मालण गुजराती कवि थे। उन्हे गुजराती साहित्य में आख्यान काव्य का जन्मदाता माना जाता है। अपनी एक कृति में उन्होंने स्वयं लिखा है कि गुजरात की पुराणप्रिय जनता के संतोष के लिये ही गुजराती भाषा में संस्कृत के पौराणिक आख्यानों के लेखन का संकल्प उनके मन में उत्पन्न हुआ। इसके लिये कदाचित् उनका विरोध भी हुआ। मालण के विषय में अन्य उल्लेखनीय बात उनकी अनन्य रामभक्ति है जो उन्हें रामानंदी संप्रदाय के संपर्क से प्राप्त हुई थी। रामभक्त होने से पूर्व वे शैव थे। संस्कृत साहित्य का उन्होंने यथेष्ट परिशीलन किया था। उनके पांडित्य का सर्वोत्कृष्ट प्रमाण कादम्बरी का अनुवाद है जिसे कुछ विद्वान् उनकी श्रेष्ठतम कृति मानते हैं। कवि का वास्तविक मूल्यांकन उसकी मौलिक रचनाओं से ही होता है। तथापि अनुवादकौशल की दृष्टि से कादंबरी की महत्ता निर्विवाद है। राम और कृष्ण के वात्सल्य भाव से युक्त उत्कृष्ट पदों की रचना मालण की और विशेषता है।

मालण का समय सामान्यत: सभी गुजराती इतिहासकारों ने १५ वीं शती ई० में माना है तथापि उसे सर्वथा असंदिग्ध नहीं कहा जा सकता। मालण के विशेषज्ञ रा० चु० मोदी ने उन्हें नरसी का समकालीन मानते हुए सं० १४९० से १५७० के बीच स्थापित किया है पर अन्यत्र उनका मृत्यु काल स० १४४५-४६ के लगभग अनुमानित किया गया है। क० मा० मुंशी के अनुसार उनका जीवनकाल सन् १४२६ से १५०० के बीच तथा के० का० शास्त्री के मत से जन्म सं० १५१५-२० के लगभग संभव है। उपलब्ध रूप में कादंबरी की भाषा से इतनी प्राचीनता की संगति नहीं बैठती। मालण कृत दशमस्कंध में प्राप्त होनेवाले कतिपय ब्रजभाषा के पद भी यदि प्रामाणिक हैं, तो मालण को के० का० शास्त्री के अनुसार 'ब्रजभाषा का आदि कवि' सिद्ध करने के स्थान पर समयच्युत करने के पक्ष में ही वे अधिक सहायक प्रतीत होते हैं। मालण और 'हरिलीला षोडस कला' के रचयिता भीम के वेदांतपारंगत गुरु पुरुषोत्तम की एकता सिद्ध करने का प्रयास भी किया गया है, परंतु यह दुरुह कल्पना मात्र लगती है। 'बीजु' 'नलाख्यान' और 'मालणसुत' विष्णुदास रचित 'उत्तर कांड' की तिथियाँ भी असंदिग्ध नहीं है।

'मालणना पद' के संपादक जेठालाल त्रिवेदी के अनुसार मालण की समस्त रचनाएं निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत की जा सकती हैं-

  • श्रेष्ठ -- १. कादंबरी २. पहेलु नलाख्यान ३. दशमस्कंघ ४. रामबालचरित
  • मध्यम -- १. रामविवाह २. ध्रवाख्यान ३. मृगी आख्यान ४. द्रौपदीवस्त्रहरण ५. कृष्णविष्टि
  • सामान्य -- १. शिव भीलडी संवाद २. सप्तशती ३. जालंधर आख्यान ४.मामकी आख्यान ५. बीजु नलाख्यान ६. दुर्वासा आख्यान

'गुजरात ऐंड इट्स लिटरेचर' में क० मा० मुंशी ने 'रूक्मिणी-हरण', 'सत्यभामा विवाह', 'कृष्ण बालचरित', 'महाभारत', 'नैषधीय', 'नलचंपू' और 'हर संवाद' नामक रचनाओं का उल्लेख किया है जिनमें से कुछ उपयुक्त वर्गीकरण में नामभेद से समाविष्ट हैं और कुछ दशमस्कंध का ही अंश हैं। 'रामायण' नाम से भी एक रचना का अन्यत्र उल्लेख मिलता है।

मालण की रचनाओं का मुख्य प्रेरणास्रोत वाल्मीकि रामायण, महाभारत, शिवपुराण, मार्कंडेय पुराण, भागवत, नैषध और कादंबरी आदि संस्कृत के मान्य ग्रंथ रहे हैं। दशमस्कंध में कृष्ण का बालचरित विशेष भावुकता के साथ वर्णित है। यशोदा के भावों का चित्रण समस्त गुजराती साहित्य में अद्वितीय लगता है। सूर के वात्सल्य वर्णन से उसमें पर्याप्त सादृश्य दिखाई देता है। ब्रजभाषा के पदकारों का मालण पर निश्चित प्रभाव प्रतीत होता है। कृष्ण के अभाव में यशोदा का अपनी लड़की (दीकरी) के लिये विलाप ब्रज के कृष्ण साहित्य में भी उपलब्ध नहीं होता। राम की बाल लीलाओं का वर्णन मालण ने कृष्ण बालचरित् के समांतर और भी अधिक किया है क्योंकि वे स्वयं रामभक्त थे। कृष्ण विषयक पदों के अंत में भी 'मालण प्रभु राम' या 'मालण प्रभु रधुनाथ' की छाप अनिवार्यत: उपलब्ध होती है जो रामभक्ति की अनन्यता सिद्ध करती है।

मालण के काव्य का प्रभाव उनके परवर्ती आख्यानकारों एवं पदकारों पर स्पष्टतया लक्षित होता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ

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  • रामलीला चुन्नीलाल: मालण (सयाजी साहित्य माला )