माध्यमिक शिक्षा आयोग
भारत सरकार ने 23 सितम्बर 1952 को डॉ॰ लक्ष्मणस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग की स्थापना की। उन्ही के नाम पर इसे मुदलियर आयोग कहा गया। आयोग ने पाठ्यचर्या में विविधता लाने, एक मध्यवर्ती स्तर जोड़ने, त्रिस्तरीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने इत्यादि की सिफारिश की।
माध्यमिक शिक्षा आयोग की संस्तुतियाँ-
- (1) 4 या 5 वर्ष की प्राइमरी शिक्षा ,
- (2) सेकण्डरी शिक्षा के दो भाग होना चाहिए।
- (3) वस्तुनिष्ठ (MCQ) परीक्षण-पद्धति को अपनाया जाए।
- (4) संख्यात्मक अंक देने के बजाय सांकेतिक अंक दिया जाए।
- (5) उच्च तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा के पाठ्यक्रम में एक मूल विषय रहे जो अनिवार्य रहे जैसे—गणित, सामान्य ज्ञान, कला, संगीत आदि।
- आयोग की नियुक्ति के निम्नलिखित उद्देश्य थे....
- 1.भारत की तात्कालिन माध्यमिक शिक्षा की स्थिति का अध्ययन करके उस पर प्रकाश डालना।
- 2.माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य संगठन एवं विषयवस्तु।
- 3.विभिन्न प्रकार के माध्यमिक विद्यालयों का पारस्परिक संबंध।
- 4.माध्यमिक शिक्षि का प्राथमिक ,बेसिक तथा उच्च शिक्षा के संबंध में।
- 5.माध्यमिक शिक्षा से संबंधित अन्य समस्याएँ।
- परिचय,
- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीयों के हृदय में देश की शीघ्र प्रगति के लिए असीम उत्साह था देश के स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने देश चहुमुखी विकास के लिए बड़े-बड़े स्वप्न संजोए हुए थे अब उन्हें साकार रूप में परिवर्तित करने का अवसर मिला शिक्षा को प्रगति का एक माध्यम माना जाता था अतः स्वाभाविक था कि इस क्षेत्र पर उचित ध्यान दिया जाए उच्च शिक्षा के विकास के लिए विश्वविद्यालय आयोग की संस्तुतियों आ चुकी थी प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र पर प्रय़रित समीक्षा की गई थी परंतु माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार का गठन नहीं किया गया था केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने भारत सरकार को सुझाव दिया कि माध्यमिक शिक्षा के पूर्ण गठन की आवश्यकता है भारत सरकार ने बोर्ड के इस सुझाव को स्वीकार किया तथा 23 सितंबर 1952 को मद्रास विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ लक्ष्मणस्वामीमुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति की अध्ययन के नाम पर इस आयोग को मुदालियर शिक्षा आयोग भी कहा जाता है
- माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा तथा समस्याएं :-
- बहुत ही खेद का विषय है कि स्वतंत्रता के कई दशकों बाद भी माध्यमिक शिक्षा का लगभग वही असंतोषजनक स्थिति है जो अंग्रेजी शासनकाल में थे यद्यपि स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा के लिए तथा इसे देशवासियों की आकांक्षाओं के अनुरूप बनाने का सुझाव के लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1952-53 का गठन किया गया आयोग ने सुधार संबंधी बहुत सुझाव दिए उसके पश्चात 1964 से 1966 के शिक्षा आयोग ने भी सुधार के कई उपाय बताएं 1968 में शिक्षा नीति बनी और इसके अनुसार 10+2 शिक्षा पद्धति 1975 में आरंभ हुई 1986 में पुनः शिक्षा के सभी अंगों तथा स्तर की समीक्षा के पश्चात नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 बनी जिसके अनुसार संपूर्ण शिक्षा तथा माध्यमिक शिक्षा में कार्य किया जाना है।अवधी एवं ढांचे संबंधी समस्याएँ ,पाठ्यक्रम संबंधी समस्याएँ, व्यवसायीकरण की समस्याएँ, शिक्षण विधियों की समस्याएँ, मूल्यांकन की समस्याएँ, समानता की समस्याएँ, पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण की समस्याएँ, गुणात्मक अध्यापक प्रशिक्षण की समस्याएँ, सामुदायिक सामंजस्य की समस्याएँ, पाठ्य पुस्तकों की समस्याएँ, विस्तार की समस्याएँ, प्रबंधन तथा नियोजन की समस्याएँ, वित्तीय समस्याएँ, माध्यमिक स्कूलों में सुधार के लिए कार्यक्रम, स्कूलों को सुधारने के लिए एक दीर्घकालिक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम (जिसे प्रगतिक मुल्क स्कूलों की स्थापना से बल एवं प्रोत्साहन मिलेगा) की व्यवस्था की जाए, यह स्कूल शिक्षा के गुणात्मक सुधार के कार्यक्रम के लिए उत्प्रेरक की भूमिका निभाने की चेष्टा करें, व्यक्तिगत रोजगार क्षमता को बढ़ाने कुशल मानव शक्ति की मांग तथा उपलब्धि में असंतुलन को कम करने तथा बिना विशेष रूचि अथवा प्रयोजन के उच्च शिक्षा प्राप्त करने में संलग्न लोगों के लिए एक विकल्प जिताने के लिए शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जाए द्वारा सर्वसाधारण के लिए शिक्षा का अधिक सुलभ करण तथा खुली एवं सतत शिक्षा पद्धति के लिए संस्थाओं की स्थापना की जाए अभियान के तर्ज पर माध्यमिक शिक्षा के लिए भी एक नया मिशन शुरू किए जाने पर विचार होना चाहिए माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की हिस्सेदारी को देखते हुए माध्यमिक शिक्षा के विस्तार में निजी क्षेत्रों की भागीदारी को बढ़ावा देने की संभावना को मान्यता देनी चाहिये सुधार और परीक्षा प्रणाली में की समीक्षा के लिए तत्परता पूर्वक कदम उठाए जाने चाहिये पिछड़े वर्गों अर्थात अनुसूचित जनजातियाँ जनजातियों शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए अल्पसंख्यकों तथा शारीरिक एवं मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति द्वारा विषमताओं का निराकरण तथा शैक्षिक स्तर पर समीकरण किया जाए व्यवसायिक शिक्षा को ऐसा रूप दिया जाना चाहिये जिससे कि वह स्थानीय माँग को पूरा कर सके स्थानीय उद्योग व्यापार और व्यवसाय के साथ संपर्क स्थापित किए जाने चाहिये शिक्षक शिक्षा सेवा पूर्वक और सेवा के दौरान प्रशिक्षण स्थापना पुस्तकालय और सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी का बेहतर उपयोग बढ़ाने के लिए निवेश पर मुख्य रूप से जोड़ दिया जाना चाहिए तथा सामाजिक सांस्कृतिक नैतिक मूल्य और भारतीय संविधान प्रतिस्थापित मूल्यों के पोषण के लिए शक्तिशाली साधन बनने के लिए वस्तु तथा प्रक्रिया का अनुष्ठान किया जाए
- माध्यमिक शिक्षा के प्रसार की नीति
- 1. माध्यमिक शिक्षा को व्यवसायिक बनाया जाए जिससे निम्न माध्यमिक स्तर 30% और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 50% छात्र व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त कर सकें
- 2. माध्यमिक शिक्षा में अवसरों की समानता पर बल दिया जाए इसके लिए इस स्तर पर अधिकाधिक छात्रवृत्ति प्रदान करने की व्यवस्था की जाए
- 3. लड़कियों अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों में माध्यमिक शिक्षा के विस्तार के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए
- 4. प्रतिभा के विकास के लिए वास्तविक रूप से प्रयास किया जाए
- 5. अगले 20 वर्षों में माध्यमिक शिक्षा की संख्या को नियमित किया जाए इसके लिए माध्यमिक शिक्षा बालियों की स्थापना के लिए उपयुक्त योजनाएं बनाने माध्यमिक शिक्षा के शिक्षण अस्त्रों को ऊंचा उठाने तथा उपयुक्त एवं योग्य छात्रों के चुनाव पर बल दिया जाए
- 6. प्रत्येक जिले में माध्यमिक शिक्षा के विस्तार के लिए योजनाएं बनाई जाए और उन्हें 10 वर्षों की अवधि में पूर्ण रूप से कार्य आ जाएकिया जाए
- 7. समस्त नए विद्यालयों द्वारा आवश्यक शिक्षा प्रो को पूर्ण किया जाए और प्रचलित विद्यालयों के स्तर को उच्च बनाया जाए
- 8. माध्यमिक विद्यालयों के लिए योग छात्र को चुना जाए
- 9. स्कूलों में विज्ञान शिक्षा को सुदृढ़ किया जाए 10. केंद्रीय सरकार द्वारा माध्यमिक विद्यालय को व्यवसायिक बनाने के लिए राज्य सरकार को विशेष अनुदान दिया जाए
- 11. बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार के लिए अगले 20 वर्षों में महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएं
- 12. बालिकाओं के लिए जहां पर मांग हो पृथक विद्यालयों की स्थापना पर बल दिया जाए और उनको आवास की सुविधा भी दी जाए माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण की आवश्यकता आधुनिक औद्योगिक समाज की आवश्यकता एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तथा भावी नागरिकों को तनु रूप उत्पादकता मुल्क शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा का करना केवल आवश्यक है अपितु अनिवार्य हो गया है छात्रों को रोजगार प्राप्त करने उन्हें रोजगार के कार्ड स्थापित करने तथा उचित कौशल निर्माण करने के लिए व्यवसायिक शिक्षा का विशेष योगदान है देश में बढ़ते हुए पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या घटाने का उनकी क्षमता एवं योग्यताओं का उचित उपयोग करने का केवल एक ही मार्ग है वह है शिक्षा का व्यवसायीकरण
- लेखक- जगदीश चंद्र स्वतंत्र भारत में शिक्षा का विकास नामक पुस्तक लिखी
- 2005 में यशपाल समिति का निर्धारण किया गया एवं "शिक्षा बिना बोझ के" शीर्षक के द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके आधार पर पाठ्यचर्या का निर्माण किया गया।
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