रमण महर्षि
रमण महर्षि (1879-1950) अद्यतन काल के महान ऋषि और संत थे। उन्होंने आत्म विचार पर बहुत बल दिया। उनका आधुनिक काल में भारत और विदेश में बहुत प्रभाव रहा है।[2][3]
श्री रमण महर्षि | |
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रमण महर्षि | |
जन्म |
वेंकटरमन अय्यर 30 दिसम्बर 1879 तिरुचुली,[1], मद्रास, अब तमिलनाडु, भारत |
मृत्यु |
14 अप्रैल 1950 श्री रमण आश्रम, तिरुवन्नमलै, भारत | (उम्र 70 वर्ष)
धर्म | हिन्दू |
दर्शन | अद्वैत वेदांत |
रमण महर्षि ने अद्वैतवाद पर जोर दिया। उन्होंने उपदेश दिया कि परमानंद की प्राप्ति 'अहम्' को मिटाने तथा अंत:साधना से होती है। रमण ने संस्कृत, मलयालम, एवं तेलुगु भाषाओं में लिखा। बाद में आश्रम ने उनकी रचनाओं का अनुवाद पाश्चात्य भाषाओं में किया।
परिचय
संपादित करेंवकील सुंदरम् अय्यर और अलगंमाल को 30 दिसम्बर 1879 को तिरुचुली, मद्रास में जब द्वितीय पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तो उसका नाम वेंकटरामन रखा गया। रमण की प्रारंभिक शिक्षा तिरुचुली और दिंदिगुल में हुई। उनकी रुचि शिक्षा की अपेक्षा मुष्टियुद्ध व मल्लयुद्ध जैसे खेलों में अधिक थी तथापि धर्म की ओर भी उनका विशेष झुकाव था।
लगभग 1895 ई. में अरुचल (तिरुवन्नमलै) की प्रशंसा सुनकर रामन अरुंचल के प्रति बहुत ही आकृष्ट हुए। वे मानवसमुदाय से कतराकर एकांत में प्रार्थना किया करते। जब उनकी इच्छा अति तीव्र हो गई तो वे तिरुवन्नमलै के लिए रवाना हो गए ओर वहाँ पहुँचने पर शिखासूत्र त्याग कौपीन धारण कर सहस्रस्तंभ कक्ष में तपनिरत हुए। उसी दौरान वे तप करने पठाल लिंग गुफा गए जो चींटियों, छिपकलियों तथा अन्य कीटों से भरी हुई थी। 25 वर्षों तक उन्होंने तप किया। इस बीच दूर और पास के कई भक्त उन्हें घेरे रहते थे। उनकी माता और भाई उनके साथ रहने को आए और पलनीस्वामी, शिवप्रकाश पिल्लै तथा वेंकटरमीर जैसे मित्रों ने उनसे आध्यात्मिक विषयों पर वार्ता की। संस्कृत के महान् विद्वान् गणपति शास्त्री ने उन्हें 'रामनन्' और 'महर्षि' की उपाधियों से विभूषित किया।
1922 में जब रमण की माता का देहांत हो गया तब आश्रम उनकी समाधि के पास ले जाया गया। 1946 में रमण महर्षि की स्वर्ण जयंती मनाई गई। यहाँ महान् विभूतियों का जमघट लगा रहता था। असीसी के संत फ्रांसिस की भाँति रामन सभी प्राणियों से - गाय, कुत्ता, हिरन, गिलहरी, आदि - से प्रेम करते थे।
14 अप्रैल 1950 की रात्रि को आठ बजकर सैंतालिस मिनट पर जब महर्षि रमण महाप्रयाण को प्राप्त हुए, उस समय आकाश में एक तीव्र ज्योति का तारा उदय हुआ एवं अरुणाचल की दिशा में अदृश्य हो गया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जून 2014.
- ↑ Friesen, J. Glenn (2006), Ramana Maharshi: Hindu and non-Hindu Interpretations of a jivanmukta (PDF), मूल (PDF) से 20 जुलाई 2014 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2014
- ↑ Friesen, J. Glenn (2005), Paul Brunton and Ramana Maharshi, मूल से 28 जुलाई 2013 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2014
विविध
संपादित करें- Godman, David (1985). Be As You Are (PDF). Penguin. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-14-019062-7. मूल (PDF) से 29 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2014.
- Venkataramiah, Muranagala (2006), Talks With Sri Ramana Maharshi (PDF), Sri Ramanasramam, मूल से 5 जुलाई 2010 को पुरालेखित (PDF), अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2014
- Alan Edwards (2012), Ramana Maharshi and the Colonial Encounter. Master Thesis, Victoria University of Wellington Archived 2018-09-01 at the वेबैक मशीन
- King, Richard (2002), Orientalism and Religion: Post-Colonial Theory, India and "The Mystic East", Routledge
बाहरी कड़ियाँ
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