स्मृति (मनोविज्ञान)

(याददास्त से अनुप्रेषित)

हमारी यादें हमारे व्यक्तित्व का एक प्रमुख अंग हैं। हम क्या याद रखते हैं और क्या भूल जाते है यह सब बहुत सारी चीजों पर निर्भर करता है। भाषा, दृष्टि, श्रवण, प्रत्यक्षीकरण, अधिगम तथा ध्यान की तरह स्मृति (मेमोरी) भी मस्तिष्क की एक प्रमुख बौद्धिक क्षमता है। हमारे मस्तिष्क में जो कुछ भी अनुभव एवं , सूचना और ज्ञान के रूप में संग्रहीत है वह सभी स्मृति के ही विविध रूपों में व्यवस्थित रहता है। मानव मस्तिष्क की इस क्षमता का अध्ययन एक काफी व्यापक विषय वस्तु है। मुख्यतः इसका अध्ययन मनोविज्ञान, तंत्रिकाविज्ञान एवं आयुर्विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। प्रस्तुत आलेख में स्मृति के विविध रूपों, इसके जैविक आधार, स्मृति संबंधी प्रमुख रोग तथा कुछ प्रमुख स्मृति युक्तियों पर प्रकाश डाला जाएगा।

चूहों की स्थान-सम्बन्धी स्मृति को जांचने का प्रयोग
स्मृति का पैटर्न कुछ इस तरह का होता है

स्मृति-एक मानसिक प्रक्रिया

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हमारी स्मृति कैसे काम करती है या फिर किसी भी चीज को हम कैसे याद रख पाते हैं? स्मृति हमारे मस्तिष्क में किस प्रकार संग्रहीत होती है? हम किसी चीज को क्यों भूल जाते हैं और कुछ चीजे भुलाए नहीं भूलती। इन मूलभूत प्रश्नों ने मानव मन को सदा से ही आंदोलित किया है तथा इनके उत्तर देने के समय समय पर प्रयास भी किये गए हैं। हममें से सभी के अंदर पुरानी बातों को याद रखने की क्षमता होती है। हम किसी व्यक्ति, स्थान, घटना और स्थितियों-परिस्थितियों को याद करते रहते हैं। उन से कुछ सीखते हैं। फिर आगे उन्हें अनुभवों और ज्ञान के रूप में सुरक्षित कर लेते हैं। हमारे आगे का व्यवहार इसके द्वारा नियंत्रित होता है कि हमने क्या सीखा है।
प्रारंभ में स्मृति की तुलना किसी भौतिक स्थान से की जाती थी और उसमें संग्रहित सूचनाओं को उस स्थान में रखे गए विभिन्न वस्तुओं के तौर पर देखा जाता था। इस उपमा को समझने के लिए एक पुस्तकालय का उदाहरण लिया जा सकता है। पुस्तकालय एक भौतिक स्थान अर्थात् संपूर्ण स्मृति का निरूपण करता है और उसमें रखी पुस्तकें विभिन्न सूचनाओं की तरह होती हैं। स्मृति की इस व्याख्या को लंबे समय तक मान्यता भी मिली। लेकिन बाद में तर्क के आधार पर इसकी प्रमाणिकता पर संदेह प्रगट किया जाने लगा। यह देखा गया कि स्मृति की यह व्याख्या प्रारंभिक स्तर पर तो सही थी लेकिन यह स्मृति के विभिन्न प्रक्रमों जैसे कि किसी पुरानी घटना का स्मरण तथा नई स्मृतियों के निर्माण की उचित व्याख्या करने में असफल सिद्ध हुई। स्मृति को समझने के लिए और भी नए सिद्धांत आए। इनमें से कम्प्यूटर विज्ञान द्वारा प्रेरित सिद्धांत सबसे उपयुक्त सिद्ध हुआ। स्मृति की इस नई व्याख्या को तंत्रिका संजाल मॉडल (Neural Network Model) के आधार पर प्रस्तुत किया गया था। इसके अनुसार स्मृति हमारे मस्तिष्क में एक जगह केन्द्रित होने के बजाए समांतर रूप से वितरित होती है। यह वितरण सूक्ष्म इकाइयां जो कि तंत्रिका कोशिका के समतुल्य होती हैं, की बनी होती हैं। इन इकाइयों में स्मृति, एक तरह के सक्रियता प्रतिरूप (Activation Pattern) में निरूपित होती है।

स्मृति की क्रियाविधि

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आधुनिक परिभाषा के अनुसार हमारी स्मृति एक सामूहिक प्रक्रम है जिसके तीन मुख्य चरण होते हैं। सबसे पहले इसके प्रथम चरण में सूचनाओं को कूटबद्ध किया जाता है। इसके पश्चात द्वितीय चरण में इन कूटबद्ध सूचनाओं का संग्रहण होता है और अंतिम तृतीय चरण में इनका पुनःस्मरण किया जाता है।

सूचनाओं को कूटबद्ध करना

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हमें अपने आसपास के वातावरण को महसूस करने के लिए पहले आवश्यक है कि वातावरणीय उद्दीपनों को उससे संबंधित ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ग्रहण किया जाए। उदाहरण के लिए किसी भी वस्तु को देखने के लिए हम उस पर से परावर्तित प्रकाश को नेत्रों द्वारा ग्रहण करते हैं। अब इस परावर्तित प्रकाश को नेत्र की रेटिना में उपस्थित संवेदी तंत्रिका कोशिकाएं (रॉड और कोन) क्षीण वैद्युतीय तरंगो में बदलती हैं। अब यह कहा जा सकता है कि रेटिना द्वारा वातावरण में उपस्थित प्रकाश उद्दीपन का कोडीकरण वैद्युतीय रूप में किया गया। अब यह हल्की वैद्युतीय तरंग मस्तिष्क के दृश्य क्षेत्र में जाती है और यहां इसकी व्याख्या की जाती है। इस व्याख्या के आधार पर हम अपने मन में सामने के दृश्य का एक प्रतिबिंब बनाते हैं। इस समूची प्रक्रिया को दृश्य प्रत्यक्षीकरण (visual perception) या देखना कहते हैं। कोडिंग के समय सूचनाएं मुख्यतः स्थान, समय तथा आवृत्ति के आधार पर कोड की जाती हैं।

सूचनाओं का संग्रहण

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सूचनाओं को कोड करने के बाद उनके संग्रहण का स्थान आता है। यह संग्रहण संवेदी स्तर या अल्पकालीन स्मृति के स्तर या दीर्घकालीन स्मृति के स्तर पर हो सकता है। यहां यह उल्लेखनीय होगा कि हमारे मस्तिष्क में संग्रहण के समय सूचनाओं में थोड़ा परिवर्तन हो सकता है। मतलब कि सूचनाएं वहीं नहीं रहेंगी जैसी वे वास्तविक रूप में थीं। उनमें हम अपने पास से कुछ मिला सकते है या फिर उस सूचना के किसी भाग को निकाल भी सकते हैं। अगर आधी अधूरी सूचना है तो हम उसे अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर गढ़ भी सकते हैं। इस गुण के कारण स्मृति एक निर्माणात्मक प्रक्रिया होती है। स्मृति का अतिरिक्त स्तर पर वर्गीकरण स्मृति में सूचनाओं के संग्रहण के आधार पर किया जाता है।

हमें कैसे पता चलता है कि हमारे पास किसी विशेष समय या स्थान की स्मृति है? तभी जब हम उसे स्मरण करते हैं। उदाहरण के लिए अगर पूछा जाए कि अपने बचपन के पांच शिक्षकों के नाम बताइए जिनकी शिक्षाओं ने आपके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है तो हमें उत्तर देने में देर नहीं लगेगा। लेकिन अगर यह पूछें कि वर्ष 2000 से 2005 तक जैविकी या किसी भी क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों के नाम बताइए तो शायद हमें कुछ देर तक सोचना पड़ जाए। यह बात यहां स्पष्ट हो जाती है कि हम किन चीजों को याद रखते हैं और किन चीजों को भूल जाते हैं यह सब काफी कुछ हमारी अभिप्रेरणाओं, चेतन और अचेतन इच्छाओं इत्यादि पर निर्भर करता है। अतः स्मरण, संपूर्ण स्मृति का एक आवश्यक अंग है।

स्मृति के प्रकार

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अब प्रश्न यह उठता है कि स्मृति के विभिन्न प्रक्रमों की क्रियाविधि क्या है? स्मृति की उपरोक्त प्रक्रमों को समझाने के लिए 1968 में एटकिंसन तथा सिफ्रिन ने स्मृति की बहुस्तरीय संग्रहण की व्याख्या प्रस्तुत की। इस परिभाषा के अनुसार स्मृति के तीन मुख्य संग्रह होते हैं।

संवेदी स्तर स्मृति

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हमारी ज्ञानेन्द्रियां (संवेदी अंग) किसी भी सूचना को वातावरण से ग्रहण करके उसे मस्तिष्क तक पहुंचाने का कार्य करती हैं। बाद मे उस सूचना के आधार पर मस्तिष्क द्वारा एक निष्कर्ष निकाला जाता है। हम देखने, सुनने या त्वचा द्वारा शीत या गर्मी की अनुभूति का उदाहरण ले सकते हैं। कोई भी वातावरणीय उद्दीपन जैसे प्रकाश या ध्वनि सबसे पहले अपने संबंधित ज्ञानेन्द्रिय मे बहुत ही कम समय के लिए कूटबद्ध रूप में संग्रहित होता है। यह संग्रहण अत्यल्प समय के लिए होता है। दृष्टि के लिए इसकी सीमा 0.5 सेकेंड और श्रवण के लिए इसकी समय सीमा 2 सेकेंड के आसपास होती है। इस समय सीमा के पश्चात इस संग्रहित स्मृति का क्षय हो जाता है। ऐंद्रिक स्तर पर सूचनाएं अभी प्रारंभिक होती हैं और इनसे कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते। इनका मस्तिष्क द्वारा संयोजन तथा परिमार्जन अभी बाकी होता है।

अल्पकालीन स्मृति

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ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त सूचनाएं जब हमारे ध्यान में आती हैं तो वे अल्पकालीन स्मृति का भाग बनती हैं। यहां उल्लेखनीय है कि संवेदी स्तर की वे सभी सूचनाएं जिन पर हम ध्यान नहीं देते वे समाप्त हो जाती हैं। केवल वहीं सूचनाएं जिन पर हम एकाग्र होते है वे अल्पकालीन स्मृतियां बनती हैं। अल्पकालीन स्मृति को क्रियात्मक स्मृति भी कहा जाता है। इस प्रकार की स्मृति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमारे द्वारा कोई फोन नंबर याद करना है। जब हम किसी नंबर को देख कर उसे डायल करते हैं तो दो बाते होती हैं। सबसे पहले हम नबर को देखते हैं और उसे कुछ एक बार दोहरा के याद करते हैं फिर नंबर डायल करने के बाद सामान्यतः उसे भूल जाते हैं। अतः इस प्रकार की स्मृति के संबंध में दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। प्रथम, अल्पकालीन स्मृति की क्षमता बहुत कम होती है (सामान्यतः इसका मान 7±2 होता है, अर्थात् हम 5 से 9 अंको तक की कोई संख्या आसानी से याद कर सकते हैं। यदि हमें 14 अंको की कोई संख्या याद करनी हो तो इसे दो के जोड़े में बदल कर याद करते हैं।) द्वितीय, इस प्रकार की स्मृति में अगर एकाग्रता में थोड़ी भी कमी से हमारा ध्यान बंट जाए तो स्मृति शेष नहीं रह जाती। फोन वाले उदाहरण में अगर नंबर याद करने और डायल करने के बीच में कोई दूसरी बात हो जाए तो हमें नंबर याद नहीं रहेगा। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इस प्रकार की स्मृति में सूचना का कुल संग्रहण 20 से 30 सेकेंड तक ही होता है। लेकिन अगर सूचना को दोहराया जाए तो यह समय 20 से 30 सेकेंड से अधिक भी हो सकता है। और अगर बार-बार ध्यान से दोहराएं तो यह सूचना दीर्घकालीन स्मृति में परिवर्तित हो जाती है।

दीर्घकालीन स्मृति

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जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है दीर्घकालीन स्मृतियां स्थाई होती हैं। हम इस स्मृति का उपयोग बहुत तरीको से करते हैं। आज सुबह हमने नाश्ते में क्या खाया? परसों हमारे घर कौन-कौन मिलने आया था? उन लोगों ने कौन से कपड़े पहन रखे थे? हमने अपना पिछला जन्मदिन कहां और कैसे मनाया था? हम साइकिल कैसे चला लेते हैं से लेकर वर्ग पहेली हल करने तक, इन सारी गतिविधियों में हमारी यह स्मृति हमारा साथ देती है। इस प्रकार की स्मृति सबसे अधिक विविध होती है और हमारी भावनाओं, अनुभवों तथा ज्ञान इत्यादि इन सभी रूपो में परिलक्षित होती है। अल्पकालीन स्मृति की सूचनाएं बार-बार दुहराई जाने के बाद दीर्घकालीन स्मृति बन जाती हैं। इस स्मृति का क्षय नहीं होता लेकिन इसमें परिवर्तन हो सकता है।

स्मृति का मस्तिष्क में संचयन

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अब तक स्मृति की क्रियाविधि पर बात हो रही थी। यह प्रश्न अभी बाकी है कि हमारा मस्तिष्क इन सूचनाओं को कैसे संग्रहित करता है और तंत्रिका तंत्र की कौन-कौन सी गतिविधियां इसके लिए उत्तरदाई होती हैं। यदि स्मृति हमारे मस्तिष्क में रहती है तो इसके भौतिक निरूपण के कुछ प्रमाण भी होने चाहिए। इस दिशा में बहुत सारे शोध हुए हैं और इसके संदर्भ में बहुत सी व्याख्याएं भी प्रस्तुत की गईं हैं। यह तो आरंभ से ही मालूम था कि स्मृति निर्माण के लिए जैविक अणु ही जिम्मेदार होते हैं। सबसे पहले 1960 के दशक में DNA (डी ऑक्सी राइबोज न्यूक्लिक अम्ल) अणुओं के व्युत्पन्न के आधार पर इसकी व्याख्या करने की कोशिश की गई। यह बताया गया कि स्मृति के जैविक निरूपण के लिए mRNA (संदेश वाहक राइबोज न्यूक्लिक अम्ल) के अणु जिम्मेदार होते हैं। उल्लेखनीय है कि ये mRNA अणु हमारे जीनी संदेशों और प्रोटीन निर्माण के लिए मुख्य रूप से संबंधित होते हैं। बाद के वर्षों में यह देखा गया कि स्मृति के भौतिक आधार की यह परिकल्पना सही नहीं है और इस क्षेत्र में कोई भी विचार प्रस्तुत करने के लिए नए अविष्कारों की आवश्यकता है। 1970 के दशक में स्मृति के भौतिक निरूपण के संबंध में कुछ नए विचार आए। यह बताया गया कि मस्तिष्क में स्मृति क्षीण विद्युतीय तरंगो के रूप में उत्पन्न होती है और यह किसी तरह से मस्तिष्क की रचना में अति सूक्ष्म स्तर पर स्थाई भौतिक परिवर्तन करती है। यह भौतिक परिवर्तन एक नई स्मृति को निरूपित करता है। इस व्याख्या के बारे में उल्लेखनीय होगा कि यह विभिन्न प्रयोगात्मक परिक्षणों पर आधारित थी और सही भी थी। लेकिन यहां इस बात की व्याख्या नहीं हो पाती थी कि “क्षीण वैद्युतीय तरंगे संरचनात्मक रूप से कैसे और क्या परिवर्तन करती हैं।”

हाल के वर्षों में हुए शोधों से स्मृति जौविकी के संबंध में नई जानकारियां मिली हैं। इनके अनुसार स्मृति निर्माण में दो प्रमुख कारक तंत्रिका रसायन और तंत्रिका कोशिका के साइनेप्स मुख्य भूमिका निभाते हैं। शोधों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि दो तंत्रिका कोशिकाओं में सूचना संवहन के लिए जिम्मेदार न्यूरोट्रांसमीटर (जैसे एसिटिलकोलीन इत्यादि) जो कि साइनेप्स द्वारा स्रावित होते है वे किसी विशेष स्मृति के लिए एक विशेष तंत्रिका प्रारूप (Neural Pattern) को बार-बार उत्तेजित करते हैं। फलस्वरूप एक पैटर्न बन जाता है। अनुभवों और बार-बार किये गए प्रयासों (कुछ याद करने का उदाहरण दे सकते हैं) से इस पैटर्न में थोड़ा परिवर्तन हो सकता है। किसी स्मृति विशेष के लिए यह पैटर्न स्थाई होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे प्रत्येक अनुभवों, कला, कौशल, स्मृति आदि के लिए निश्चित तंत्रिका प्रारूप होते हैं। जब हम किसी के बारे में सोचते हैं तो उससे संबंधित प्रारूप काम कर रहा होता है। जब हम कोई प्रश्न हल कर रहे होते हैं तो कोई दूसरा प्रारूप सक्रिय होता है।

स्मृति संबधी अनियमितताएं और इसके कारण

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हम सभी ने किसी न किसी समय ऐसी स्थिति का सामना किया होगा जब हम अपनी याददाश्त को याद करते हैं। उदाहरण के लिए हम कुछ कहने जा रहे हों और अचानक ही भूल गए कि क्या कहना है या परीक्षा में प्रश्नपत्र के सारे उत्तर आ रहे हों लेकिन उनको लिखने के लिए शब्द नहीं मिल पा रहे हैं। यह स्मृति लोप के छोटे-छोटे उदाहरण हैं। दूसरी ओर आपने देखा होगा कि वृद्धावस्था में कुछ लोगों को भूलने की शिकायत होने लगती है। आइन्सटाइन के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि एक बार वे अपने विश्वविद्यालय में टहल रहे थे तभी उनके एक विद्यार्थी ने उन्हें दोपहर के भोजन के लिए पूछा। आइन्सटाइन ने उससे पूछा कि जब आपने मुझे रोका तब मैं किस दिशा की ओर से आ रहा था? विद्यार्थी ने एक ओर इशारा कर के बताया कि आप उस दिशा की ओर से आ रहे थे। तब आइन्सटीन ने उत्तर दिया। धन्यवाद! तब तो मैने भोजन कर लिया है। ऐसी बहुत सी कथाएं दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के संबंध में कही जाती हैं। यह छोटे स्तर पर हुए स्मृति लोप का एक उदाहरण है। उपरोक्त सभी घटनाओं में हम देखते हैं कि कहीं न कहीं से हमारे मस्तिष्क की सुगम क्रियाशीलता में रुकावट हो रही होती है। थोड़ी बहुत मात्रा में स्मृति संबंधी दोष तो लगभग सभी में होता है लेकिन इसे रोग का नाम नहीं दिया जा सकता। जब इन लक्षणों के कारण व्यक्ति औरउससे जुड़े लोग प्रभावित होने लगे तभी इसे स्मृतिभ्रंश का नाम देते हैं। इस प्रकार के रोगी केवल आधे घंटे पहले मिले लोगों को याद नहीं रख पाते। उन्हे यह भी याद नहीं रहता कि दस मिनट पहले उन्होने स्नान किया था। जीवन की सामान्य क्रियाएं बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित होने लगती हैं। स्मृति लोप या स्मृति भ्रंश (Amnesia), स्मृति संबंधी एक ऐसी घटना है जिसमें इससे संबंधित किसी भी प्रक्रम जैसे स्मरण या संग्रहण में बाधा उत्पन्न हो जाती है और जिसके फलस्वरूप हमारी सामान्य स्मृति प्रभावित होती है। यह बाधा किसी भी शारीरिक या मनोवैज्ञानिक कारणों जैसे मस्तिष्क की चोट या किसी अन्य कारण से हुई क्षति, बिमारी, पोषक तत्वों की कमी, सदमें, अत्यधिक शराब के सेवन से, नशीली दवाइयों और अधिक उम्र के कारण हो सकती है। यहां स्मृतिलोप के कुछ मुख्य प्रकारों का वर्णन किया गया है।

कोरसाकॉफ सिंड्रोम (Korsakoff’s Syndrome)

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शराब का अत्यधिक सेवन करने वाले लोगों में इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। शराब से लंबे समय तक अधिक मात्रा में सेवन करने से मुख्यतः दो समस्याएं होती हैं। एक तो थाइमिन विटामिन की खतरनाक स्तर पर कमी हो जाती है और दूसरी, मस्तिष्क में कुछ हानिकारक संरचनात्मक परिवर्तन हो जाते हैं। इनके फलस्वरूप रोगियों कि स्मृति बुरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसा देखा गया है कि इनकी वर्तमानकाल की स्मृति तो ठीक होती है लेकिन बीती घटनाओं को याद नहीं रख पाते और बहुत सी महत्वपूर्ण यादें इनकी स्मृति से पूरी तरह से गायब दिखाई देती हैं।

अग्रगामी (एंटेरोग्रेड) स्मृतिलोप (Anterograde Amnesia)

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इस प्रकार के स्मृति भ्रंश में नई सूचनाएं याद करने में कठिनाई होती है, लेकिन बीती घटनाओं की स्मृतियां बिल्कुल ठीक होती हैं। ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं कि किसी के मस्तिष्क के किसी खास हिस्से पर चोट लग गई हो और उसके बाद उसे केवल पुरानी बाते याद रह गई हों और दुर्घटना के बाद की किसी नई स्मृति के लिए कोई स्थान ही न बचा हो।

पश्चगामी (रेट्रोग्रेड) स्मृतिलोप (Retrograde Amnesia)

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इसके लक्षणों में पुरानी घटनाएं तो आश्चर्यजनक रूप से भूल जाती हैं लेकिन नई घटनाओं से संबंधित स्मृतियों में कोई परेशानी नहीं होती। ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं कि किसी दुर्घटना के बाद पुरानी सारी यादें पता नहीं कहां चली गईं? लेकिन नई सूचनाओं को याद रखने में कोई कठिनाई नहीं हो रही है। इस प्रकार के स्मृतिलोप में स्मृति कुछ दिनों में वापस आ जाती है।

अभिप्रेरित विस्मृति (Motivated Forgetting)

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यह देखा गया है कि कभी कभी हमारा मन हमें कुछ विशेष स्मृतियों तो भूलने के लिए भी प्रेरित करता है। और हम उन्हें पूरी तरह से भूल भी जाते हैं। हमारे वर्तमान को सुखद बनाने के लिए प्रकृति द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई है। ऐसा विशेष तौर पर बहुत ही पीड़ादायक स्मृतियों के संदर्भ में होता है। उदाहरण के लिए बाल्यकाल में हुई कोई दुखद घटना, दंड आदि। यहां उल्लेखनीय होगा कि ये स्मृतियां केवल हमारे चेतन मन से लुप्त होती हैं। कहीं गहरे अचेतन में इनके अंश विद्यमान होते हैं।

स्मृति युक्तियां

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कुछ लोगों को विभिन्न ध्वनियां ऐसी भी दिखाई पड़ती हैं

हम अपने आस-पास ऐसे अनेक लोगों को देखते हैं जिनकी स्मृति क्षमता बहुत अच्छी होती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कि अपने भुलक्कड़ स्वभाव के कारण जाने जाते हैं। हम में से सभी सोचते हैं कि हमारी यादाश्त क्षमता बढ जाए तो कितना अच्छा हो। एक अच्छी यादाश्त का मुख्य लक्षण है कि यह सभी संबंधित बातों को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करे और आवश्यकता पड़ने पर तुरंत ही इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करे। कुछ ऐसी दवाइयां उपलब्ध हैं जिनसे गंभीर रूप से भूलने की स्थिति में सहायता मिलती है। लेकिन इन दवाइयों का प्रयोग विशेष स्थितियों में ही करना चाहिए। हम कितनी अच्छी तरह से याद करते और सीखते हैं यह काफी कुछ हमारे भावनात्मक स्थिति पर निर्भर करता है। सीखने और समझने के लिए प्रेरणादायक वातावरण हमेशा ही लाभप्रद होता है। हम तब भी बेहतर तरीके से सीख पाते हैं जब हम ध्यान देते हैं। यह भी आवश्यक है कि सूचना को किस प्रकार कोड किया जा रहा है। इसका भंडारण और समेकन (storage and integration) किस प्रकार हो रहा है और इसका पुनः स्मरण (retrieval) कैसे हो रहा है। एक अच्छी स्मृति के लिए इन सारी क्रियाओं का सुचारु रूप से होना आवश्यक है।

स्मृति युक्तियां ऐसी व्यवहारिक विधियां हैं जिनसे स्मृति क्षमता एक हद तक बढ़ाई जा सकती है। हम जाने अनजाने में किन्हीं चीजों को याद करने के लिए इनका प्रयोग भी करते हैं। नेपोलियन के बारे में यह कहा जाता है कि उसे अपनी सेना के प्रत्येक अधिकारी का नाम याद था। इस तरह की विलक्षण स्मृति क्षमता वाले लोग दिखाई देते हैं जिन्हें बहुत सारे वर्षों का पंचांग याद रहता है। अब यह प्रश्न उठता है कि एक सामान्य व्यक्ति के याद करने के तरीके और विशिष्ट स्मृति संपन्न लोगों के तरीकों में क्या अंतर होता है? शोधों द्वारा देखा गया है कि अलग-अलग व्यक्तियों में सूचनाओं के कोडीकरण, संग्रहण और स्मरण का तरीका थोड़ा अलग हो सकता है। एक अच्छी स्मृति या तो जन्मजात प्रतिभा हो सकती है या बाद में साधारण लोगों द्वारा भी कुछ विशेष विधियों का प्रयोग कर के सीखी जा सकती है। जन्मजात रूप से उच्च स्मृति क्षमता वाले व्यक्तियों में स्मृतियों की प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है। ऐसा देखा गया है कि ऐसे लोगों मे कुछ के पास साइनेस्थेसिया (Synaesthesia) के लक्षण भी होते हैं। साइनेस्थेसिया को समझाने के लिए कहा जा सकता है कि ऐसे लोग ध्वनि को सुनने के साथ साथ देखते और दृश्यों को देखने के साथ सुनते भी हैं। अतः कुछ देखने के लिए वे मस्तिष्क की दृश्य क्षमता के साथ-साथ श्रवण क्षमता का भी प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एक कोमल मधुर ध्वनि उनके लिए एक सुंदर रंगों का समूह भी हो सकता है और एक कठोर ध्वनि के लिए गहरे तेज चुभते हुए रंग भी हो सकते हैं। साइनेस्थेसिया के लक्षण और भी संवेदी क्षमताओं जैसे स्पर्श, घ्राण इत्यादि के लिए भी हो सकते हैं।

स्मृति को प्रभावशाली बनाने के लिए अन्य भी बहुत सारी स्मृति युक्तियां प्रयोग की जाती हैं। जैसे पहले से संग्रहित स्मृति को नई सूचना से जोड़ कर याद करना, समान सूचनाओं को एक साथ रख कर याद करना, किसी भी सूचना को रुचिकर कथा के रूप में बदल कर याद करना इत्यादि। जटिल पाठ्य सामग्री को समझने के लिए एक और विधि SQ3R (Survey, Question, Read, Recite, Review) बहुत ही उपयोगी होती है। इसमें पहले पाठ्य सामग्री का मन में एक खाका तैयार करते हैं, फिर खुद से ही उस पर “क्या, क्यों और कैसे” आधारित कुछ प्रश्न बनाते हैं। अब इन प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए पाठ्य सामग्री को ध्यान पूर्वक पढ़ा जाता है और फिर उसे क्रम से दुबारा पढ़ते हैं। अंत में पाठक द्वारा इसकी समीक्षा की जाती है।
अच्छी स्मृति के लिए अच्छा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य जरूरी है। इसके साथ ही जो पढा जा रहा है उससे भावनात्मक लगाव भी आवश्यक है। कुछ एकाग्रता बढ़ाने वाली विधियां जैसे कि ध्यान और प्राणायाम आदि भी स्मृति की क्षमता बढ़ाने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई हैं।

स्मरण रखने की प्राचीन पद्धतियाँ

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यह सुनिश्चित करने के लिये कि भारत के प्राचीन ग्रन्थ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में मूल रूप में हस्तान्तरित होते रहें, प्राचीन भारतीयों ने बहुत मेहनत की। उदाहरण के लिये वेदों को याद करने के लिये लगभग ग्यारह तरीके से उनका पाठ करने की प्रथा थी। याद करने के लिये पाठ की कुछ प्रमुख विधियाँ इस प्रकार थीं-

जटा-पाठ
ध्वजा-पाठ
घन-पाठ

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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