माता अमृतानंदमयी
माता अमृतानंदमयी देवी (देवनागरी: माता अमृतानंदमयी, मलयालम: മാതാ അമൃതാനന്ദമയി, जन्म सुधामणि इदमन्नेल, 27 सितम्बर 1953) एक हिन्दू आध्यात्मिक नेत्री व गुरु हैं, जिन्हें उनके अनुयायी संत के रूप में सम्मान देते हैं और "अम्मा ", "अम्माची" या "मां" के नाम से भी जानते हैं। मानवतावादी गतिविधियों के लिए उन्हें व्यापक स्तर पर सम्मान प्राप्त है।[2] कभी-कभी उनकी ओर "प्रेम से गले लगाने वाली संत" के नाम से भी संकेत किया जाता है।[3][4]
माता अमृतानंदमयी | |
---|---|
जन्म |
27 सितंबर 1953[1] |
नागरिकता | भारत |
पेशा | गुरु |
पदवी | कुलाधिपति |
धर्म | हिन्दू धर्म |
वेबसाइट https://www.embracingtheworld.org/, https://www.amma.org |
माता अमृतानंदमयी मठ के उपाध्यक्ष स्वामी अमृतास्वरुपनन्द पुरी के अनुसार, "अम्मा के लिए दूसरों के दुःख को दूर करना उतना ही स्वाभाविक है जैसे कि अपनी आंखों के आंसू पोछना। दूसरों की खुशी में ही अम्मा की खुशी है। दूसरों की सुरक्षा में ही अम्मा अपनी सुरक्षा मानती हैं। दूसरों के विश्राम में ही अम्मा का विश्राम है। यही अम्मा का सपना है। और यही वह सपना है जिसके लिए मां ने अपना जीवन मानवता के जागरण के प्रति समर्पित कर दिया है।"[5]
जीवनी
संपादित करेंमाता अमृतानंदमयी देवी का जन्म पर्यकडवु (जो अब कभी कभी अमृतापुरी के नाम से भी जाना जाता है) के छोटे से गांव अलप्पढ़ पंचायत, जिला कोलम, केरल में 1953 में सुधामणि इदमन्नेल के रूप में हुआ था।[6] 9 वर्ष की आयु में उनका विद्यालय जाना बंद हो गया था और वे पूरे समय अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल और घरेलू काम करने लगीं.[7]
इन कार्यों के एक हिस्से के रूप में सुधामणि इदमन्नेल अपने परिवार की गायों और बकरियों के लिए अपने पड़ोसियों से बचा हुआ भोजन एकत्र करती थीं। अम्मा बताती हैं कि उन दिनों वे अत्यधिक निर्धनता और अन्य लोगों के कष्टों के कारण अत्यधिक दुःख से गुजर रही थीं। वे अपने घर से इन लोगों के लिए वस्त्र और खाना लाती थीं। उनका परिवार, जोकि धनवान नहीं था, इसके लिए उन्हें डांटता था और दण्डित करता था। अम्मा कभी कभी अचानक ही लोगों को दुःख से राहत पहुंचाने के लिए उन्हें गले से लगा लेती थीं। जबकि उस समय एक 14 वर्ष की कन्या को किसी को भी स्पर्श करने की आज्ञा नहीं दी जाती थी, ख़ास तौर पर पुरुषों को स्पर्श करने की। लेकिन अपने माता-पिता से विपरीत प्रतिक्रियाएं मिलने के बावजूद भी अम्मा ऐसा ही करती रहीं। [7] दूसरों को गले लगाने की बात पर अम्मा ने कहा, "मै यह नहीं देखती कि वह एक स्त्री है या पुरुष. मै किसी को भी स्वयं से भिन्न रूप में नहीं देखती. मुझसे संसार की सभी रचनाओं की ओर एक निरंतर प्रेम धारा बहती है। यह मेरा जन्मजात स्वभाव है। एक चिकित्सक का कर्तव्य रोगियों का उपचार करना होता है। "इसी प्रकार मेरा कर्तव्य उन लोगों को सांत्वना देना है जो कष्ट में हैं।"
उनके माता-पिता द्वारा उनके विवाह के अनेकों प्रयासों के बावजूद भी अम्मा ने सभी निवेदकों को अस्वीकार कर दिया। [8] 1981 में, जब अनेकों जिज्ञासु पर्यकडवु में आकर अम्मा के शिष्य बनने के लिए उनके माता-पिता की संपत्ति में रहने लगे तो, एक विश्वस्तरीय संगठन, माता अमृतानंदमयी मठ की स्थापना की गयी।[9] अम्मा इस मठ की अध्यक्ष थीं। आज माता अमृतानंदमयी मठ अनेकों आध्यात्मिक और धर्मार्थ गतिविधियों में संलग्न है।[10]
1987 में, अपने श्रद्धालुओं के अनुरोध पर, अम्मा विश्व के सभी देशों में कार्यक्रम आयोजित करने लगीं. तब से वे प्रतिवर्ष ऐसा करती हैं। वे देश जहां अम्मा के कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं उनमे निम्न देश शामिल हैं: ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ब्राज़ील, कनाडा, चिली, दुबई, इंग्लैंड, फिनलैंड, फ़्रांस, जर्मनी, होलैंड, आयरलैंड, इटली, जापान, केन्या, कुवैत, मलेशिया, मॉरिशस, रीयूनियन, रशिया, सिंगापूर, स्पेन, श्रीलंका, स्वीडेन, स्विटज़रलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका. वे प्रतिवर्ष भारत में वार्षिक भ्रमण भी करती हैं।[11]
दर्शन
संपादित करेंसंस्कृत में दर्शन का अर्थ होता है 'देखना'. हिन्दू पारंपरिक प्रथा में यह पवित्र व्यक्ति या वस्तु को देखने की ओर संकेत करता है। आदर्श रूप में यह किसी मंदिर में एक ईश्वर की छवि में उस पवित्र व्यक्ति या वस्तु के दर्शन के सदृश होता है।[12] किसी देवता की छवि देखने में दर्शंनकर्ता अपनी आंखों के माध्यम से उस देवता की शक्तियों को ग्रहण करते हैं।[13] अतः दर्शन में, दर्शंनकर्ता को सौभाग्य, कल्याण और ईश्वरीय प्रभाव प्रदान करने की क्षमता होती है। अम्मा के अनुयायी इस शब्द का प्रयोग विशिष्ट रूप से प्रेमपूर्वक आलिंगन किये जाने के बेहद मांगपूर्ण संस्कार के लिए करते हैं।
अम्मा अपनी किशोरावस्था से ही इस तरह से दर्शन दे रही हैं। यह प्रथा किस प्रकार शुरू हुई इस सम्बन्ध में अम्मा बताती हैं कि, "लोग यहां आकर [मुझे] अपनी समस्याओं के बारे में बताया करते थे। वे रोते थे और मैं उनके आंसू पोंछा करती थी। जब वे रोते-रोते मेरी गोद में गिर जाया करते थे, तो मै उन्हें गले से लगा लेती थी। फिर अगला व्यक्ति भी मुझसे ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद रखता था।..और इस तरह से यह रिवाज़ बन गया।"[14] अम्मा का संगठन, माता अमृतानंदमयी मठ यह दावा करता है कि अम्मा ने इस दुनिया के 29 मिलियन से भी अधिक लोगों को अपने गले से लगाया है।[15] · [4]
जब सन 2002 में उनसे यह पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है उनका आलिंगन किस हद तक दुनिया के बीमारों की सहायता करता है? अम्मा ने कहा, "मैं यह नहीं कहती कि मैं इनकी समस्याओं का 100 प्रतिशत समाधान कर सकती हूं. इस संसार को परिवर्तित [पूरी तरह से] करने का प्रयास करना ठीक वैसा ही है जैसे कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को सीधा करना. लेकिन लोगों से ही समाज का जन्म होता है। इसलिए लोगों को प्रभावित करने के द्वारा, आप इस समाज में परिवर्तन ला सकते हैं और इसके द्वारा इस संसार में परिवर्तन लाया जा सकता है। आप परिवर्तन ला सकते हैं, पर इसे पूरी तरह परिवर्तित नहीं कर सकते. प्रत्येक व्यक्ति के मष्तिष्क में चलने वाला युद्ध ही वास्तविक युद्धों के लिए उत्तरदायी है। इसलिए यदि आप लोगों को स्पर्श कर सकते हैं, तो अप इस विश्व को भी स्पर्श कर सकते हैं।"[14]
अम्मा का यह दर्शन ही उनके जीवन का केंद्र है क्योंकि 1970 के उत्तरार्ध से वह लगभग प्रतिदिन ही लोगों से मिलती हैं। इसके साथ ही अम्मा का आशीर्वाद पाने के लिए आने वाले लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि वह लगातार 20 घंटों तक दर्शन देती रहती हैं।[8] 2004 की एक पुस्तक फ्रॉम अम्मा'ज़ हार्ट, में अंकित संवाद में अम्मा कहती हैं; "जब तक मेरे ये हाथ ज़रा भी हिल पाने और मेरे पास आने वाले लोगों तक पहुंच पाने में समर्थ रहेंगे और जब तक मुझमें रोते हुए व्यक्ति के कंधे पर अपना हाथ रखने और पर प्रेम से हाथ फेरने तथा उनके आंसू पोंछने की शक्ति रहेगी, तब तक यह अम्मा दर्शन देती रहेगी. इस नश्वर संसार का अंत होने तक, लोगों पर प्रेम से हाथ फेरना, उन्हें सांत्वना देना और उनके आंसू पोंछना, यही अम्मा की इच्छा है।"[16]
शिक्षाएं
संपादित करेंपुस्तक द टाइमलेस पाथ, में अम्मा के एक वरिष्ठ शिष्य, स्वामी रामकृष्णनंदा पुरी लिखते हैं: "अम्मा द्वारा मन में बैठाया गया [आध्यात्मिक] पाठ ठीक वैसा ही है जैसा कि हमारे वेदों में दिया गया है और उनके बाद के पारंपरिक धार्मिक ग्रंथों में संक्षेप में दोहराया गया है जैसे भगवद गीता."[17] अम्मा स्वयं ही कहती हैं, "कर्म [क्रिया], ज्ञान और भक्ति यह तीनों ही आवश्यक हैं। यदि भक्ति और कर्म एक पक्षी के दो पंख हैं तो ज्ञान उसका अंत सिरा है। इन तीनों की सहायता से ही पक्षी उंचाइयों तक पहुंच सकता है।"[18] वह सभी धर्मों की विभिन्न प्रार्थनाओं और आध्यात्मिक परिपाटियों को मष्तिष्क के निर्मलीकरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए विविध पद्धतियों के रूप में देखती हैं।[19] इसके साथ ही अम्मा ध्यान, कर्म योग पर आधारित क्रियाओं, परोपकार और करुणा, धैर्य, दया, आत्म नियंत्रण जैसे दैवीय गुणों के विकास के महत्व पर भी बल देती हैं, अम्मा कहती हैं कि इन गुणों का अभ्यास हमारे मष्तिष्क को परिष्कृत करता है, इसे अंतिम सत्य को आत्मसात करने के योग्य बनाता है: अंतिम सत्य यह है कि हमारा अस्तित्व इस शरीर और मष्तिष्क की सीमा में सीमित नहीं हैं अपितु यह एक आनंदमय चेतना है जो इस ब्रह्माण्ड के अद्वैत अधःस्तर के रूप में कार्य करती है।[17] इस विचार को ही अम्मा जीवनमुक्ति [जीवित अवस्था में ही मुक्ति] कहती हैं। अम्मा कहती हैं, "जीवनमुक्ति कोई ऐसी अवस्था नहीं है जिसे मृत्यु के बाद प्राप्त किया जाये और ना ही आपको इसका अनुभव या प्राप्ति किसी दूसरे संसार में होगी. यह पूर्ण चेतना और समवृत्ति की एक अवस्था है जिसका अनुभव इस जीवित शरीर को धारण किये हुए ही इसी संसार में अभी ही किया जा सकता है। अपने स्व के साथ एकीकृत होकर इस उच्चतम सत्य का अनुभव करने के बाद, ऐसी आनंदमय आत्म को पुनः जन्म लेने की आवश्यकता नही होती. वह अनंत चेतना के साथ एकीकृत हो जाती है।"[18]
धर्मार्थ मिशन
संपादित करेंअम्मा के विश्वव्यापी धर्मार्थ मिशन में बेघर लोगों के लिए 100,000 घर, 3 अनाथ आश्रम बनाने का कार्यक्रम और 2004 में भारतीय सागर में सुनामी[20] जैसी आपदाओं से सामना होने की अवस्था में राहत-और-पुनर्वास, मुफ्त चिकित्सकीय देखभाल, विधवाओं और असमर्थ व्यक्तियों के लिए पेंशन, पर्यावरणीय सुरक्षा समूह, मलिन बस्तियों का नवीनीकरण, वृद्धों के लिए देखभाल केंद्र और गरीबों के लिए मुफ्त वस्त्र और भोजन आदि कार्यक्रम सम्मिलित हैं।[10] यह परियोजनाएं अनेकों संगठनों द्वारा संचालित की जाती हैं जिसमे माता अमृतानंदमयी मठ (भारत), माता अमृतानंदमयी सेंटर (संयुक्त राज्य अमेरिका), अम्मा-यूरोप, अम्मा-जापान, अम्मा-केन्या, अम्मा-ऑस्ट्रेलिया आदि शामिल हैं। यह सभी संगठन संयुक्त रूप से एम्ब्रेसिंग द वर्ल्ड (विश्व को गले लगाने वाले) के रूप में जाने जाते हैं।
जब 2004 में उनसे यह पूछा गया कि उनके धर्मार्थ मिशन का विकास कैसा चल रहा है तो अम्मा ने कहा, "जहां तक गतिविधियों की बात है यह किसी योजना पर आधारित नहीं हैं। सब कुछ सहज रूप से होता है। ग़रीबों और व्यथित लोगों की दुर्दशा देखकर एक कार्य ही दूसरे कार्य का माध्यम बना. अम्मा प्रत्येक व्यक्ति से मिलती हैं, वे प्रत्यक्ष ही उनकी समस्याओं को देखती हैं और उनके कष्टों को दूर करने का प्रयास करती हैं। ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु, यह सनातन धर्मं के प्रमुख मन्त्रों में से एक है, जिसका अर्थ होता है, 'इस संसार के सभी प्राणी प्रसन्न और शांतिपूर्ण रहें.' इस मंत्र की भावना को ही कर्म का माध्यम बनाया गया है।"[21]
अधिकांश कार्य स्वयंसेवकों द्वारा आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में किया जाता है। "यह अम्मा की इच्छा है कि उनके सभी बच्चे इस विश्व में प्रेम और शांति के प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दें. अम्मा कहती हैं "ग़रीबों तथा पीड़ितों के लिए सच्ची करुणा ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और भक्ति है।" "मेरे बच्चे उन्हें भोजन कराते हैं जो भूखे हैं, ग़रीबों की सहायता करते हैं, दुखी लोगों को सांत्वना देते हैं, पीड़ितों को राहत पहुंचाते हैं और सभी के प्रति दानशील हैं।"[17]
भजन
संपादित करेंअम्मा अपने भक्ति संगीत के लिए भी बहुत प्रसिद्ध हैं। उनके द्वारा गाये गए भजनों की 100 से अधिक रिकॉर्डिंग, 20 से भी अधिक भाषाओँ में उपलब्ध हैं। उन्होंने दर्ज़नों भजनों की रचना की है और उन्हें पारंपरिक रागों के अनुसार ढाला है। भक्ति गीतों को आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में गाये जाने के सम्बन्ध में अम्मा कहती हैं, "यदि भजनों को एकाग्रता के साथ गया जाये तो यह गायक, श्रोता और प्रकृति के लिए लाभप्रद होता है। बाद में जब श्रोता भजन पर विचार करते हैं तो वे भजनों में उच्चारित पाठों के अनुरूप रहने का प्रयास करते हैं।"[22] अम्मा कहती हैं कि आज के संसार में, प्रायः लोगों के लिए ध्यान के दौरान एकाग्र होना कठिन हो जाता है, लेकिन भक्ति गायन के द्वारा यह एकाग्रता सरलता से प्राप्त की जा सकती है।[23]
पुस्तकें और प्रकाशन
संपादित करेंअम्मा के शिष्यों ने भक्तों और आध्यात्मिक अन्वेषणकर्ताओं के साथ उनके संवादों को लिपिबद्ध करके उनकी शिक्षाओं की लगभग एक दर्ज़न पुस्तकों का निर्माण किया है। उन्होंने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सभाओं में जो भाषण दिए हैं उन्हें भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया है। स्वामी रामकृष्णनन्द पुरी सहित अन्य वरिष्ठ शिष्यों, स्वामी तुरियामृतनन्द पुरी, स्वामी परमात्मानन्द और स्वामी कृष्णमित्रनन्द प्राण सहित अन्य वरिष्ठ शिष्यों ने भी अम्मा के साथ अपने अनुभवों और अम्मा की शिक्षाओं के सम्बन्ध में पुस्तकें लिखी हैं। माता अमृतानंदमयी मठ के उपाध्यक्ष, स्वामी अमृतास्वरुपनन्द पुरी, ने अम्मा की एक जीवनी भी लिखी है। माता अमृतानंदमयी मठ, मातृवाणी और एक चतुर्मासिक पत्रिका इमौर्टल ब्लिस का भी प्रकाशन करता है, जोकि एक आध्यात्मिक पत्रिका है।
पद
संपादित करें- संस्थापक और अध्यक्ष, माता अमृतानंदमयी मठ
- संस्थापक, दुनिया को गले लगाते[24]
- कुलाधिपति, अमृता विश्व विद्यापीठम विश्वविद्यालय[25]
- संस्थापक, अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एआईएमएस (AIMS) अस्पताल)[26]
- पार्लियमेंट ऑफ़ द वर्ल्ड रिलीजन्स, इंटरनैशनल एड्वाइसरी कमेंटी मेंबर[27]
- द एलिजाह इंटरफेथ इंस्टिट्युट, मेंबर ऑफ़ द एलिजाह बोर्ड ऑफ़ वर्ल्ड रिलीजियस लीडर्स[28]
पुरस्कार और सम्मान
संपादित करें- 1993, 'प्रेसिडेंट ऑफ़ द हिन्दू फेथ' (पार्लियमेंट ऑफ़ द वर्ल्ड रिलिजन्स)[29]
- 1993, हिंदू पुनर्जागरण पुरस्कार (हिंदू धर्म आज)[30]
- 1998, केयर एंड शेयर इंटरनैशनल ह्यूमैनिटेरियन ऑफ़ द इयर अवॉर्ड (शिकागो)
- 2002, कर्म योगी ऑफ़ द इयर (योग जर्नल)[31]
- 2002, द वर्ल्ड मूवमेंट फॉर नॉनवायलेंस द्वारा अहिंसा के लिए गांधी-किंग अवॉर्ड (यूएन (UN), जेनेवा)[32] · [33]
- 2005, महावीर महात्मा अवॉर्ड (लंदन)[34]
- 2005, सेंटेनरी लिजेंड्री अवॉर्ड ऑफ़ द इंटरनैशनल रोटैरियंस (कोचीन)[35]
- 2006, जेम्स पार्क मॉर्टन इंटरफेथ अवॉर्ड (न्यूयॉर्क)[36]
- 2006, द फिलॉसफर सेंट श्री ज्ञानेश्वर वर्ल्ड पीस प्राइज़ (पुणे)[37]
- 2007, ले प्रिक्स सिनेमा वेरिट (सिनेमा वेरिट, पैरिस)[38]
- 2010, अपने बफैलो कैम्पस में 25 मई 2010 को मानवीय पत्र में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क ने अम्मा को मानद् डॉक्टरेट से सम्मानित किया।[39]
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पता
संपादित करें- 1993, 'में योर हार्ट ब्लौसम,' द पार्लियमेंट ऑफ़ द वर्ल्ड'स रिलीजन्स 100थ एनिवर्सरी (शिकागो)
- 1995, 'यूनिटी इज़ पीस,' इंटरफेथ सेलिब्रेशन ऑफ़ द 50थ एनिवर्सरी ऑफ़ द युनाइटेड नेशंस (न्यूयॉर्क)[36]
- 2000, 'लिविंग इन हार्मोनी,' मिलिनियम वर्ल्ड पीस रेलिजियस एंड स्पीरिचुअल
लीडर्स (यूएन, न्यूयॉर्क)[40]
- 2002, 'अवेकनिंग ऑफ़ युनिवर्सल मदरहुड,' द ग्लोबल पीस इनिशिएटिव ऑफ़ वुमन, (यूएन, जेनेवा)[41] · [33]
- 2004, 'में पीस एंड हैपीनेस प्रिवेल,' पार्लियमेंट ऑफ़ द वर्ल्ड रेलिजियंस (बार्सिलोना)[42] · [43]
- 2006, 'अंडरस्टैंडिंग एंड कोलैबोरेशन बिटवीन रिलीजन्स,' जेम्स पार्क मॉर्टन इंटरफेथ अवॉर्ड (न्यूयॉर्क)[36]
- 2007, 'कम्पैशन: द ओनली वे टू पीस' (सिनेमा वेरिट फेस्टिवल, पैरिस)[44]
- 2008, 'द इनफाईनाइट पोटेंशियल ऑफ़ वुमेन,' कीनोट एड्रेस ऑफ़ द ग्लोबल पीस इनिशिएटिव ऑफ़ वुमेन (जयपुर)[45][46]
- 2009, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के 'कल्टिवेटिंग स्ट्रेंथ एंड वाइटलिटी,' उद्घाटन (नई दिल्ली)[47]
वृत्तचित्र
संपादित करें- 1999 रिवर ऑफ़ लव: अ डॉक्यूमेंट्री ड्रामा ऑन द लाइफ ऑफ अम्माची
- 2000 लुइस थेरोक्स वीयर्ड विकेंड्स -- "इंडियन गुरुस" (बीबीसी (BBC) टीवी)
- 2005 दर्शन: द इम्ब्रेस—जैन कुनेन द्वारा निर्देशित
- 2007 इन गॉड नेम्स—जुल्स क्लेमेंट नौडेट और थॉमस जेडीऑन द्वारा निर्देशित
- 2009 इम्ब्रेसिंग केन्या (वीडियो)
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों से वीडियो
संपादित करेंउद्धरण
संपादित करें"There is one Truth that shines through all of creation. Rivers and mountains, plants and animals, the sun, the moon and the stars, you and I—all are expressions of this one Reality."[48]
"In today’s world, people experience two types of poverty: the poverty caused by lack of food, clothing and shelter, and the poverty caused by lack of love and compassion. Of these two, the second type needs to be considered first because if we have love and compassion in our hearts, then we will wholeheartedly serve those who suffer from lack of food, clothing and shelter."[49]
"Everyone in the world should be able to sleep without fear, at least for one night. Everyone should be able to eat to his fill, at least for one day. There should be at least one day when hospitals see no one admitted due to violence. By doing selfless service for at least one day, everyone should help the poor and needy. It is Amma's prayer that at least this small dream be realized."[50]
“Children, God has given us the necessary faculties to become like him. Love, beauty and all divine qualities exist within us. We should make use of our faculties to express these divine qualities in our lives."[51]
“Whatever form of meditation we do, whether we focus on the heart or between the eyebrows, the goal is the same: one-pointed concentration."[52]
"Only when human beings are able to perceive and acknowledge the Self in each other can there be real peace."
"Sorrow is the guru which takes you closer to God."
"Asking how many times one should chant the mantra is like asking how much water should be given to a plant for it to yield fruit. Watering is required, but the amount of water depends on the nature of the plant, the climate, the quality of the soil, and so on. Water alone is not enough. The plant needs sunlight, fertilizer, air and protection from pests as well. Similarly, on the spiritual path, chanting the mantra is just one facet. Good deeds, good thoughts, and satsang [association with virtuous people] are also necessary. When all of these are present, then one gets the benefit according to God’s will."
"Bhakti [devotion] towards an object or towards the work that we are doing is important. This feeling comes only when one does the work with concentration. It is a feeling of oneness, of merging in the work. In the same way, although God’s name has a power of its own, when we chant it with bhava [feeling] or concentration, it becomes more powerful."
आलोचना
संपादित करेंश्री पट्टाथनम, जो इन्डियन रेश्नलिस्ट एसोशियेशन के अध्यक्ष हैं और केरल में रहते हैं, ने मठ अमृतानंदमयी: सेक्रेड स्टोरीज़ एंड रियैलिटीज़[53] नामक एक विवादित आलोचनात्मक पुस्तक लिखी है जो पहली बार 1985 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने यह दावा किया है कि सुधामणि द्वारा किये जाने वाले सभी चमत्कार झूठे हैं और उनके आश्रम तथा उसके आसपास कई संदेहास्पद मौतें हुई हैं, जिनमे पुलिस द्वारा छानबीन किये जाने की आवश्यकता है। उनके द्वारा की गयी इस खोज में न्यायालायीय अभिलेखों, समाचार पत्रों की रिपोर्ट और प्रसिद्ध साहित्यिक हस्तियों द्वारा दिए गए उद्धरणों के विस्तृत सन्दर्भ शामिल हैं जिसमें मठ के नजदीकी सम्बन्धियों और स्वयं अमृतानंदमयी के साथ किया गया एक साक्षात्कार भी सम्मिलित है।
उस समय अमृतानंदमयी अधिक प्रसिद्ध नहीं थीं, बाद में प्रसिद्धि बढ़ने पर मठ ने इस पुस्तक के लेखक के अभयोजन की मांग की और 2004 में इस सम्बन्ध में कार्यवाही के लिए सरकार पर दबाव डाला। राज्य सरकार ने प्रकाशन कम्पनी के स्वामी, इस पुस्तक के प्रकाशक और पट्टाथनम पर अभियोग की अनुमति दे दी। इस आज्ञा में केरल उच्च न्यायालय द्वारा राज्य के गृह विभाग को माता अमृतानंदमयी आश्रम के एक भक्त और निवासी टी.के. अजान द्वारा किये इस आवेदन पर विचार करने हेतु दिए गए निर्देश शामिल थे कि पुस्तक में की गयी आलोचना के आधार पर इन तीनों पर आपराधिक अभियोजन की कार्यवाही की जाये[54].
अंततः इस आदेश ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और बाद में मानवतावादियों, बुद्धिवादियों, लेखकों और कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आलोचना किये जाने पर इसे रद्द कर दिया गया।
इन्हें भी देखें
संपादित करें- अमृता सर्वेक्षण
- अमृता विश्व विद्यापीठम
- जे एंड फ्रेंड्स सिंग एंड चैंट फॉर अम्मा - धार्मिक गीतों का कॉम्पैक्ट डिस्क और अमेरिकी वैकल्पिक रॉक संगीतकार/गीतकार जे मासिस (डायनासौर जूनियर), अम्माची का एक ज्ञात अनुयायी. सीडी से सभी आय अम्मा के चैरिटी में जाते हैं।
- अमृता टीवी
- अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेज़ एंड रिसर्च सेंटर
- अमृता लर्निंग
नोट्स
संपादित करें- ↑ "Amma". अभिगमन तिथि 9 अक्टूबर 2017.
- ↑ अम्माची के बारे में [1] Archived 2009-03-27 at the वेबैक मशीन बीबीसी लेख
- ↑ अम्मा: 'द हगिंग सेंट' Archived 2011-05-24 at the वेबैक मशीन, कैथी लिन ग्रॉसमैन (2006). www.usatoday.com. 19 फ़रवरी 2008 को पुनःप्राप्त.
- ↑ अ आ "अम्मा इम्ब्रेसिंग द वर्ल्ड 2007 (वीडियो)". मूल से 19 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
- ↑ इंडियन एक्सप्रेस[मृत कड़ियाँ] माता अमृतानंदमयी के सेवाओं की सराहना
- ↑ [कॉर्नेल, जूडिथ. अम्मा: हीलिंग द हार्ट ऑफ़ द वर्ल्ड. हार्परकॉलिन्स: न्यूयॉर्क, 2001]
- ↑ अ आ अम्माची - स्वामी अमृतास्वरुपनन्दा द्वारा माता अमृतानंदमयी की जीवनी, ISBN 1-879410-60-5
- ↑ अ आ "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
- ↑ वर्ष 1981 में 6 मई को पवित्र मान की शिक्षाओं और आदर्शों के संरक्षण और प्रचार के विचार के साथ माता अमृतानंदमयी मठ और मिशन ट्रस्ट की स्थापना की गयी और 1955 के त्रावणकोर-कोचीन राज्य साहित्य एवम धर्मार्थ अधिनियम के अंतर्गत इसे पंजीकृत किया गया, कोल्लम में], [[केरल, दक्षिण भारत." अम्माची - स्वामी अमृतास्वरुपनन्दा द्वारा माता अमृतानंदमयी की जीवनी, ISBN 1-879410-60-5
- ↑ अ आ "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 जनवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 सितंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
- ↑ बैब, लॉरेंस. 1981. ग्लैंसिंग: हिंदू धर्म में दृश्य सहभागिता. मानवविज्ञान अनुसंधान के जर्नल 37 (4):387-401; एक, डायना. 1981. दर्शन: भारत में दिव्य छवि को देखकर. 2 एड. चैम्बर्सबर्ग, पीए (PA): एनिमा.
- ↑ फुलर, सी.जे. 1992. द कैम्फर लॉ: भारत में लोकप्रिय हिंदूधर्म और सोसाइटी. प्रिंसटन: प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस
- ↑ अ आ "संग्रहीत प्रति". मूल से 16 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
- ↑ अम्मा के दिल से: श्री माता अमृतानंदमयी के साथ बातचीत (2004), पृष्ठ 159
- ↑ अ आ इ स्वामी रामकृष्णानंद द्वारा द टाइमलेस पाथ, ISBN 978-1-879410-46-6
- ↑ अ आ स्वामी जननअमृतानंदा द्वारा लीड अस तू द लाईट: अ कलेक्शन ऑफ़ माता अमृतानंदमयी के शिक्षा संकलित हुए
- ↑ "द गोल ऑफ़ ऑल रिलिजियन इज़ वन--प्यूरिफिकेशन ऑफ़ द ह्युमन माइंड." (माता अमृतानंदमयी द्वारा "लिविंग इन हार्मनी")
- ↑ "अम्मा रेसपौंस टू द सुनामी 2004 (वीडियो)". मूल से 19 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
- ↑ अवेकेन, चिल्ड्रेन, खंड 2: श्री माता देवी अमृतानंदमयी के साथ संवाद
- ↑ फॉर माई चिल्ड्रेन: द टिचिंग्स ऑफ़ हर होलीनेस श्री माता अमृतानंदमयी देवी, पृष्ठ 70
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अमान्य टैग है; "Interfaith" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2011.
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- ↑ The Timeless Path By Swami Ramakrishnananda
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सन्दर्भ
संपादित करें- माता अमृतानंदमयी के बारे में बीबीसी (BBC)-समाचार लेख
- तूफान राहत
- सुनामी राहत
- समाज सेवा
- जुडिथ कॉर्नेल द्वारा अम्मा: हीलिंग द हार्ट ऑफ़ द वर्ल्ड, (विलियम मोरो एंड कंपनी, ISBN 0-688-17079-X)
- जेनिन कैनन द्वारा मेसेजेज़ फ्रॉम अम्मा: इन द लैंग्वेज ऑफ़ द हार्ट (टेन स्पीड प्रेस, ISBN 1-58761-214-3)
- करुना पूल द्वारा गेटिंग टू जॉय: अ वेस्टर्न हॉउसहोल्डर स्प्रिचुयल जर्नी विद अम्मा (माता अमृतानंदमयी) (शंतिनी सेंटर, ISBN 0-9643629-2-9)
- शिक्षाएं
बाहरी कड़ियाँ
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