महर्षि
भारतीय आर्य संस्कृति में ज्ञान और तप की उच्चतम सीमा पर पहुँच चुके व्यक्ति महर्षि कहलाते हैं। इससे ऊपर ऋषियों की एकमात्र कोटि ब्रह्मर्षि की मानी जाती हैं। इससे निचे वाली कोटि राजर्षि की मानी जाती हैं।
हम सभी मनुष्यो में तीन प्रकार के चक्षु होते है वह है ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु । जिसका ज्ञान जाग्रत होता है उसे ऋषि कहते है, जिसका दिव्य चक्षु जाग्रत होता है उसे महर्षि कहते है एवं जिसका परम चक्षु भी जाग्रत हो जाता है उसे ब्रह्मर्षि कहते है ।ज्ञान चक्षु आंखो की पलकों के ऊपर दिखता है दिव्य चक्षु दोनों भौहों के मध्य होता है एवं परम चक्षु हमारी ललाट पर स्थित होता है । इसके अतरिक्त भारतवर्ष में अनेकों ऋषि,मुनि,महर्षि जैसे वाल्मीकि एवम् ब्रह्मऋषि हुए हैं। कई ब्रह्मऋषि स्वयं भगवान श्री राम कालीन हैं उन्होंने भगवान राम को ज्ञान एवम् रावण से लडने के लिए अस्त्र शास्त्र और शस्त्र प्रदान किए।
यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |