रामगढ़, उत्तराखण्ड
रामगढ़ (Ramgarh) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल ज़िले में स्थित एक बस्ती और हिल स्टेशन है। बहुत से पर्यटकों के लिए यह जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान का द्वार है।[1][2][3]
रामगढ़ Ramgarh | |
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रामगढ़, नैनीताल | |
निर्देशांक: 29°27′N 79°33′E / 29.45°N 79.55°Eनिर्देशांक: 29°27′N 79°33′E / 29.45°N 79.55°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | उत्तराखण्ड |
ज़िला | नैनीताल ज़िला |
ऊँचाई | 1518 मी (4,980 फीट) |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, कुमाऊँनी |
विवरण
संपादित करेंभवाली से भीमताल की ओर कुछ दूर चलने पर बायीं तरफ का रास्ता रामगढ़ की ओर मुड़ जाता है। यह मार्ग सुन्दर है। इस भुवाली - मुक्तेश्वर मोटर-मार्ग कहते हैं। कुछ ही देर में २३०० मीटर की ऊँचाई वाले 'गागर' नामक स्थान पर जब यात्रीगण पहुँचते हैं तो उन्हें हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं। 'गागर' नामक पर्वत क्षेत्र में 'गर्गाचार्य' ने तपस्या की थी, इसीलिए इस स्थान का नाम 'गर्गाचार्य' से अपभ्रंश होकर 'गागर' हो गया। 'गागर' की इस चोटी पर गर्गेश्वर महादेव का एक पुराना मन्दिर है। 'शिवरात्रि' के दिन यहाँ पर शिवभक्तों का एक विशाल मेला लगता है।
'गागर' से मल्ला रामगढ़ केवल ३ कि॰मी॰ की दूरी पर समुद्रतल से १७८९ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नैनीताल से केवल २५ कि॰मी॰ की दूरी पर रामगढ़ के फलों का यह अनोखा क्षेत्र बसा हुआ है। कुमाऊँ क्षेत्र में सबसे अधिक फलों का उत्पादन भुवाली - रामगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में होता है। इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के फल पाये जाते हैं। बर्फ पड़ने के बाद सबसे पहले ग्रीन स्वीट सेब और सबसे बाद में पकने वाला हरा पिछौला सेब होता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में डिलिशियस, गोल्डन किंग, फैनी और जोनाथन जाति के श्रेष्ठ वर्ग के सेब भी होते हैं। आडू यहाँ का सर्वोत्तम फल है। तोतापरी, हिल्सअर्ली और गौला कि का आडू यहाँ बहुत पैदा किया जाता है। इसी तरह खुमानियों की भी मोकपार्क व गौला कि बेहतर ढ़ंग से पैदा की जाती है। पुलम तो यहाँ का विशेष फल हो गया है। ग्रीन गोज जाति के पुलम यहाँ बहुत पैदा किया जाते हैं।
रामगढ़, जहाँ अपने फलों के लिए विख्यात है, वहाँ यह अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमालय का विराट सौन्दर्य यहां से साफ-साफ दिखाई देता है। रामगढ़ की पर्वत चोटी पर जो बंगला है, उसी में एक बार विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर आकर ठहरे थे। उन्होंने यहाँ से जो हिमालय का दृश्य देका तो मुग्ध हो गए और कई दिनों तक हिमालय के दर्शन इृसी स्थान पर बैठकर करते रहे। उनकी याद में बंगला आज भी 'टैगोर टॉप' के नाम से जाना जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु को भी रामगढ़ बहुत पसन्द था। कहते हैं आचार्य नरेन्द्रदेव ने बी अपने 'बौद्ध दर्शन' नामक विख्यात ग्रन्थ को अन्तिम रूप यहीं आकर दिया था। साहित्यकारों को यह स्थान सदैव अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। स्व. महादेवी वर्मा, जो आधुनिक हिन्दी साहित्य की मीरा कहलाती हैं, को तो रामगढ़ भाया कि वे सदैव ग्रीष्म ॠतु में यहीं आकर रहती थीं। उन्होंने अपना एक छोटा सा मकान भी यहाँ बनवा लिया था। आज भी यह भवन रामगढ़-मुक्तेश्वर मोटर मार्ग के बायीं ओर बस स्टेशन के पीछे वाली पहाड़ी पर वृक्षों के बीच देखा जा सकता है। जीवन के अन्तिम दिनों में वे पहाड़ पर नहीं आ सकती थीं। अत: उन्होंने मृत्यु से कुछ पहले इस मकान को बेचा था। परन्तु उनकी आत्मा सदैव इस अंचल में आने के लिए सदैव तत्पर रहती थी। ऐसे ही अनेक ज्ञात और अज्ञात साहित्य - प्रेमी हैं, जिन्हें रामगढ़ प्यारा लगा था और बहुत से ऐसे प्रकृति - प्रेमी हैं जो बिना नाम बताए और बिना अपना परिचय दिए भी इन पहाड़ियों में विचरम करते रहते हैं।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Start and end points of National Highways". मूल से 22 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 April 2009.
- ↑ "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
- ↑ "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994