महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान
महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान (एमगिरि) वर्धा में स्थित है। यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के अधीन एक राष्ट्रीय संस्थान है।
एमगिरि की व्युत्पत्ति
संपादित करेंएमगिरि का उद्गम गांधीजी द्वारा स्थापित अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ से हुआ है। गांधीजी ने अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना 14-12-1934 को वर्धा में की थी। बापू की इच्छानुसार इस आंदोलन का नेतृत्व करने हेतु काँग्रेस ने स्थायित्व की अर्थव्यवस्था के सिद्धांत के लिए प्रख्यात डॉ. जोसेफ कार्नेलियस कुमारप्पा का चयन किया। इस संगठन के प्रथम अध्यक्ष कृष्णदास जाजू थे।
उद्देश्य
संपादित करेंविकेंद्रित ग्रामीण उद्योगों को विकेंद्रित ऊर्जा के आधार द्वारा समर्थ बनाने एवम सूक्ष्म व लघु उद्योगों को प्राधान्य देते हुए ऊर्जा की कार्यक्षम विकेंद्रित पद्धति द्वारा विकास की संपोषक संकल्पना के आधार पर नवीनतम अवसंरचना का विकास तथा उसके अनुकूल संयोजन करना।
ऊर्जा व अवसंरचना विभाग के संक्रियात्मक उद्देश्य इस प्रकार हैं :-
1) कम उर्जा से अति उर्जा की आवश्यकता वाले क्षेत्रों के भागों पर विचार कर कार्यनीति बनाना एवं उनकी ऊर्जा पूर्ति के लिए स्थानीय संसाधनों के नवप्रवर्तित प्रयोग द्वारा माँग कार्यक्षेत्र पर विचार करना।
2) ऊर्जा की अवश्यकता समुचित पूर्ति को ध्यान में रखकर उत्पाद/पैमाना/संदर्भ से मेल खाते उपकरण/पद्धतियाँ/ऊर्जा का विचार करते हुए उत्पाद/प्रक्रियाओं का स्वरूप बदलना।
3) उचित मानव-मशीन पद्धतियो के ढाँचे द्वारा रोजगार को निश्चित करने के लिए गुणवत्ता व उत्पादकता को नजरअंदाज़ किए बिना वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए समूहिक प्रौद्योगिकी विकास एवं निर्माण करना।
4) भवन निर्माण के भागों, मजबूत संरचना, प्रतिस्थापना/परिवहन व पैकिंग को कम करने क साथ ही कचरे के पुनः चक्रीकरण को बढ़ावा देकर सामुदायिक उपभोग के क्षेत्र में अन्न, कपड़ा व निवास के लिए नवीनतम कल्पनाओं को शीघ्र कार्यान्वित करना, संपोषित जीवन शैली हेतु मदद करना तथा लागत व्यय में कमी करना।
5) शिल्पकारों, महिलाओं, कमजोर क्षेत्रों, विकलांगों आदि द्वारा प्रयोग में आने वाले उपकरणों/पद्धतियाँ को नवीनतम ऊर्जा आधार प्रदान कर महत्व को बढ़ावा देना, समानता/ मनुष्य बल में वृद्धि करना।
6) ऊर्जा के उच्चस्तरीय आयाम जैसे उर्जा संरक्षण, उर्जा लेखा एवं विकेन्द्रित उर्जा कार्यनीतियों को ध्यान में रखते हुए पंचायत समूहों के लिए व्यवहार्य कार्य योजना बनाना एवं इसके विकास मे मदद करना।