दिनों के बाद स्कूली शिक्षा ही अब स्तर की है। पटना में प्रायः बिहार बोर्ड तथा सीबीएसई के स्कूल हैं। अनुग्रह नारायण सिंह कॉलेज पटना का नामी कालेज है। इसने शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का नाम विदेशों तक मशहूर किया। हाल में ही बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग को एनआईटी का दर्जा मिला है। पटना विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय तथा नालन्दा मुक्त विश्वविद्यालय - ये तीन विश्वविद्यालय हैं जिनके शिक्षण संस्थान नगर में स्थित हैं।

हाल ही में पटना में प्रबंधन, सूचना तकनीक, जनसंचार एवं वाणिज्य की पढ़ाई हेतु 'कैटलिस्ट प्रबंधन एवं आधुनिक वैश्विक उत्कृष्टता संस्थान' अर्थात सिमेज कॉलेज की स्थापना की गयी है, जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नित नए मानदंड स्थापित कर रहा है।आइआइटी पटना तथा चाणक्या लॉ युनिवर्सिटी शिक्षा के क्षेत्र मे पटना मे अच्छे विकल्प हैं। पटना में प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह के स्कूल हैं | यहाँ के स्कूल बिहार विद्यालय परीक्षा समिति , आल इण्डिया इंडियन सर्टिफिकेट आफ सेकेंडरी एजुकेशन, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग या सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड से संबध है |यहाँ शिक्षा का माध्यम हिन्दी एवं अंग्रेजी है |

10+2+3/4 प्रणाली में विद्यार्थी दस साल की स्कूली शिक्षा के बाद हायर सेकेंडरी स्कूलों में जाते हैं जो बिहार राज्य इंटरमीडिएट बोर्ड. आल इंडिया कौंसिल फॉर दी स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन , आल इण्डिया इंडियन सर्टिफिकेट आफ सेकेंडरी एजुकेशन, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग या सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड से संबध हो सकते है | यहाँ वे कला, विज्ञान अथवा वाणिज्य विषय ले सकते हैं | इन्सके उपरान्त वे किसी सामान्य विषय में स्नातक कोर्स या व्यावसायिक शिक्षा यथा विधि, अभियंत्रण या चिकित्सा क्षेत्र जा सकते हैं |

पटना में कई प्रसिद्ध शिक्षण संस्थायें हैं – पटना विश्वविद्यालय पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय , पटना साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ बिहार , चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, आई.आई.टी., नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ,बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी, मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी यूनिवर्सिटी, पटना मेडिकल कॉलेज, आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज , चन्द्रगुप्त इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, नतिओन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फैसन टेक्नोलॉजी हैं |

पटना यूनिवर्सिटी कि स्थापना 1917 में हुई थी और यह भारतीय उपमहाद्वीप का सातवां सबसे पुराना यूनिवर्सिटी है | पटना पूर्व में फारसी शिक्षा का केंद्र रहा है और आज भी यहाँ कई अच्छे शिक्षण संस्थान हैं |

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. "NDA-backed Sita Sahu is first woman mayor of Patna". 19 June 2017. मूल से 22 June 2017 को पुरालेखित.
  2. "CPRS Patna About Us". CRPS. मूल से 5 March 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 October 2016.
  3. "Provisional Population Totals, Census of India 2011; Urban Agglomerations/Cities having population 1 lac and above" (PDF). Office of the Registrar General & Census Commissioner, India. मूल से 13 नवम्बर 2011 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 26 मार्च 2012.
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  5. "Development of Human Development Index at District Level for EAG States" (PDF). March 2016. मूल से 2 June 2021 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 31 May 2021.
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  12. "यहां मिलेगा 15 लाख रुपए में फ्लैट, गंगा किनारे लग्जुरियस लाइफ जीने का मौका". MoneyBhaskar. 13 July 2015. मूल से 1 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 March 2019.
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  25. Television and Development of Women By Preeti Kumari Archived 2013-11-11 at the वेबैक मशीन Google Book
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  29. "जून तक चालू हो पायेगा दीघा पुल". मूल से 3 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.