महावरत विद्यालंकर ( -- मृत्यु १९६३) का भारतीय वामपंथी राष्ट्रवादी नेता और अनुवादक थे। वे सुभाष चन्द्र बोस के निकट सलाहकार और अखिल भारतीय फ़ार्वर्ड ब्लॉक के संस्थापक थे। यह दल भारतीय स्वतंत्रता पर सबसे अडिक रवैय्या अपनाए हुए था। महावरत स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान लाल किले में क़ैद रहे थे।

महावरत विद्यालंकर
जन्म भारत
मौत 1963

प्रारंभिक जीवन संपादित करें

एक नवयुवक के तौर पर विद्यालंकर को उनके पिता ने इंजिनियारिंग की शिक्षा पूरी करने स्कॉटलैण्ड के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय भेजा था। यहाँ उनका सम्पर्क कई वामपंथी विद्वानों से हुआ था और मार्क्सी विचारधारा से वे प्रभावित हुए थे। स्नातक की शिक्षा पूरी करके वे गुप्त रूप से मार्क्सी-लेनिनी विचारधारा के अध्ययन के लिए रूस चले गए। उन्होंने रूस में लगभग 17 बिताए और रूसी भाषा के विद्वान बन गए थे। उन्होंने ने रूसी साहित्य का हिन्दी में अनुवाद किया। इस दौरान उन्होंने मंगोलिया का विस्तार से दौरा किया और मंगोलियाई साहित्य का हिन्दी में अनुवाद भी किया। मंगोलिया में निवास के समय उनका सम्पर्क बोरिजिगिन दोशदोरिजिन नतसगदोर्ज से हुआ जो वहाँ की भाषा-साहित्य में कवि और लेखक के रूप में प्रसिद्ध थे। विद्यालंकर ने इसके पश्चात नतसगदोर्ज के कई कार्यों का हिन्दी में अनुवाद किया।[1] वे भारत को साम्राज्यवाद की एक नई समझ के साथ लौटे और उनका विश्वास था कि समाजवाद ही भारत को अर्थपूर्ण और वास्तविक स्वतंत्रता दिला सकता है।

आगे का जीवन संपादित करें

कई वर्ष काँग्रेस के साथ काम करने के बाद विद्यालंकर सुभाष चन्द्र बोस से मिले। उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को भारत के संघर्ष के लिए रूस जाने के लिए प्रोत्साहित किया। विद्यालंकर ने संस्कृत, रूसी और मंगोलियाई भाषा के विद्वान के रूप में इन भाषाओं की कई पुस्तकों का हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। उनका देहान्त 1965 में हुआ। उनके तीन बच्चे थे। ये सारे बच्चे आखिरकार भारत छोड़कर कहीं और चले गए।

निवासीय स्थान संपादित करें

महावरत विद्यालंकर पुरानी दिल्ली के पहाड़ी धीरज क्षेत्र में रहते थे। उनके घर को "दयाल निवास" कहा जाता था जो कि उनके पिता "हर दयाल सिंह सैनी" के नाम पर आधारित है। यह घर कई भूमिगत भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के छिपने का ठिकना था जिनमें शील भद्र याजी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजिनी नायडू और महावीर त्यागी शामिल थे। आज़ाद हिन्द फ़ौज के कई बहादुर जैसे कि ढिल्लों और सहगल भी यहा रहे थे। दरअसल जब अंग्रेज़ों ने विद्यालंकर को गिरफ़्तार किया था तब सरोजिनी नायडू ही ने उनकी बेटी इंदिरा को अपने पुत्र जयसूर्य और बहू के साथ रहने के लिए भेजा क्योंकि कई वर्ष पूर्व ही लड़की की माँ टी०बी० के रोग से मर चुकी थी। यह ऐतिहासिक निवास पुरानी दिल्ली की मन्दिर वाली गली में अब भी स्थित है।

संतान संपादित करें

विद्यालंकर के तीन बच्चे 1950 के दशक में अमरीका चले गए और उत्तरी पेनसिलवेनिया में रहते हैं। उनकी एक ही पुत्री इंदिरा कुमारी स्क्रैन्टन में वनस्पति विज्ञान और जीवविज्ञान की प्रोफ़ेसर बन चुकी हैं। वह गोकरन नाथ श्रीवास्तव के विवाह में हैं जो कि स्क्रैन्टन विश्वविद्यालय मे भौतिक विज्ञान के प्रमुख प्रोफ़ेसर हैं। उन्होंने सर्वप्रथम इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी पर काम करने वालों में अपना नाम दर्ज किया है।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 अगस्त 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जुलाई 2016.
  • Madhya Pradesh Through the Ages, pp 417, By S.R. Bakshi And O.P. Ralhan, Sarup & Sons, 2007
  • Terrorism is Comes from Us by Barathkumar PKT By A.Palanivelu
  • Communism in India, 1924–1927, pp 106, Sir David Petrie, Mahadeva Prasad Saha, Sir Cecil Kaye - 1927