राजा बिठ्ठलदास गौड़, राजा गोपालदास गौड़ का दूसरा पुत्र। मुगल सम्राट् शाहजहाँ के प्रारंभिक काल में तीन हजारी 1500 सवार का मंसबदार हुआ। जुझारसिंह के विद्रोह करने पर यह खानजहाँ लोदी के साथ उसके दमन को नियुक्त हुआ। किंतु जब खानजहाँ लोदी ने ही विद्रोह के चिह्र प्रकट किए, तो उसके दमन का भी कार्य इसे सौंपा गया। राजा गजसिंह के सहायक के रूप में इसने खानजहाँ लोदी के दाँत खट्टे किए।

इसके बाद सम्राट् ने इसे क्रमश: रणथंभोर का दुर्गाध्यक्ष और अजमेर में फौजदार नियुक्त किया। परेंद: दुर्ग के घेरे में राजकुमार मुहम्मद शुजा के साथ रहा। जब दुर्ग विजित नहीं हो पाया, तो इसे पुन: अजमेर में रखा गया। दक्षिण में शाहजी भोंसले का विद्रोह दबाने के लिए सम्राट् ने इसे भी भेजा था। उसके पश्चात् यह आगरे का दुर्गाध्यक्ष नियुक्त हुआ। इसका मंसब पाँच हजारी सवार का कर दिया गया और यह राजकुमार मुरादबख्श के साथ बलख और बदख्शाँ पर आक्रमण करने को नियुक्त हुआ। बलख विजय के अनंतर यह वहाँ से राजकुमार के साथ लौट आया। राजकुमार औरंगजेब के साथ कांधार के काजिलबाशों के विरुद्ध युद्ध में इसने यश प्राप्त किया। जीवन के अंतिम समय में यह अपने प्रांत लौट गया और वहीं 1651 ई. में इसकी मृत्यु हुई।