मातरिश्वा (१) वेदों में यह शब्द (मातरिश्वन्) वायु के अर्थ में नहीं प्रयुक्त हुआ है, पर यास्क (नि० ७.२६) तथा सायण के मतानुसार यह पवन का ही दूसरा नाम है। ऋग्वेद (३,५,९) में यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करनेवाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है और उसी में अन्यत्र वर्णन है कि मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था।

मातरिश्वा (२)

ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।