रसतरंगिणी (=रस की नदी) , रसशास्त्र का एक ग्रन्थ है जिसकी रचना महामहोपाध्‍याय सदानन्द शर्मा नें लगभग 200 वर्ष पूर्व की है। इस ग्रंथ के ग्रंथकार नें कुछ द्रव्‍यों का औषधीय प्रयोग बतलाया है जो अन्‍यत्र नहीं मिलते हैं।

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