रीमान-समाकल
गणित की वास्तविक विश्लेषण के रूप में पहचानी जाने वाली शाखा में रीमान समाकलन किसी फलन का किसी अन्तराल में परिभाषित प्रथम निश्चित परिभाषा है। यह परिभाषा बर्नहार्ड रीमान ने दी थी।[1] विभिन्न फलनोम और प्रायोगिक अनुप्रयोगों के लिए रीमान समाकलन कलन की मूलभूत प्रमेय अथवा संख्यात्मक समाकलन के सन्निकटन द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
रीमान समाकलन विभिन्न सैद्धान्तिक उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त है।
अवलोकन
संपादित करेंमाना f अन्तराल [a, b] में धनात्मक वास्तविक-मान फलन है और माना
अन्तराल [a, b] के उपर एवं फलन f से बनने वाले आरेख के नीचे का समतल क्षेत्र है (उपर दायें स्थित चित्र देखें)। हम S का क्षेत्रफल ज्ञात करना चाहते हैं। हमने एक बार इसका मापन किया और क्षेत्रफल को निम्नलिखित रूप में निरुपित करें:
रीमान समाकलन का मूल विचार S का क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए सरलतम सन्निकटनों का उपयोग करना है। अच्छे से अच्छा सन्निकटन लेने से हमारा अर्थ है कि सीमान्त मान में वक्र के अन्तर्गत S के क्षेत्रफल के पूरी तरह से समान है।
ध्यान रहे कि यहाँ f धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है, S की परिभाषा को संशोधित किया जाता है जिससे समाकलन का मान आरेख के अन्दर आने वाले चिह्नित क्षेत्रफल के अनुरूप हो अर्थात x-अक्ष के उपर का क्षेत्रफल x-अक्ष के नीचे नीचे के क्षेत्रफल में से घटाने के तुल्य हो।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ रीमान समाकलन की बर्नहार्ड रीमान ने अपने शोध पत्र "Über die Darstellbarkeit einer Function durch eine trigonometrische Reihe" (त्रिकोणमितीय श्रेणियों के फलन के रूप में निरुपण; उदाहरण के लिए, किसी फलन को त्रिकोणमितीय श्रेणी के रूप में कब प्रदर्शित किया जा सकता है) में प्रस्तावित किया गया ह्ता। यह शोध पत्र गोट्टिंगन विश्वविद्यालय में 1854 में रीमान ने Habilitationsschrift (प्रशिक्षक बनने के लिए योग्यता प्राप्त करने हेतु) के रूप में प्रस्तुत किया था। यह 1868 में प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द रॉयल फिलोसोफिकल सोसाइटी, गौटिंगेन (Abhandlungen der Königlichen Gesellschaft der Wissenschaften zu Göttingen) में प्रकाशित हुआ, संस्करण 13, पृष्ठ 87-132, (यहाँ Archived 2015-03-21 at the वेबैक मशीन पर ऑनलाइन उपलब्ध)। समाकलन के लिए रीमान की परिभाषा के लिए अनुभाग 4 देखें, "Über der Begriff eines bestimmten Integrals und den Umfang seiner Gültigkeit" (निश्चित समाकलन की अवधारणा और इसकी वैधता की सीमा), पृष्ठ 101-103.