राजीव गांधी

भारत के छठे प्रधानमंत्री
(राजीव गाँधी से अनुप्रेषित)

राजीव गांधी (20 अगस्त, 1944 - 21 मई, 1991), फ़िरोज़ गांधी और इंदिरा गांधी के बड़े पुत्र और जवाहरलाल नेहरू के दौहित्र (नाती), भारत के सातवें प्रधानमन्त्री थे।
राजीव का विवाह सोनिया गांधी से हुआ जो उस समय इटली की नागरिक थी।[1] विवाहोपरान्त उनकी पत्नी ने नाम बदलकर सोनिया गांधी कर लिया। कहा जाता है कि राजीव गांधी से उनकी मुलाकात तब हुई जब राजीव कैम्ब्रिज में पढ़ने गये थे। उनकी शादी 1968 में हुई जिसके बाद वे भारत में रहने लगी। राजीव व सोनिया के दो बच्चे हैं, पुत्र राहुल गांधी का जन्म 1970 और पुत्री प्रियंका गांधी का जन्म 1972 में हुआ।

राजीव गांधी
राजीव गांधी

राजीव जी गांधी


कार्यकाल
31 अक्तूबर 1984 – 2 दिसम्बर 1989

जन्म 20 अगस्त 1944
मुम्बई, महाराष्ट्र
मृत्यु 21 मई 1991
राष्ट्रीयता भारतीय
राजनैतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस
जीवन संगी सोनिया गांधी

राजीव गांधी के जन्म दिन के अवसर पर 20 अगस्त को सद्भावना दिवस[2] मनाया जाता है। सद्भावना दिवस पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के द्वारा विशेष आयोजन होता है। देश भर में पार्टी सदस्य अपने पूर्व नेता राजीव गांधी को श्रद्धांजली देते है, उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते है. उनकी फोटो पर माल्यार्पण किया जाता है, दीपक जलाकर उन्हें याद किया जाता है। दिल्ली में स्थित राजीव गाँधी के समाधी स्थल वीरभूमि में राजीव गाँधी का पूरा परिवार, करीबी मित्र, रिश्तेदार और कांग्रेस पार्टी के मुख्य लोग इक्कठे होते हैं, इसके अलावा देश के और भी दूसरी पार्टी के प्रमुख नेता भी राजीव गाँधी को श्रद्धांजली देने के लिए वहां जाते है।

राजनीतिक जीवन

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राजनीति में प्रवेश

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राजीव गांधी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन पाइलट की नौकरी करते थे। परन्तु 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी को सहयोग देने के लिए सन् 1981 में राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश लिया।

भारत के प्रधान मंत्री

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वो अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद बने और 31 अक्टूबर 1984 को अंगरक्षकों द्वारा प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की हत्या किए जाने के बाद भारत के प्रधानमन्त्री बने और अगले आम चुनावों में सबसे अधिक बहुमत पाकर प्रधानमन्त्री बने रहे। राजीव गांधी ने 1985 में मुंबई में एआईसीसी के पूर्ण सत्र में ‘संदेश यात्रा’ की घोषणा की थी। अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल ने इसे पूरे देश में चलाया था।[3] प्रदेश कांग्रेस समितियों (पीसीसी) और पार्टी के नेताओं ने मुंबई, कश्मीर, कन्याकुमारी और पूर्वोत्तर से एक साथ चार यात्राएं कीं। तीन महीने से अधिक समय तक चली यह यात्रा दिल्ली के रामलीला मैदान में संपन्न हुई।

राजीव गांधी भारत में सूचना क्रान्ति के जनक माने जाते हैं. देश के कम्प्यूटराइजेशन और टेलीकम्युनिकेशन क्रान्ति का श्रेय उन्हें जाता है. स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में महिलाओं को 33% रिजर्वेशन दिलवाने का काम उन्होंने किया । मतदाता की उम्र 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष तक के युवाओं को चुनाव में वोट देने का अधिकार राजीव गांधी ने दिलवाया।

बाद के वर्षों में

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भारत यात्रा के माध्यम से जन संपर्क कार्यक्रम

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1990 में, राजीव गांधी ने विभिन्न तरीकों से भारत यात्रा की - पदयात्रा, एक साधारण यात्री ट्रेन की दूसरी श्रेणी की गाड़ी।[4] उन्होंने अपनी 'भारत यात्रा' के शुरुआती बिंदु के रूप में चंपारण को चुना। राजीव गांधी ने 19 अक्टूबर 1990 को हैदराबाद के चारमीनार से सद्भावना यात्रा शुरू की थी।[5][6][7]

चुनावों का प्रचार करते हुए 21 मई, 1991 को लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम नामक आतंकवादी संगठन के आतंकवादियों ने राजीव गांधी की एक बम विस्फ़ोट में हत्या कर दी।

आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताये जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोक्की ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डालर का था। आरोप है कि स्वीडन की हथियार कम्पनी बोफ़ोर्स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड़ डालर की रिश्वत बाँटी थी।

काफी समय तक राजीव गांधी का नाम भी इस मामले के अभियुक्तों की सूची में शामिल रहा लेकिन उनकी मौत के बाद नाम फाइल से हटा दिया गया। सीबीआई को इस मामले की जाँच सौंपी गयी लेकिन सरकारें बदलने पर सीबीआई की जाँच की दिशा भी लगातार बदलती रही। एक दौर था, जब जोगिन्दर सिंह सीबीआई चीफ़ थे तो एजेंसी स्वीडन से महत्वपूर्ण दस्तावेज लाने में सफल हो गयी थी। जोगिन्दर सिंह ने तब दावा किया था कि केस सुलझा लिया गया है। बस, देरी है तो क्वात्रोक्की को प्रत्यर्पण कर भारत लाकर अदालत में पेश करने की। उनके हटने के बाद सीबीआई की चाल ही बदल गयी। इस बीच कई ऐसे दाँवपेंच खेले गये कि क्वात्रोक्की को राहत मिलती गयी। दिल्ली की एक अदालत ने हिन्दुजा बन्धुओं को रिहा किया तो सीबीआई ने लन्दन की अदालत से कह दिया कि क्वात्रोक्की के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं हैं। अदालत ने क्वात्रोक्की के सील खातों को खोलने के आदेश जारी कर दिये। नतीजतन क्वात्रोक्की ने रातों-रात उन खातों से पैसा निकाल लिया।

2007 में रेड कार्नर नोटिस के बल पर ही क्वात्रोक्की को अर्जेन्टिना पुलिस ने गिरफ्तार किया। वह बीस-पच्चीस दिन तक पुलिस की हिरासत में रहा। सीबीआई ने काफी समय बाद इसका खुलासा किया। सीबीआई ने उसके प्रत्यर्पण के लिए वहाँ की कोर्ट में काफी देर से अर्जी दाखिल की। तकनीकी आधार पर उस अर्जी को खारिज कर दिया गया, लेकिन सीबीआई ने उसके खिलाफ वहाँ की ऊँची अदालत में जाना मुनासिब नहीं समझा। नतीजतन क्वात्रोक्की जमानत पर रिहा होकर अपने देश इटली चला गया। पिछले बारह साल से वह इंटरपोल के रेड कार्नर नोटिस की सूची में है। सीबीआई अगर उसका नाम इस सूची से हटाने की अपील करने जा रही है तो इसका सीधा सा मतलब यही है कि कानून मन्त्रालय, अटार्नी जनरल और सीबीआई क्वात्रोक्की को बोफोर्स मामले में दलाली खाने के मामले में क्लीन चिट देने जा रही है।

यह ऐसा मसला है, जिस पर 1989 में राजीव गांधी की सरकार चली गयी थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह हीरो के तौर पर उभरे थे। यह अलग बात है कि उनकी सरकार भी बोफोर्स दलाली का सच सामने लाने में विफल रही थी। बाद में भी समय-समय पर यह मुद्दा देश में राजनीतिक तूफान लाता रहा। इस प्रकरण के सामने-आते ही जिस तरह की राजनीतिक हलचल शुरू हुई, उससे साफ है कि बोफोर्स दलाली आज भी भारत में बड़ा राजनीतिक मुद्दा है।

सीबीआई की भूमिका की आलोचना

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इस मामले को सीबीआई ने जिस तरह से भूमिका निभायी है, उसकी विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों और लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर आलोचना की गई है। ध्यान योग्य कुछ बिंदु ये हैं-

  • (4) क्वात्रोची के लन्दन के बैंक खाते को पुनः चालू (De-freez) कर देना
  • (5) अर्जेंटीना से क्वात्रोची के प्रत्यर्पण के लिए एक बहुत ही कमजोर केस बनाना
  • (6) इसके बाद भी, निचली अदालत के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील न करना
  • (7) इण्टरपोल रेड कॉर्नर नोटिस को वापस ले लेना
  • (8) और अन्ततः, क्वात्रोची के खिलाफ मुकद्दमे को वापस ले लेना।

प्रमुख घटनाक्रम

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24 मार्च, 1986: भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कम्पनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ। यह सौदा भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप की सप्लाई के लिए हुआ था।

16 अप्रैल, 1987: यह दिन भारतीय राजनीति, और मुख्यतः कांग्रेस के लिए भूचाल लाने वाला सिद्ध हुआ। स्वीदेन के रेडियो ने दावा किया कि कम्पनी ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को घूस दिए हैं। 60 करोड़ रुपये घूस देने का दावा किया गया। राजीव गांधी उस समय भारत के प्रधानमन्त्री थे।

20 अप्रैल, 1987: लोकसभा में राजीव गांधी ने बताया था कि न ही कोई रिश्वत दी गई और न ही बीच में किसी बिचौलिये की भूमिका थी।

6 अगस्त, 1987: रिश्वतखोरी के आरोपों की जाँच के लिए एक संयुक्त संसदीय कमिटी (जेपीसी) का गठन हुआ। इसका नेतृत्व पूर्व केन्द्रीय मन्त्री बी. शंकरानन्द ने किया।

फरवरी 1988: मामले की जाँच के लिए भारत का एक जाँच दल स्वीडन पहुँचा।

18 जुलाई, 1989: जेपीसी ने संसद को रिपोर्ट सौंपी।

नवम्बर, 1989: भारत में आम चुनाव हुए और कांग्रेस की बड़ी हार हुई और राजीव गांधी प्रधानमन्त्री नहीं रहे।

26 दिसम्बर, 1989: नए प्रधानमन्त्री वी.पी.सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने बोफोर्स पर पाबन्दी लगा दी।

22 जनवरी, 1990: सीबीआई ने आपराधिक षडयन्त्र, धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया। मामला एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्डबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिन्दुजा बन्धुओं के खिलाफ दर्ज हुआ।

फरवरी 1990: स्विस सरकार को न्यायिक सहायता के लिए पहला आग्रह पत्र भेजा गया।

फरवरी 1992: बोफोर्स घपले पर पत्रकार बो एंडर्सन की रिपोर्ट से भूचाल आ गया।

दिसम्बर 1992: मामले में शिकायत को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया और दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया।

जुलाई 1993: स्विटजरलैंड के सुप्रीम कोर्ट ने ओत्तावियो क्वात्रोकी और मामले के अन्य आरोपियों की अपील खारिज कर दी। क्वात्रोकी इटली का एक व्यापारी था जिस पर बोफोर्स घोटाले में दलाली के जरिए घूस खाने का आरोप था। इसी महीने वह भारत छोड़कर फरार हो गया और फिर कभी नहीं आया।

फरवरी 1997: क्वात्रोकी के खिलाफ गैर जमानती वॉरण्ट (एनबीडब्ल्यू) और रेड कॉर्नर नोटिस जारी की गई।

मार्च-अगस्त 1998: क्वात्रोकी ने एक याचिका दाखिल की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया क्योंकि उसने भारत के कोर्ट में हाजिर होने से इनकार कर दिया था।

दिसम्बर 1998: स्विस सरकार को दूसरा रोगैटरी लेटर भेजा गया और गर्नसी एवं ऑस्ट्रिया से स्विटजरलैंड पैसा ट्रांसफर किए जाने की जाँच का आग्रह किया गया। रोगैटरी लेटर एक तरह का औपचारिक आग्रह होता है जिसमें एक देश दूसरे देश से न्यायिक सहायता की मांग करता है।

22 अक्टूबर, 1999: एबी बोफोर्स के एजेंट विन चड्ढा, क्वात्रोकी, तत्कालीन रक्षा सचिव एस.के.भटनागर और बोफोर्स कम्पनी के प्रेजिडेण्ट मार्टिन कार्ल आर्डबो के खिलाफ पहला आरोपपत्र दाखिल किया गया।

मार्च-सितंबर 2000: सुनवाई के लिए चड्ढा भारत आया। उसने चिकित्सा उपचार के लिए दुबाई जाने की अनुमति माँगी थी लेकिन उसकी माँग खारिज कर दी गई थी।

सितंबर-अक्टूबर 2000: हिन्दुजा बन्धुओं ने लन्दन में एक बयान जारी करके कहा कि उनके द्वारा जो फण्ड आवण्टित किया गया, उसका बोफोर्स डील से कोई लेना-देना नहीं था। हिन्दुजा बन्धुओं के खिलाफ एक पूरक आरोपपत्र दाखिल किया गया और क्वात्रोकी के खिलाफ एक आरोपपत्र दाखिल की गई। उसने सुप्रीम कोर्ट से अपनी गिरफ्तारी के फैसले को पलटने का आग्रह किया था लेकिन जब उससे जांच के लिए सीबीआई के समक्ष हाजिर होने को कहा तो उसने मानने से इनकार कर दिया।

दिसम्बर 2000: क्वात्रोकी को मलयेशिया में गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बाद में जमानत दे दी गई। जमानत इस शर्त पर दी गई थी कि वह शहर नहीं छोड़ेगा।

अगस्त 2001: भटनागर की कैंसर से मौत हो गई।

दिसम्बर 2002: भारत ने क्वात्रोकी के प्रत्यर्पण की माँग की लेकिन मलयेशिया के हाई कोर्ट ने आग्रह को खारिज कर दिया।

जुलाई 2003: भारत ने यूके को अनुरोध पत्र (लेटर ऑफ रोगैटरी) भेजा और क्वात्रोकी के बैंक खाते को जब्त करने की माँग की।

फरवरी-मार्च 2004: कोर्ट ने स्वर्गीय राजीव गांधी और भटनागर को मामले से बरी कर दिया। मलयेशिया के सुप्रीम कोर्ट ने भी क्वात्रोकी के प्रत्यर्पण की भारत की माँग को खारिज कर दिया।

मई-अक्टूबर 2005: दिल्ली हाई कोर्ट ने हिन्दुजा बन्धु और एबी बोफोर्स के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया। 90 दिनों की अनिवार्य अवधि में सीबीआई ने कोई अपील दाखिल नहीं की। इसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक वकील अजय अग्रवाल को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील दाखिल करने की अनुमति दी।

जनवरी 2006: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को निर्देश दिया कि क्वात्रोकी के खातों के जब्त करने पर यथापूर्व स्थिति बनाए रखा जाए लेकिन उसी दिन पैसा निकाल लिया गया।

फरवरी-जून 2007: इंटरपोल ने अर्जेंटिना में क्वात्रोती को गिरफ्तार कर लिया लेकिन तीन महीने बाद अर्जेंटिना के कोर्ट ने प्रत्यर्पण के भारत के आग्रह को खारिज कर दिया।

अप्रैल-नवम्बर 2009: सीबीआई ने क्वात्रोकी के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस को वापस ले लिया और चूंकि प्रत्यर्पण का बार-बार का प्रयास विफल हो गया था इसलिए मामले को बंद करने की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी। बाद में अजय अग्रवाल ने लंदन में क्वात्रोकी के खाते संबंधित दस्तावेज मांगे लेकिन सीबीआई ने याचिका का जवाब नहीं दिया।

दिसम्बर 2010: कोर्ट ने क्वात्रोकी को बरी करने की सीबीआई की याचिका पर फैसले को पलट दिया। इनकम टैक्स ट्राइब्यूनल ने क्वात्रोकी और चड्ढा के बेटे से उन पर बकाया टैक्स वसूलने का इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को निर्देश दिया।

फरवरी-मार्च 2011: मुख्य सूचना आयुक्त ने सीबीआई पर सूचनाओं को वापस लेने का आरोप लगाया। एक महीने बाद दिल्ली स्थित सीबीआई के एक स्पेशल कोर्ट ने क्वात्रोकी को बरी कर दिया और टिप्पणी की कि टैक्सपेयर्स की गाढ़ी कमाई को देश उसके प्रत्यर्पण पर खर्च नहीं कर सकता हैं क्योंकि पहले ही करीब 250 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।

अप्रैल 2012: स्वीडन पुलिस ने कहा कि राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन द्वारा रिश्वतखोरी का कोई साक्ष्य नहीं है। आपको बता दें कि अमिताभ बच्चन से राजीव गांधी की गहरी दोस्ती थी। एक समाचार पत्र की रिपोर्ट में अमिताभ बच्चन पर भी रिश्वतखोरी में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद उनके खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया गया था लेकिन बाद में उनको निर्दोष करार दे दिया गया था।

13, जुलाई 2013: सन् 1993 को भारत से फरार हुए क्वात्रोकी की मृत्यु हो गई। तब तक अन्य आरोपी जैसे भटनागर, चड्ढा और आर्डबो की भी मौत हो चुकी थी।

1 दिसम्बर, 2016: 12 अगस्त, 2010 के बाद करीब छह साल के अन्तराल के बाद अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई हुई।

14 जुलाई, 2017: सीबीआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र सरकार अगर आदेश दें तो वह फिर से बोफोर्स मामले की जांच शुरू कर सकती है।

2 फरवरी, 2018: सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल करके दिल्ली हाई कोर्ट के 2005 के फैसले को चुनौती दी।

1 नवंबर, 2018: सीबीआई द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में बोफोर्स घोटाले की जांच फिर से शुरू किए जाने की मांग को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई 13 साल की देरी से अदालत क्यों आई?

आरोप एवं आलोचना

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  • (१) राजीव गांधी पर सबसे बड़ा आरोप 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले में संलिप्त होने का लगा जिसके कारण उनको प्रधानमन्त्री पद से भी हाथ धोना पड़ा।
  • (२) उन पर दूसरा बड़ा आरोप शाहबानो प्रकरण में लगा जब उन्होने संसद में कांग्रेस के प्रचण्ड बहुमत का दुरुपयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उल्टा विधेयक पारित करवा लिया।
  • (३) १९८४ में हुए सिख विरोधी दंगों के सन्दर्भ में राजीव द्वारा दिए गए वक्तव्य की भी बड़ी आलोचना हुई। राजीव ने कहा था कि "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है।"
  • (४) १९९१ में Schweizer Illustrierte नामक पत्रिका ने राजीव पर स्विस बैंकों में ढाई बिलियन स्विस फ्रैंक काले धन रखने का आरोप लगाया।[8],और यह आरोप भी सत्य साबित हुआ ।
  • (५) १९९२ में टाइम्स ऑफ इण्डिया ने एक रपट प्रकाशित की जिसमें कहा गया था कि सोवियत संघ की गुप्तचर संस्था के जी बी ने राजीव को धन मुहैया कराया था। [9]

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Rajiv Gandhi: एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसने पुरे विश्व को अपना परिवार समझा". Shrima News. मूल से 19 अगस्त 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2022.
  2. "Rajiv Gandhi: एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसने पुरे विश्व को अपना परिवार समझा". Shrima News. मूल से 19 अगस्त 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2022.
  3. "देश में फिर शुरू हुआ बरसों पुराना 'यात्रा' फॉर्मूला, जानिए किस नेता ने कब-कब की शुरुआत".
  4. "Rajiv Gandhi's 'Bharat Yatra' turns out to be more symbolism than substance".
  5. "'Rajiv se Rahul tak' parallel as Bharat Jodo reaches Charminar: 'Papa started Sadbhavana Yatra 32 years ago'".
  6. "Bharat Jodo Yatra: Rahul unfurls national flag in front of Charminar".
  7. "Rajiv Gandhi tries to live down his elitist image, woos the common man".
  8. Jethmalani, Ram (17 December 2010). "Dacoits have looted India". India Today. Retrieved 30 December 2011.
  9. Gurumurthy, S (30 January 2011). "Zero tolerance, secret billions". The New Indian Express. Retrieved 30 December 2011.