राधिका प्रसन्न मुखर्जी

राधिका प्रसन्न मुखर्जी () एक भाषाविद व बिहार में शिक्षा-अधिकारी थे।

सन १८८२ ई में जब जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने ‘कलकत्ता रिव्यू’ में प्रकाशित अपने लेख में लिखा था कि "जो भाषा हिंदी कहलाती है वह बिहार के नव्वे प्रतिशत लोगों की भाषा नहीं है" तब राधिका प्रसन्न मुखर्जी ने भी ग्रियर्सन के तर्कों का कड़ा प्रतिवाद किया था-

यह कहना गलत है कि ‘प्रेम सागर’ से पहले हिंदी थी ही नहीं... सदियों से बंगाली और हिंदी में काव्य साहित्य के खाने मौजूद हैं। यदि वर्तमान काल में हिंदी ने बंगाली के बराबर उन्नति नहीं की है तो इसका कारण यह है कि चालीस वर्ष से अधिक हुए बंगाली, फारसी से छुटकारा पाकर कचहरियों की भाषा मान ली गयी, परन्तु हिन्दी सरकार के बारम्बार प्रयत्न के बावजूद भी कचहरी से बाहर है|

एक अन्य रोचक ‘विद्वत्ततापूर्ण’ तर्क देते हुए मुखर्जी लिखते हैं कि,

यदि हिंदी साधारण बोलचाल की भाषा से भिन्न है, तो इसमें अचम्भे की क्या बात है? मैं अधिकृत रूप से कह सकता हूँ कि जर्मन, अंग्रेजी तथा इटैलियन भाषाओं के विषय में भी यही बात कही जा सकती है... फिर बिहार के हिन्दुओं की बनारस तथा लखनऊ के इर्द-गिर्द के प्रदेश की भाषा तथा संस्कृति के प्रति श्रद्धा है।