रमेशराज तेवरीकार
रमेशराज तेवरीकार (जन्म १५ मार्च सन् १९५४) हिंदी के विद्वान,कवि एवं लेखक हैं । व्यंग्य और रस के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध हैं| आप हिन्दी-काव्य की नूतन विधा 'तेवरी' और रस-परंपरा का विकास करने वाले प्रमुख विद्वानों में से एक हैं[1][2]
रमेशराज तेवरीकार | |
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जन्म | 15 मार्च, सन 1954 गांव-एसी, जनपद-अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत |
दूसरे नाम | तेवरीकार |
पेशा | हिन्दी कविता, कवि-सम्मेलन, तेवरी-सृजन |
भाषा | हिन्दी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | वर्तमान |
विधा | तेवरी-काव्य, निबंध-संग्रह, बाल एवं प्रौढ़ साहित्य तथा रस-मीमांसा |
विषय | साहित्य सृजन |
उल्लेखनीय कामs | दे लंका में आग,जय कन्हैयालाल की,घड़ा पाप का भर रहा,मन के घाव नये न ये,ऊघौ कहियो जाय (तेवरी-शतक) |
वेबसाइट | |
निजी जालघर |
जीवन परिचय
संपादित करेंरमेशराज तेवरीकार जी का जन्म १५ मार्च सन १९५४ मैं गांव-एसी, जनपद-अलीगढ़, (उत्तर प्रदेश) में हुआ। आपका पूरा नाम रमेशचन्द्र गुप्त है आपके पिताजी रामचरण गुप्त ब्रजभाषा साहित्यकार, लोकगायक और स्वाधीनता सेनानी थे।[3]आपकी माता गंगा देवी एक साधारण गृहणी थीं। बचपन से ही विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने में आपकी रुचि थी। बचपन से ही आपको अपने कवि-पिता का साहित्यिक मार्गदर्शन मिला और उनके कवि-मित्रों की गोष्ठियों के माध्यम से उन्हें कविता लेखन की अनौपचारिक शिक्षा मिली। आपने 'तेवरीपक्ष' पत्रिका का संपादन भी किया।[4][5]
प्रकाशित कृतियाँ
संपादित करें- अभी जु़बां कटी नहीं (तेवरी-संग्रह)
- कबीर जि़न्दा है (तेवरी-संग्रह)
- इतिहास घायल है (तेवरी-संग्रह)
- एक प्रहारः लगातार (तेवरी-संग्रह)
स्वरचित कृतियां
संपादित करेंरस से संबंधित
संपादित करें- तेवरी में रस-समस्या और समाधान
- विचार और रस (विवेचनात्मक निबंध)
- विरोध-रस (शोध-प्रबंध)
- काव्य की आत्मा और आत्मीयकरण (शोध-प्रबंध)
तेवर-शतक
संपादित करेंलम्बी तेवरियां-
- दे लंका में आग, जै कन्हैयालाल की, घड़ा पाप का भर रहा,मन के घाव नये न ये , धन का मद गदगद करे,ककड़ी के चोरों को फांसी, मेरा हाल सोडियम-सा है,रावण-कुल के लोग,अन्तर आह अनंत अति,पूछ न कबिरा जग का हाल, रमेशराज के चर्चित तेवरी संग्रह[6]
शतक
संपादित करेंऊघौ कहियो जाय (तेवरी-संग्रह),मधु-सा ला (शतक),.जो गोपी मधु बन गयीं (दोहा-शतक),देअर इज एन ऑलपिन (दोहा-शतक),नदिया पार हिंडोलना (दोहा-शतक),पुजता अब छल (हाइकु-शतक)
मुक्तछंद कविता-संग्रह
संपादित करेंदीदी तुम नदी हो, वह यानी मोहन स्वरूप
बाल-कविताएं
संपादित करेंराष्ट्रीय बाल कविताएं[7]
पुरस्कार और सम्मान
संपादित करें- ‘साहित्यश्री’,अलीगढ़
- ‘उ.प्र. गौरव’, अलीगढ़
- ‘तेवरी-तापस’, होशंगाबाद (म0प्र0)
- ‘शिखरश्री’,अलीगढ़
- अभिनंदन-सुर साहित्य संगम, एटा
- 'परिवर्तन तेवरी-रत्न',बुलंदशहर
आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 मार्च 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 मार्च 2018.
- ↑ http://amstelganga.org/तेवरी-ग़ज़ल-नहीं-है-क्योंकि/[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 मार्च 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 मार्च 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.