मांडणा, राजस्थान, हरियाणा, ब्रज, मालवा, निमाड़ आदि क्षेत्रों की एक प्राचीन भूमि-भीत अलंकरण की समृद्ध लोककला चित्रकला विधा है। 'मांडणे' का अर्थ है मांडना, यानी चित्र बनाना। इसका एक अन्‍य तात्पर्य है, घर-पूरा भरना। घर पूरा भरने का अर्थ है, घर में अन्न, धन, धान्य, वैभव, सुख, शांति, ऐश्वर्यादि किसी भी वस्तु की कमी न हो। घर में कोई शुभावसर आए, माङ्गलिक कार्य हो, व्रत-त्योहार हो तब मांडणे मांडे जाते है। परन्तु केवल ये मांडणे विशेष पर्वादि पर्यन्त सीमित नहीं, इन्हें गृह, द्वार, भीत, चौखट, आदि सज्जा हेतु मांडणे मांडे जाते हैं। एक किवदन्ती के अनुसार, जब लक्ष्मण कुटिया से श्री राम की आवाज के पीछे जाने लगे, तब सीता माता की रक्षा हेतु लक्ष्मण रेखा खींची। यहीं से मांडणे का प्रारम्भ हुआ। राजस्‍थान के ग्रामीण क्षेत्रों में कच्‍चे घरों के आंगन में गोबर से लीपकर खड़ी से मांडणे बनाने की प्रथा बहुत पुरानी है।

एक माँडणा चित्र

माँगलिक भिति चित्रकारी माँडना को घर-बार की रक्षा करने, अपने घर में देवी - देवताओं का स्वागत करने तथा त्यौहारों के अवसर पर उसे मनाने के उद्देश्य से बनाया जाता है। राजस्थान के सवाई माधोपुर क्षेत्र में गाँव की महिलाओं में बिलकुल सही अनुपात एवं शुद्धता से डिजाइन बनाने की स्वाभाविक क्षमता हैं। मीणा जनजाति की महिलाएँ इसमें विशेष रूप से दक्ष हैं।

मांडणा चित्रण बनाने क लिए राजस्थानी महिलाएं फर्श पर कुछ बिन्दुओं के निशान बनाती हैं जिन्हें तपकिस कहा जाता है। फिर इन तपकिस को रेखाओं से जोड़ कर एक रेखाचित्र बनाया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक मांडणा चित्रकारी के साथ एक रेखाचित्र सम्बद्ध है जो उसके चित्रण में अत्यंत सहायक होता है। [1]

मांडणें गेरू (लाल मिट्टी), चूना अथवा खड़िया (सफेद/धौळी मिट्टी) से बनते है, यही इसके मुख्य घटक है। ब्रश बनाने हेतु कई विधियाँ हैं। नीम, बबूल, आम की दातुन को तोड़ उसके सिरे को पत्थर से कुचलते है, इससे उसका सिरा ब्रश जैसा काम देती है। दूसरी विधि में, सींक, छोटी लकड़ी के सिरे पर थोड़ी सी लोगड़/कपास अर्थात रुई लपेटी जाती है, फिर उसे धागे से बांध दिया जाता है कही खुल न जाए। तीसरी विधि में, कपड़े के टुकड़े के को गेरू या ख‍ड़ी में भीगा कर सीधे बनाया जाता है। यह थोड़ा कठिन है, इसमें टिसू पेपर भी ले सकते है।

विशेषताएँ

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मांडनों में प्रायः गणितीय ज्यामिति कलाकृतियों से बनाया जाता है। गोल, षट्कोण, अष्टकोण, बेलनाकार, त्रिभुज, आयात, समानतर, असमान्तर आदि आकारों द्वारा बना उनमें भर्ती भरी जाती है। मांडणा घर में शुभता, ऐश्वर्य, हर्ष, पुण्य, लाभ, समृद्धि का प्रतीक माना गया। इसे बनाने से माँ लक्ष्मी का वास घर में सदैव बना रहता है। मांडणा कला पूर्णतया प्राकृतिक है। सभी रंगों को प्रकृति से प्राप्त किया जाता है। मांडणे, रंगोली से कहीं अधिक लंबे चलते हैं, इनपर आसानी से झाड़ू लगाई जा सकती है। ये मांडणे पर जल्दी सुख जाते है, जिससे बिगड़ने का भय समाप्त हो जाता है, और अधिक समय तक टिका रहता है। मांडणे शुभ कार्यों के साथ साथ, देव-पितृ कार्यों, तंत्र-मंत्र क्रियाओं, व्रत-बडुलों आदि पर भी बनाए जाते हैं।

  1. Chaitanya, Krishna (1994). A history of Indian painting (1 publ. संस्करण). New Delhi: Abhinav Publ. पृ॰ 73. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170173106.