लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से १२० कि॰मी॰ तथा संस्कारधानी शिवरीनारायण से ३ कि॰मी॰ की दूरी पर बसे ग्राम खरौद जिला- जांजगीर चाम्पा (छ.ग.) में स्थित है। यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पाँच ललित कला केन्द्रों में से एक हैं और मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार भगवान लक्ष्मण ने एक शिवलिंग की स्थापना की थी, जो की भारत में अद्वितीय और अद्भुत है । इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं । इसकी ख्याति रामेश्वरम शिवलिंग की तरह ही लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है । मान्यताओं के अनुसार अन्य देवी मंदिरों की अपेक्षा जीव हत्या या बलि प्रथा के स्थान पर इस शिवलिंग पर एक लाख चांवल गिन कर सच्ची श्रद्धा से अर्पित की जाए तो स्वयं भगवान लक्ष्मण स्वप्न में दर्शन देते हैं साथ ही भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं और अपने भक्त की रक्षा करते हैं । यद्यपि शिव जी में श्वेत पुष्प अर्पित किया जाता है परंतु लक्ष्मणेश्वर महादेव शिवलिंग में श्वेत पुष्प के साथ-साथ लक्ष्मण जी के नाम से नीलकमल भी अर्पित करना चाहिए, ऐसा करने से मान्यता है की शिव जी पूजन का पूर्ण फल प्रदान करते हैं । साथ ही महादेव के शिवलिंग पर अर्पित एक-एक चांवल के दाने एक निर्जीव प्राणी के बलि स्वरूप हत्या के बराबर मानकर प्राणी रक्षा के कारण शिव जी भी बहुत प्रसन्न होते है और उनका भी विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है ।[1]

लक्षमणेश्वर महादेव मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धतासनातन हिन्दू धर्म
देवताशिवलिंग
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिरायपुर से १२० कि॰मी॰ संस्कारधानी शिवरीनारायण से ३ कि॰मी॰
वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू
निर्माता(जीर्णोद्धारक)रतनपुर के राजा खड्गदेव
स्थापितछठी शताब्दी

यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर ११० फीट लंबा और ४८ फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर ४८ फुट ऊँचा और ३० फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के ऊपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नन्दी मंडप और भोगशाला हैं।

मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अत: इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवी शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें ४४ श्लोक है। चन्द्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियाँ थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इससे पता चलता है कि मंदिर आठवीं शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इस आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं यह

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग

मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ हैं। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दूसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरुष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है।[2]

किंवदंती संपादित करें

मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के छोटे भाई भगवान लक्ष्मण जी के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। इसे लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख छिद्र हैं। लाख छिद्र होने के कारण एक लाख चाँवल चढ़ाने की परंपरा है । लंका विजय के बाद ब्रह्म हत्या से मुक्ति पाने के लिए लक्ष्मण जी, श्री राम के लिए महानदी का जल पूजन कार्य हेतु लेने आये थे । लक्ष्मण जी उस समय रोगग्रस्त हो गए तब उन्होंने भोलेनाथ भगवान शिव जी की आराधना की और यहाँ लक्ष्यलिंग शिवलिंग को स्थापित किया । भगवान लक्ष्मण द्वारा स्थापित किये जाने के कारण लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है । इसमें एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है। इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका सम्बंध है। इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे अक्षय कुंड कहते हैं। इस कुंड में स्नान करने से रोगों से मुक्ति मिलती है । स्वयंभू लक्ष्यलिंग के आस पास वर्तुल योन्याकार जलहरी बनी है। मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। प्रति वर्ष यहाँ महाशिवरात्रि के मेले में शिव की बारात निकाली जाती है। छत्तीसगढ़ में इस नगर की काशी के समान मान्यता है कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असुरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा। यहा खरौद द्दत्तीसगढ़ की काशी है। मान्यताओं के अनुसार यहाँ के शिवलिंग पर एक लाख चांवल गीनकर चढ़ाने से स्वयं लक्ष्मणशक्ति उस धर्मयोगीभक्त की रक्षा करती है । लक्ष्मणेश्वर महादेव का शिवलिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंग की तरह ही छत्तीसगढ़ के भक्तों को दर्शनफल देती है । ऐसा माना जाता है की जो निर्धन व्यक्ति शिव भक्त 12 ज्योतिर्लिंग में से एक भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने में असमर्थ है वो लक्ष्मणेश्वर महादेव में दर्शन कर ले तो उसे काशी विश्वनाथ के समान ही दर्शनफल और आशीर्वाद मिलता है ।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "गुप्त से प्रकाशमान होता शिवरीनारायण". सृजनगाथा. मूल (एचटीएम) से 16 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३१ मार्च २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "छत्तीसगढ़ के मेला और मड़ई". छत्तीसगढ़ न्यूज़. मूल (एचटीएम) से 3 नवंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३१ मार्च २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)