देव राज विरासत

यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित है। ये राजपूत परिवार के माना ज
(राजा किला देव से अनुप्रेषित)

देव राज विरासत (Deo Raj Virasat) या देव गढ़ (Deo Fort), जिसे स्थानीय लोग राजा का किला (Raja ka Kila) भी कहते हैं, भारत के बिहार राज्य के औरंगाबाद ज़िले के देव नगर के समीप स्थित एक दुर्ग व राजनिवास है। इसका निर्माण सिसोदिया राजपूत की "देव राज" कहलाने वाली शाखा ने करा था। इस के समीप ही देव सूर्य मन्दिर स्थित है। दुर्ग का मुख्य द्वार उत्तर दिशा में खुलता है।[1]

देव राज विरासत
स्थानीय नाम
Deo Raj Virasat
देव गढ़
राजा का किला
देव राज विरासत is located in बिहार
देव राज विरासत
बिहार में अवस्थिति
स्थानदेव, औरंगाबाद ज़िला, बिहार, भारत
निर्देशांक24°39′32″N 84°26′13″E / 24.659°N 84.437°E / 24.659; 84.437निर्देशांक: 24°39′32″N 84°26′13″E / 24.659°N 84.437°E / 24.659; 84.437

विवरण संपादित करें

यह वर्णन इतिहास में मिलती है कि देव किला का सबसे अंतिम राजा जगनाथ जी थे जो काफी लंबे समय तक अपने राज्य में शांति और वह प्रजा लोगो के साथ शांति के साथ राज्य का जिम्मा अपने हाथ में लेकर शासन किया। उनका कोई भी अपना संतान नहीं था। देव राज के संस्थापक राजाभान सिंह मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के चचेरे भाई थे। कहा जाता है कि वे जग्गनाथ पुरी जा रहे थे और रास्ते में उमगा रानी के यहां ठहर। रानी के खिलाफ प्रजा ने विद्रोह कर दिया था। भान सिंह ने रानी का पक्ष लिया और विद्रोह को कुचल दिया। रानी का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। रानी ने भान सिंह को अपना उत्तराधिकारी बना लिया। देव में उन्होंने अपनी राजधानी बनाई। देव के राजा छत्रपाल सिंह के पुत्र फतेहनारायण सिंह ने राजा चेत सिंह के खिलाफ अंग्रजों की मदद की थी। पिंडारियों से हुए युद्ध में उन्होंने कम्पनी का साथ दिया। उनके देहांत के बाद बारी आई कि अब राज्य का जिम्मा कौन संभाले तो ये जिम्मेदारी उनकी बीवी को लेनी थी। उनकी दो पत्नियां थी जिसमे से राज्य का जिम्मा उनकी छोटी पत्नी ने संभाली उनकी छोटी पत्नी ने अपने राज्य पर देश को स्वत्रंत होने 1947 तक किया। भारत को इंडिपेंडेंट देश बनने के बाद उस वक्त के देव राज्य के अटॉर्नी जॉर्नल मुनेश्वर सिंह ने देश में विलय ( मर्ज ) के लिए हस्ताक्षर किया था और इस तरह से देव राज्य भारत देश में विलय हो गया।[2]

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाह्य जोड़ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Anirudha Behari Saran; Gaya Pandey (1992). Sun Worship in India: A Study of Deo Sun-Shrine. Northern Book Centre. पपृ॰ 29–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7211-030-7.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 18 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2018.