मुकुट बिहारी लाल भार्गव
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (मई 2021) स्रोत खोजें: "मुकुट बिहारी लाल भार्गव" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
मुकुट बिहारी लाल भार्गव (1903 - 1980) एक स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो अजमेर से संविधान सभा के सदस्य चुने गए थे। मुकुट बिहारी ने स्वतंत्रता के बाद तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर अजमेर संसदीय सीट से लोकसभा सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व किया।
स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेज़ सरकार ने श्री भार्गव को सेन्ट्रल जेल में बंद कर दिया। तब जेल में चेचक जैसी महामारी फैल गई और समुचित इलाज के अभाव में भार्गव की रोशनी चली गई। लेकिन फिर भी भार्गव की काबिलियत और याददास्त को देखते हुए संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। नेत्रहीन भार्गव ने भी बताया कि देश के संविधान में क्या-क्या होना चाहिए।" वकील सत्यकिशोर सक्सेना यह भी बताते हैं कि भार्गव की याददास्त जबरदस्त थी। अदालत में पैरवी करने से पहले भार्गव अपने जूनियर वकीलों से सुनते थे और फिर अदालत में जाकर मजिस्ट्रेट को बताते थे कि फाइल के किस पन्ने पर क्या लिखा है और संविधान की किस पुस्तक में कौन से पृष्ठ पर क्या बात दर्ज है।
जीवन परिचय
संपादित करेंमुकुट बिहारी लाल भार्गव का जन्म 30 जून 1903 में राजस्थान के उदयपुर रियासत में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. और एल. एल. बी. करने के बद उन्होंने 1927 में बेवर में वकालत शुरू की। सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू और महात्मा गाँधी के प्रभाव से वे राजबंदियों के मुकदमे निर्भय होकर अपने हाथ में लिया करते थे।
1928 में वे कांग्रेस में सम्मिलित हो गये। उसी दौरान वह 'ऑल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस' में शामिल हुए। ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ और भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने जेल की सज़ाएँ भोगीं। 1945 में कांग्रेस के टिकट पर मुकुट बिहारी लाल भार्गव केंद्रीय असेम्बली (भारतीय ब्रिटिश संसद) के सदस्य और 1946 संविधान सभा के सदस्य चुने गए थे।
स्वतंत्रता के बाद उन्होंने तीन बार 1952,1957,1962 के संसदीय चुनावों में अजमेर संसदीय सीट से का लोकसभा के सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व किया। स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान की रियासतों में प्रतिनिधि शासन की स्थापना के लिए भी वे प्रयत्नशील रहे। प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के समर्थक भार्गव जी लोक सभा में प्रभावशाली वक्ता के रूप में जाने जाते थे।
18 दिसंबर 1980 को जयपुर में उनका निधन हो गया। 2003 में उनके सम्मान में भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया गया है।