राम शरण गौड़ (जन्म: २८ जुलाई १९४२ अलीगढ़) लेखक, प्रशासक व समाजसेवी हैं। उन्होंने दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग सहित कई अन्य विभागों में मह्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए लेखन कार्य जारी रखा। हिन्दी अकादमी, दिल्ली में ९ वर्ष तक सचिव रहे डॉ॰ रामशरण गौड़ की विभिन्न विषयों पर अब तक दर्ज़नों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें हिन्दी भाषा और साहित्य की सेवा के लिये तमिलनाडु हिन्दी अकादमी, केरल हिन्दी अकादमी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। भारत सरकार के संस्कृति मन्त्रालय के अन्तर्गत वरिष्ठ अध्येता के रूप में उन्होंने आधुनिक गीतिकाव्य में जीवनमूल्य विषय पर कार्य किया।

संक्षिप्त परिचय

संपादित करें

२८ जुलाई १९४२ को अलीगढ़ जिले के एक गाँव में जन्मे रामशरण गौड़ ने हिन्दी और समाज शास्त्र से एम॰ए॰ करने के पश्चात् हिन्दी साहित्य से पीएच॰डी॰ की। भारत की राजधानी दिल्ली के समाज कल्याण विभाग में बतौर अधिकारी काम कर चुके डॉ॰ गौड़ समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी रहे हैं। ९ वर्ष तक हिन्दी अकादमी दिल्ली के सचिव रहते हुए अकादमी की पत्रिका इन्द्रप्रस्थ भारती का सम्पादन किया। हिन्दी अकादमी के सचिव पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात् उन्होंने संस्कृति मन्त्रालय (भारत सरकार) के अन्तर्गत वरिष्ठ अध्येता के रूप में "आधुनिक गीतिकाव्य में जीवनमूल्य" विषय पर विशेष शोध कार्य किया।[1] पत्नी की मृत्यु के पश्चात् वे अपने एकमात्र पुत्र अनिल गौड़ के साथ नोएडा में रह रहे हैं।[2]

स्वतन्त्र लेखन के अलावा वे कई स्वयंसेवी, समाजसेवी व साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हैं। उनका साफ कहना हैं कि समाज में एक भ्रम फैला हुआ है कि हिन्दी रोजगार की भाषा नहीं हो सकती। कम्प्यूटर पर हिन्दी में काम करने वाले सॉफ्टवेयर वर्षों पूर्व बनाये गये परन्तु उन्हें उपेक्षित रखा गया। हिन्दी के विकास को लेकर सरकार गम्भीर नहीं है। क्या कारण है कि पिछले पच्चीस वर्षों से किसी को राष्ट्र कवि घोषित नहीं किया गया। उन्हें इस बात की भी चिन्ता है कि हिन्दी की उपेक्षा यदि इसी तरह होती रही तो आगामी कुछ वर्षों बाद हमारी भाषा की स्थिति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।[3]

प्रमुख कृतियाँ

संपादित करें

राम शरण गौड़ ने हिन्दी में करीब दो दर्ज़न पुस्तकें लिखीं। उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं:[2]

  • भारतीय प्राचीन कथा-कोश,
  • ब्रजभाषा शब्दकोश,
  • पौराणिक आख्यान कोश : कृष्ण-काव्य के सन्दर्भ में,
  • मध्यकालीन काव्य-समीक्षा कोश
  • लोक संस्कृति के प्रवर्तक सूर,
  • विनय पत्रिका अन्तर्दर्शन।

हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिये उन्हें श्री आराधक सम्मान, प्रशान्त वेदालंकार सम्मान, प्रकाशवीर शास्त्री सम्मान के अलावा तमिलनाडु व केरल की हिन्दी अकादमियों ने भी सम्मानित किया है।:[2]

  1. "सूर्या संस्थान के ट्रस्टी सदस्य". Archived from the original on 24 दिसंबर 2013. Retrieved 24 दिसम्बर 2013. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  2. "हिन्दी के सहारे चढ़ीं सफलता की सीढ़ियाँ". नवभारत टाइम्स. 14 सितम्बर 2012. Archived from the original on 24 दिसंबर 2013. Retrieved 24 दिसम्बर 2013. {{cite web}}: Check date values in: |date= and |archive-date= (help)
  3. "हिन्दी के सहारे चढ़ीं सफलता की सीढ़ियाँ". नवभारत टाइम्स. 14 सितम्बर 2012. Archived from the original on 24 दिसंबर 2013. Retrieved 24 दिसम्बर 2013. गौड़ कहते हैं कि यह सिर्फ हमारा भ्रम है कि हिंदी रोजगार की भाषा नहीं है। जहां तक कंप्यूटर का सवाल है तो कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के लिए सालों पहले सॉफ्टवेयर बनाए गए थे, लेकिन उन्हें कभी एक्सपोजर नहीं मिल पाया। इसके पीछे वह सत्ता की मंशा पर सवाल खड़ा करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी के विकास को लेकर गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 25 साल से किसी को राष्ट्र कवि घोषित नहीं किया गया। मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर और सोहनलाल द्विवेदी के बाद से भारत में कोई राष्ट्र कवि घोषित नहीं हुआ। गौड़ का कहना है कि हिंदी की उपेक्षा का दौर इसी तरह जारी रहा तो 10 साल बाद हमारी भाषा की और भी बदतर स्थिति हो जाएगी। {{cite web}}: Check date values in: |date= and |archive-date= (help)

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें