भाटुन्द गाँव में माँ शीतला माताज़ी का भव्य व ऐतिहासिक मन्दिर है। यहाँ पर साल में दो बार माँ शीतला माता का मेला लगता है। लोक मान्यता इस प्रकार है कि यहाँ पर जंगलों में बाबरा नामक राक्षस रहता था। यहाँ पर ब्राहमणो की लड़कियों की शादी होती थी तब वह राक्षस फेरो के समय वहाँ आ जाता था और वर ( दुल्हे ) को खा जाता था , इसलिए यहाँ के ब्राहमणो की लड़कियां कुंवारी ही रहने लगी , कोई भी लड़का शादी केलिए तैयार नही होता था। तब यहाँ के ब्राहमण बहुत दुखी रहनें लगे । ब्राहमणो ने माँ शीतला माता की घोर तपस्या की , ब्राहमणो की तपस्या से माँ प्रसन्न होकर दर्शन दिए , ब्राहमणो ने अपनी तकलीफ का वर्णन माँ के समक्ष प्रस्तुत किया, माँ ने वचन दिया कि तुम अपनी बेटियों की शादी धूम धाम से करो , माँ का वचन सुनकर ब्राहमणो ने अपनी बच्चियों की शादी करने की तैयारी की , फैरो के समय राक्षस वहाँ दुल्हे को खाने के लिए आया, माँ उस राक्षस का वध किया, मरते मरते राक्षस ने माँ से पानी व खाना खाने की इच्छा प्रकट की । माँ ने उसको वचन दिया कि साल मे दो बार तुमको पानी व खाना दिया जाएगा , ब्राहमणो के आव्हान पर माँ सदैव के लिए यहाँ रह गई। चैत्र कृष्ण सप्तमी व ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को साल मे दो बार माँ शीतला माता का मेला लगता है। और उस राक्षस को पानी व खाना दिया जाता है। माँ शीतला माता के सामने एक शीतला माता कुण्ड ( ऊखली ) है जो एक फिट गहरी है जिसमे गाँव की महिलाएं घड़ों द्वारा पानी डालती है लेकिन वह ऊखली कभी नहीं भरती , गाँव वालो की मान्यता है कि यह पानी राक्षस पीता है। एक बार सिरोही दरबार ने भी इस ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप से पूरे शरीर में कोढ़ निकल गये थे, माँ की आराधना करने पर ठीक हुए थे।