बोधा
बोधा (जन्म: 1767, मृत्यु: 1806) हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन कवि थे। उन्हें विप्रलम्भ (वियोग) शृंगार रस की कविताओं के लिये जाना जाता है। वर्तमान उत्तर प्रदेश में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में जन्मे कवि बोधा का पूरा नाम बुद्धिसेन था। वर्तमान मध्य प्रदेश स्थित तत्कालीन पन्ना रियासत में बुद्धिसेन के कुछ सम्बंधी उच्च पदों पर आसीन थे। इस कारण बोधा को राजकवि का दर्ज़ा प्राप्त था।[1] हिंदी साहित्य का इतिहास नामक हिन्दी ग्रन्थ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बोधा के नीति सम्बन्धी अनेक छन्दों का उल्लेख किया है। नकछेदी तिवारी द्वारा सम्पादित पुस्तक बोधा कवि का इश्कनामा में इनकी शृंगारपरक कविताओं को देखा जा सकता है।
संक्षिप्त परिचय
संपादित करेंआचार्य शुक्ल के अनुसार बोधा एक रसिक कवि थे। पन्ना के राजदरबार में बोधा अक्सर जाया करते थे। राजदरबार में सुबहान (सुभान) नामक वेश्या से इन्हें बेहद प्रेम हो गया। महाराज को जब यह बात पता चली तो उन्होंने बोधा को छह महीने के देशनिकाले की सजा दे दी। वेश्या के वियोग में बोधा ने विरहवारीश नामक पुस्तक लिख डाली। छह महीने बाद राजदरबार में हाजिर हुए तो महाराज ने पूछा - "कहिये कविराज! अकल ठिकाने आयी? इन दिनों कुछ लिखा क्या?" इस पर बोधा ने अपनी पुस्तक विरहवारीश के कुछ कवित्त सुनाये। महाराज ने कहा - "शृंगार की बातें बहुत हो चुकीं अब कुछ नीति की बात बताइये।" इस पर बोधा ने एक छन्द कहा-
हिलि मिलि जानै तासों मिलि के जनावै हेत, हित को न जानै ताको हितू न विसाहिए।
होय मगरूर तापै दूनी मगरूरी करै, लघु ह्वै के चलै तासों लघुता निवाहिए॥
बोधा कवि नीति को निबेरो यही भाँति अहै, आपको सराहै ताहि आपहू सराहिए।
दाता कहा, सूर कहा, सुन्दरी सुजान कहा, आपको न चाहै ताके बाप को न चाहिए॥
महाराज ने बोधा से प्रसन्न होकर कुछ माँगने को कहा। इस पर बोधा के मुख से निकला - "सुभान अल्लाह!" महाराज उनकी हाजिरजवाबी से बहुत खुश हुए और उन्होंने अपनी बेहद खूबसूरत राजनर्तकी (सुबहान) बोधा को उपहार में दे दी। इस प्रकार बोधा के मन की मुराद पूरी हुई।[2]
कृतियाँ
संपादित करें- विरहवारीश - वियोग शृंगार रस की कविताएँ,
- इश्कनामा - शृंगारपरक कविताएँ।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "भारतीय साहित्य का विश्वज्ञान कोश (अंग्रेजी), सम्पादक: अमरेश दत्त पृष्ठ संख्या: 558 अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर 2013". मूल से 5 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 दिसंबर 2013.
- ↑ शुक्ल आचार्य रामचन्द्र, हिंदी साहित्य का इतिहास, पंचम संस्करण: 2007, लोकभारती प्रकाशन, एम. जी. रोड, इलाहाबाद, ISBN: 978-81-8031-201-4, पृष्ठ: 255-257
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- भारतीय साहित्य का विश्वज्ञान कोश (अंग्रेजी में) - गूगल पुस्तक