मारिया मांटेसरी (Maria Tecla Artemisia Montessori ; इतालवी उच्चारण : [maˈriːa montesˈsɔːri]; 31 अगस्त, 1870 – 6 मई, 1952) इटली की एक चिकित्सक तथा शिक्षाशास्त्री थीं जिनके नाम से शिक्षा की मांटेसरी पद्धति प्रसिद्ध है। उनकी शिक्षापद्धति आज भी कुछ विद्यालयों में प्रचलित है।

मारिया मांटेसरी
चित्र:Maria Montessori
मारिया मान्टेसरी अपने पुत्र मारियो (बाईं तरफ), थियोसोफिस्ट जॉर्ज अरुन्दाले और उनकी पत्नी रुक्मिणी देवी (दायीं तरफ), सन १९३९ में

जीवन परिचय

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मांटेसरी शिक्षा पद्धति की प्रवर्तक एवं बालक की आवश्यकताओं और अधिकारों की महान समर्थक [1] डा० मारिया से मांटेसरी का जन्म इटली के एक छोटे से शहर में हुआ था। इनके जन्म के थोड़े समय बाद हीं इनके माता-पिता रोम चले आए जहाँ इनकी शिक्षा प्रारंभ हुई। सन् १८९४ में रोम विश्वविद्यालय, चिकित्साशास्त्र की शिक्षा पूरी कर डाक्टर की उपाधि पानेवाली यह रोम की पहली महिला थी। इसके दो वर्ष पश्चात् एक राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में इन्होंने 'मंद बुद्धि एवं संबंधित दोषों का शिक्षा द्वारा उपचार' विषय पर एक प्रभावशाली भाषण दिया जिसने लोेगों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित किया। रोम के शिक्षा मंत्री ने इन्हें और भी व्याख्यान देने को आमंत्रित किया और तत्पश्चात् मंदबुद्धि बालकों के लिये शिक्षक तैयार करने का भार सौंपा। यह अवसर पाकर मांटेसरी ने स्वयं मंदबुद्धि बालकों की चिकित्सा का काम प्रारंभ किया और उनपर शैक्षिक प्रयोग भी किए। यह कार्य करते हुए उनका ध्यान डा० एडवर्ड सेग्विन नामक चिकित्सक मनोवैज्ञानिक की बनाई शिक्षण पद्धति की ओर गया जो ऐसे बालकों को सुधारने में काम आती थी। उन्होंने सेग्विन की शैक्षिक चिकित्सा तथा अन्य साहित्य का गहन अध्ययन किया और उनके संचालित स्कूलों को भी देखा। सेग्विन के द्वारा उनका परिचय फ्रांस की क्रांति के समय मंदबुद्धि बालकों की शिक्षा पर ध्यान देने वाले डा० जे० एम० जी इटार्ड के साहित्य से भी हुआ। इन दोनों डाक्टरों के शिक्षा संबंधी विचारों से मांटेसरी ने लाभ उठाया और उनके आधार पर अपनी शिक्षणविधि का विकास किया।

इस प्रकार रोम में मंदबुद्धि बालकों की चिकित्सा एवं शिक्षा का कार्य करते हुए डा० मांटेसरी को यह विश्वास होने लगा कि यदि ऐसी वैज्ञानिक शिक्षापद्धति का प्रयोग सामान्य बुद्धि के बालकों पर हो तो वे कहीं अधिक लाभ उठाएँ। इस प्रयोग का सुअवसर भी उन्हें शीघ्र ही मिला जब 'डाइरेक्टर जनरल ऑव द रोमन ऐसोसिएशन फार गुड बिल्डिग्स' ने उन्हें श्रमिकों के घरों के बीच बच्चों का स्कूल खोलने को आमंत्रित किया।ऐसा पहला स्कूल ६ जनवरी, १९०७ को सैन लौरेंजो नामक स्थान में 'बालगृह' नाम से खुला। इससे बालकों का बड़ा लाभ हुआ और मांटेसरी पद्धति का प्रचार होने लगा।

सन् १९२९ में अंतरराष्ट्रीय मांटेसरी संघ की स्थापना हुई और डा० मांटेसरी जीवनपर्यंत इसकी प्रधान बनी रहीं। नवंबर, १९३९ में डा० जी० एस० एरंडेल के निमंत्रण पर वे अपने भतीजे और दत्तक पुत्र मिस्टर मारिओ मांटेसरी के साथा भारत आईं। ये दोनों दस वर्ष भारत में रहे। कई स्थानों पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए गए जिनसे न केवल भावी शिक्षकों ने वरन् अन्य लोगों ने भी लाभ उठाया। ऐडयार (चेन्नै) में बेसेंटश् थियासॉफिकल स्कूल के माध्यमिक वर्गों में डा० मांटेसरी न 'एडवांस्ड मांटेसरी पद्धति' का प्रयोग किया तथा इसके लिये भी कुछ शिक्षक तैयार किए।

मांटेसरी पद्धति के प्रतिपादनार्थ तथा शिक्षासुधार संबंधी अपने विचारों को प्रकट कने के हेतु डा० मांटेसरी ने कई छोटी बड़ी पुस्तकें लिखीं जिनमें से प्रमुख हैं

  • द डिस्कवरी ऑव द चाइल्ड,
  • द ऐबसॉरबेंट माइंड',
  • 'द सीक्रेट ऑव चाइल्डहुड
  • टु एजुकेट द ह्यूमन पोटेंशल
  • एजुकेशन फार अ न्यू वर्ल्ड
  • द चाइल्ड
  • रिकंस्ट्रक्शन इन एजुकेशन
  • पीस ऐंड एजुकेशन
  • ह्वाट यू शुड नो एबाउट योर चाइल्ड

अंतरराष्ट्रीय मांटेसरी संघ द्वारा प्रकाशित वार्षिक पत्रिका में भी उनके विचारों की अभिव्यक्ति होती रहती थी।

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 दिसंबर 2015.