कुरुविंद
कुरुविंद ,माणिक या रूबी (ruby) एक रत्न है जो गुलाबी रंग से लेकर रक्तवर्ण तक का होता है। यह अलुमिनियम आक्साइड (खनिज) का विशेष प्रकार है। इसका लाल रंग इसमें क्रोमियम की उपस्थिति के कारण होता है। इसका 'रूबी' नाम लैटिन शब्द रुबेर (ruber) से आया है जिसका अर्थ लाल होता है। चार प्रमुख बहुमूल्य रत्नों में कुरुविन्द भी है; अन्य तीन हैं - सफायर (sapphire), एमराल्ड (emerald), तथा हीरा।
परिचय
संपादित करेंकुरुविंद,माणिक या कुरंड (Corundum) एक मणिभीय खनिज पत्थर है, जो संसार के विभिन्न स्थलों में पाया जाता है। भारत में भी कुरुविंद प्राप्य है। असम की खासी और जैंती पहाड़ियों, बिहार (हज़ारीबाग, सिंहभूम और मानभूम जिलों में), मद्रास (सेलम जिले में), मध्यप्रदेश (पोहरा, भंडारा तथा रीवाँ), उड़ीसा तथा मैसूर प्रदेशों में यह पत्थर मिलता है। मैसूर, मद्रास और कश्मीर में प्राप्त होनेवाली कुरुविंद अधोवर्ती वर्ग का है। इस पत्थर की दो विशेषाएँ हैं, एक तो यह कठोर होता है, दूसरे चमकदार।
सामान्य कुरुविंद में कोई आकर्षक रंग नहीं होता। यह साधारणतया धूसर, भूरा, नीला और काला होता है। कुछ रंगीन कुरु्व्राद विशिष्ट आकर्षक रंगों के होने के कारण रत्न के रूप में, माणिक, नीलम, याकूत आदि नामों से बिकते हैं। थोड़े अपद्रव्यों के कारण इसमें रंग होता है। ये अपद्रव्य धातुओं के आक्साइड, विशेषत: क्रोमियम और लोहे के आक्साइड, होते हैं। कुरुविंद की कठोरता 9 है, जबकि हीरे की कठोरता 10 होती है। इसका विशिष्ट गुरुत्व 3.94 से 4.10 होता है। यह ऐल्यूमिनियम का प्राकृतिक आक्साइड (Al2 O3) है, जिसके मणिभ षट्कोणीय तथा कभी-कभी बेलन या मृदंग की आकृति के होते हैं।
कुरुविंद का इंजीनियरी उद्योगों में तथा अपघर्षकों (abrasives) और शणचक्रों के निर्माण में अधिकतर प्रयोग किया जाता है। पारदर्शक कुरुविंद का प्रयोग बहुमूल्य पत्थर की भाँति होता है। आजकल कुरुविंद का स्थान एक नवीन पदार्थ कार्बोरंडम ने ले लिया है, जो भारत में विदेशों से आयात होता है।
ज्योतिष में माणिक का प्रयोग
संपादित करेंज्योतिष में माणिक का उपयोग सूर्य ग्रह को बलवान करने के लिए किया जाता है।जब किसी कुंडली में सूर्य कमजोर स्थिति में होता है और कारक होता है ऐसे में उसे माणिक की अंगूठी धारण कराई जाती है ।
आयुर्वेद में माणिक का प्रयोग
संपादित करेंआयुर्वेद में माणिक की भस्म उपयोग करके विभिन्न बीमारियों से उपचार के लिए किया जाता है । वर्णचिकित्सा के आधार पर माणिक्य भस्म का प्रयोग, नियमानुसार बनायी गयी माणिक्य-गोलियों के द्वारा किया जाता है। माणिक भस्म की गोलियाँ पीलिया, रक्त प्रवाह की क्षय रोग, दुर्बलता, हर्निया , बुद्धिहीनता, लकवा झादि रोगों को शान्त करती हे ।