रीतिमुक्त कवि

रीतिमुक्त काव्यधारा

रीतिमुक्त कवि वे हैं जिन्होंने न तो लक्षण ग्रंथों की रचना की न ही लक्षण ग्रंथों की रीति से बँधकर अपनी रचनाएँ कीं। इस प्राकर रीतिकालीन कविता के दौर में भी ये लोग परम्परागत शैली से हट कर स्वच्छन्द रूप से रचना करते रहे।[1]

रीतिकाल में एक ओर तो रीति का अनुपालन करने वाले कवि थे जो लक्षणों के अनुसार नख-शिख वर्णन में लगे हुए थे, वहीं इसके विपरीत रीतिमुक्त कवियों ने संस्कृत साहित्य से सुन्दरी के लक्षण न लेकर प्रेम और शृंगार की की अभिव्यक्ति के लौकिक रूप को महत्व दिया जो भारतीय पद्धति में एक नई चीज के रूप में देखा जा सकता है।[2]

रीति मुक्त का सामान्य अर्थ है रिती बंधन परिपाटी से मुक्त रीतिकाल के संदर्भ में रीतिमुक्त काव्यधारा से भी अभिप्राय है कि वह कवि जिन्होंने किसी शास्त्रीय परिपाटी अथवा नियमों में बंद कर या किसी संप्रदाय विशेष में आबद्ध ने होकर रचना कि वे रीतिमुक्त कवि हैं जैसे विद्वानों ने स्वच्छंद काव्यधारा भी कहा स्वच्छंद काव्य के संबंध में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए डॉक्टर मनोहर लाल गौड़ ने लिखा है "कुछ लोगों ने स्वच्छंद धारा शब्द का व्यवहार अंग्रेजी साहित्य की रोमांटिक काव्य धारा के अर्थ में किया जैसा कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने इतिहास में प्रलेखन का तात्पर्य स्वच्छंद प्रेम किस काव्यधारा से है रोमांटिक काव्य प्रवृत्ति से नहीं यह प्रवृत्ति तो अंग्रेजी साहित्य की अपनी है यहां तो उनका कवियों की काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन अभीष्ट है जो हिंदी साहित्य के प्रेमी के कवि हैं और जिनका प्रेम स्वच्छंद है" इसी धारा को स्वच्छंद प्रेम की काव्य धारा लेखक ने कहा है और उसने घनानंद को इस धारा का सर्वश्रेष्ठ कवि माना है

प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ संपादित करें

आलम

आलम इस धारा के प्रमुख कवि हैं। इनकी रचना "आलम केलि" है।

घनानन्द

रीतिमुक्त कवियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि हैं। इनकी रचनाएँ हैं - कृपाकन्द निबन्ध, सुजान हित प्रबन्ध, इश्कलता, प्रीती पावस, पदावली।

बोधा

विरह बारिश, इश्कनामा।

ठाकुर

ठाकुर ठसक, ठाकुर शतक।

द्विजदेव एक अन्य कवि हैं जो रीति मुक्त कवियों की श्रेणी में गिने जाते हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. मिश्र, रामदरश. काव्य गौरव. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन. पृ॰ 15. मूल से 19 जून 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जून 2015.
  2. वत्स, राकेश. प्रेम पथिक परमपरा में चन्द्रकुँवर बर्तवाल की 'मेघनन्दिनी'. वाणी प्रकाशन रीतिमुक्त काव्यधारा. मूल से 19 जून 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जून 2015. |publisher= में 13 स्थान पर line feed character (मदद)