माद्री राजा पाण्डु की दूसरी रानी थी। उसके बेटे नकुल और सहदेव थें और इनकी पुत्री का नाम शाशवती हैं। इसके ४ सौतेले पुत्र थे कर्ण , युधिष्ठिर , भीमसेन और अर्जुन । माद्री मद्र राज्य की राजकुमारी एवं राजा शल्य की बहन थी। एक बार मद्र राज्य ने संकट के समय राजा पांडु से युद्ध मे सहायता की मांग की। राजा पांडु ने मद्र देश की सहायता का निर्णय किया और उनकी युद्ध मे सहायता की, उनकी सहायता से मद्र देश युद्ध मे विजयी हुआ और मद्र नरेश शल्य ने अपनी बहन माद्री के विवाह का प्रस्ताव राजा पांडु को दिया, राजा पांडु ने माद्री को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। उसके पश्चात मद्र नरेश ने अपनी पुत्री का विवाह पांडु से कर दिया। जब पाण्डु विश्व विजयी होकर हस्तिनापुर लौटे तो अपना राज पाट अपने ज्येष्ठ भ्राता धृतराष्ट्र को देकर, अपनी दोनों पत्नियों के संग तपस्या करने जंगल मे चले गए। वहां ऋषि किंदम के आश्रम में अतिथि बन कर निवास करने लगे। एक दिवस माद्री के हठ करने के बाद पाण्डु मृग का शिकार करने गए। मृग की आवाज सुनकर बिना देखें ही उन्होंने शब्दभेदी बाण चला दिया। जैसे ही मृग को तीर लगा वैसे ही घायल नर की आवाज़ निकली। इसके बाद उन्होंने देखा कि,किंदम ऋषि अपनी पत्नी के संग सहवास कर रहे थे और इसी क्रिया के अंतर्गत उनको बाण लगा था ।

इसलिए उन्होंने पाण्डु को श्राप दिया कि जब भी वे अपनी पत्नी संग सहवास करेंगे तभी वो मर जाएंगे।


इस घटना के बीत जाने के बाद एक दिन माद्री एक झरने के किनारे नाहा रही थी , उनको इस रूप में देख कर पाण्डु विचलित हो गए और किंदम ऋषि के उस श्राप को भूल कर माद्री के साथ सहवास कर लिया और इसके साथ ही उनका देहवासन हो गया। उनहोंने कुंती से कहा की यह सब की वजह वहीं है और कुंती के मना करने पर भी उनहोंने इस वियोग में वही पर देहत्याग कर दिया ।उसके बाद माद्री के दोनों पुत्रो नकुल और सहदेव को उनकी सौतेली माँ कुंती ने अपने पुत्रो के साथ पाला इस तरह पाण्डु के पांच पुत्र पांच पांडव कहलाये पाण्डव