राधास्वामी

एक पंथ

राधास्वामी मत, श्री सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज द्वारा संस्थापित एक पन्थ है। 1861 में वसंत पंचमी के दिन पहली बार इसे आम लोगों के लिये जारी किया गया था।[1] स्वामीबाग में इसी राधास्वामी मत का एक मुख्य मंदिर है।

राधास्वामी
Dayal-bagh-12.JPG
स्वामी बाग समाधि
आदर्श वाक्य/ध्येय:
कुल अनुयायी
संस्थापक

सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज

उल्लेखनीय प्रभाव के क्षेत्र
 भारत
धर्म
हिन्दू धर्म
पाठ्य
भाषाएं
हिन्दी,

संस्थापकसंपादित करें

राधास्वामी मत के संस्थापक सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज है। आपका जन्म 25 अगस्त 1818 को पन्नी गली, आगरा में हुआ था। आप बचपन से ही शब्द योग के अभ्यास में लीन रहते थे। इन्होंने किसी को गुरु नहीं किया।[2] 1861 से पूर्व राधास्वामी मत का उपदेश बहुत चुने हुए लोगों को ही दिया जाता था परन्तु राधास्वामी मत के दूसरे आचार्य की प्रार्थना पर स्वामी जी महाराज ने 15 फ़रवरी सन 1861 को बसन्त पंचमी के रोज राधास्वामी मत आम लोगो के लिये जारी कर दिया। राधास्वामी मत की दयालबाग शाखा के वर्तमान आचार्य सत्संगी साहब ( डा प्रेम सरन सत्सन्गी) है। इनका निवास स्थान आगरा में दयालबाग है। राधास्वामी मत की स्वामीबाग शाखा में जहाँ पवित्र समाधि स्थित है, वहाँ वर्तमान में कोई आचार्य नहीं है। राधास्वामी मत की हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा शाखा के वर्तमान आचार्य अगम प्रसाद माथुर है। राधास्वामी मत की ब्यास (पंजाब) शाखा के वर्तमान आचार्य बाबा गुरिंदर सिंह है। इसके अतिरिक्त राधास्वामी मत की भारत वर्ष और विदेशों में अनेक शाखायें और उपशाखायें हैं जिनके आचार्य अलग - अलग हैं।[3]

अवधारणा व मान्यतासंपादित करें

राधास्वामी की पुस्तक संतमत प्रकाश भाग 4 के पेज 189 व 264एक प्रकरण में संकेत दिया गया है कि कबीर जी अकाल पुरुष हैं। और वहाँ सशरीर विराजमान है, निराकार रूप में नहीं। प्रकरण रानी इंदुमति से कबीर जी की वार्ता का है। बताया गया है कि कबीरजी के सतलोक गमन के बाद जब उनकी शिष्या रानी इंदुमति सतलोक गईं तो वहाँ कबीर साहेब की पदवी देखी। तब रानी से कबीर जी से कहा कि यदि आप पहले बता देते कि आप ही अकाल पुरुष हैं तो मै भजन सुमिरन करके परेशान नहीं होती।[4]

राधास्वामी लोक और सृष्टि रचना का वर्णनसंपादित करें

पहले सतपुरुष निराकार था, फिर इजहार (आकार) में आया तो ऊपर के तीन निर्मलमण्डल (सतलोक, अलखलोक, अगमलोक) बन गया तथा प्रकाश तथा मण्डलों का नाद(धुनि) बन गया।[5] ‘‘प्रथम धूंधूकार था। उसमें पुरुष सुन्न समाध में थे। जब कुछ रचना नहीं हुई थी। फिरजब मौज हुई तब शब्द प्रकट हुआ और उससे सब रचना हुई, पहले सतलोक और फिर सतपुरुष की कला से तीन लोक और सब विस्तार हुआ[6]। इन सब लोकों से ऊपर राधास्वामी लोक बताया जाता है। राधास्वामी पंथ में प्रचलित पुस्तको के अनुसार सेठ शिवदयाल सिंह जी का कोई गुरु नहीं था। सेठ शिवदयाल सिंह जी की धर्म पत्नी का नाम राधा जी था जिस कारण सेठ शिवदयाल सिंह जी को राधास्वामी कहा जाने लगा।

समाधिसंपादित करें

दाईं ओर दिया गया चित्र राधास्वामी मत के संस्थापक परम पुरुष पूरन धनी हजूर स्वामी जी महाराज की पवित्र समाधि का है। यह आगरा के स्वामीबाग में स्थित है। पच्चीकारी और सन्गमरमर पर नक्काशी का अद्भुत नमूना है। पूरे विश्व में फैले राधास्वामी मत की स्थापना आगरा में ही हुई थी।[7]स्वामी जी महाराज अपनी प्रिय शिष्या बुक्की में आते थे और सत्संग करते थे, सत्संग के बाद पहले की तरह हुक्का भी पीते थे। ऐसे ही बुक्की जी के द्वारा सत्संग वर्षा चलती रहती थी।

सन्दर्भसंपादित करें

  1. Mishra, Rakesh. "Guru Purnima 2017 पर विशेषः जानिए Radha Soami के गुरुओं के बारे में". Patrika News. अभिगमन तिथि 2021-02-20.[मृत कड़ियाँ]
  2. Sharma, Baldev (2014-04-27). ""Master"-the one who show us the path of GOD......Guru Bina Kon Bataye Baat: जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज". "Master"-the one who show us the path of GOD......Guru Bina Kon Bataye Baat. अभिगमन तिथि 2021-02-20.
  3. Mishra, Rakesh. "Guru Purnima 2017 पर विशेषः जानिए Radha Soami के गुरुओं के बारे में". Patrika News. अभिगमन तिथि 2021-02-20.[मृत कड़ियाँ]
  4. महाराज, सावन सिंह जी (2002). सन्तमत प्रकाश भाग-४. टांडा रोड, जोशी एस्टेट, जालंधर: सरताज प्रिंटिंग प्रेस, टांडा रोड, जोशी एस्टेट, जालंधर. पपृ॰ 189, 264. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-88733-71-7.
  5. जीवन चरित्रा परम संत बाबा जयमल सिंह जी महाराज. सृष्टि की रचना. नई दिल्ली: सावन कृपाल पब्लिकेशन. पपृ॰ 102–103.
  6. सार वचन. सृष्टि की रचना. स्वामी सत्संग सभा, दयालबाग, आगरा:.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  7. "राधा स्वामी समाधि स्थल पर कलश स्थापति, देखिए मनमोहक तस्वीर". Patrika News. अभिगमन तिथि 2021-02-21.