माइगुएल एंजल आस्तुरियस

माइगुएल एंजल आस्तुरियस (1899-1974) ग्वाटेमाला के कवि और उपन्यासकार थे। 1967 ई० में साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेता।

माइगुएल एंजल आस्तुरियस
माइगुएल एंजल आस्तुरियस
जन्म19 अक्टूबर, 1899
ग्वाटेमाला,
(लैटिन अमेरिका)
मौत9 जून, 1974
मैड्रिड, स्पेन
पेशासाहित्य
राष्ट्रीयताग्वाटेमाला
कालआधुनिक
विधाकविता, उपन्यास
आंदोलनअतियथार्थवाद

जीवन-परिचय

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माइगुएल एंजल आस्तुरियस का जन्म ग्वाटेमाला में 19 अक्टूबर, 1899 ई० को हुआ था।[1] उनका घर समृद्ध था। पिता मजिस्ट्रेट थे और माता स्कूल में अध्यापिका थी। उस समय तानाशाही के विरुद्ध आंदोलन का आरंभ हो चुका था और 1902 तथा 1903 ईस्वी में छात्रों ने भी विरोध में भाग लिया था। एक मजिस्ट्रेट होने के नाते माइगुएल आस्तुरियस के पिता को उन पर कठोर कार्यवाही करनी थी, परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। अतः उन्हें आंदोलन का समर्थक मानकर नौकरी से हटा दिया गया। उनकी मां की नौकरी भी समाप्त कर दी गयी। इसके बाद उनका परिवार ग्वाटेमाला से सलामा गाँव में दादा के पास चला गया, जहाँ उनकी पैतृक जमीन थी। 1970 ईस्वी में शांति स्थापित होने पर उनका परिवार पुनः ग्वाटेमाला लौटा। परंतु, राजनीतिक शांति के बाद भी प्राकृतिक शांति न रही और 25 दिसंबर 1917 ईस्वी को ग्वाटेमाला में आये भयंकर भूकंप में नगर ही नष्टप्राय हो गया। तीन-चार वर्षों तक निर्माणकार्य ही चलता रहा और 1920 में सरकार का तख्ता पलट गया। उन दिनों आस्तूरियस कानून की पढ़ाई कर रहे थे और कोर्ट के सेक्रेटरी भी थे। गद्दी से उतारे गये तानाशाह कावरेरा से आस्तूरियस की जेल में प्रायः प्रतिदिन मुलाकात होती थी और इस तरह से तानाशाही सेना एवं उसके अन्य अंग तथा आंदोलनों से संबंधित विभिन्न बातों का भली प्रकार वे अध्ययन करते रहे और इस अध्ययन को अपने लेखन का मुख्य विषय बनाया। फिर पिता ने उन्हें देश की अव्यवस्थित स्थिति के कारण लंदन भेज दिया। उन्होंने कानून और लोक साहित्य का अध्ययन किया था। 1920 के दशक में वे पेरिस में भी रहे थे। वहीं लैटिन अमेरिकी संस्कृति और धर्म के विशेषज्ञ रेनां नामक एक प्राध्यापक से उनकी मुलाकात हुई थी। इसी दशक में वे अपने देश की कूटनीतिक सेवा में आ गये थे। सरकार बदलने पर 1966 से 1970 तक अपने देश के राजदूत के रूप में वे पेरिस में भी रहे थे।[2]

रचनात्मक परिचय

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आस्तुरियस ने 1925 ई० में साहित्य-रचना काव्य-लेखन से आरंभ की और बाद में उपन्यास के क्षेत्र में आ गये।[2] उनका उपन्यास द प्रेजिडेंट 1946 ई० में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक में उन्होंने अपने पूर्व अनुभवों द्वारा लैटिन अमेरिका के तानाशाहों की भर्त्सना की है। वस्तुतः लैटिन अमेरिकी देशों के तानाशाहों ने अनेक बार लोकतंत्र का गला घोंटने का यत्न किया था। आस्तुरियस सदा इसके विरोध में लिखते रहे।[1]

प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें

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  1. द प्रेजीडेण्ट - 1946
  2. मैन ऑफ कार्न
  3. स्ट्रांग विण्ड
  4. द ग्रीन पोप
  1. नोबेल पुरस्कार कोश, सं०-विश्वमित्र शर्मा, राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली, संस्करण-2002, पृ०-246.
  2. नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार, राजबहादुर सिंह, राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली, संस्करण-2007, पृ०-216.