राग हिंडोल या राग हिंदोल का जन्म कल्याण थाट से माना गया है। इसमें मध्यम तीव्र तथा निषादगंधार कोमल लगते हैं। ऋषभ तथा पंचम वर्जित है। इसकी जाति ओड़व ओड़व है तथा वादी स्वर धैवतसंवादी स्वर गांधार है। गायन का समय प्रातःकाल है। शुद्ध निषाद, रिषभ और पंचम इस स्वर इसमें वर्ज्य हैं। तीव्र मध्यम वाला यह एक ही राग है जिसको प्रातःकाल गाया जाता है। अन्य सभी तीव्र मध्यम वाले रागों का गायन समय रात्रि में होता है।[1]

राग हिंडोल 16वीं शती का एक लघुचित्र

राग हिंदोल में निषाद को बहुत कम महत्व दिया गया है। इतना ही नहीं, आरोह में उसे वर्ज्य करके अवरोह में भी सां ध इन दो स्वरों के बीच में छुपाना पड़ता है क्यों कि म ध नि सा लेने से सोहनी और सां नि, ध म लेने से पूरिया राग की छाया इसमें आने लगती है। इसको सोहनी और पूरिया से बचाने के लिए मध सांध, धम गसा ध सां ऐसी पकड़ लेने से इसका स्वरूप स्पष्ट होता है। इस राग में जब सां ध ऐसे स्वर आते हैं तब सां से ध स्वर पर आते समय बीच के निषाद को धैवत में जोड़ दिया जाता है। राग चिकित्सा में इस राग को जोड़ों के दर्द के लिए लाभकारी माना गया है।[2]

सन्दर्भ

  1. "राग - हिंदोल" (टीएक्सटी) (मराठी में). दशर.ऑर्ग. अभिगमन तिथि २ अप्रैल २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  2. "सुरों के साथ सेहत की संगत" (एचटीएमएल). दैनिक भास्कर. मूल से 7 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २ अप्रैल २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)