शिवरीनारायण
शिवरीनारायण (Shivrinarayan) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर-चाम्पा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम के तट पर स्थित प्राचीन नगर है।[1][2]
शिवरीनारायण Shivrinarayan | |
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निर्देशांक: 21°44′N 82°35′E / 21.73°N 82.58°Eनिर्देशांक: 21°44′N 82°35′E / 21.73°N 82.58°E | |
देश | भारत9351855039 |
प्रान्त | छत्तीसगढ़ |
ज़िला | जांजगीर-चाम्पा ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 9,707 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, छत्तीसगढ़ी |
विवरण
संपादित करेंशिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण नगर है जो "छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी" के नाम से विख्यात है। यह बिलासपुर से ६४ कि. मी., राजधानी रायपुर से बलौदाबाजार से होकर १२० कि. मी., जांजगीर जिला मुख्यालय से 45 कि. मी., कोरबा जिला मुख्यालय से ११० कि. मी. और रायगढ़ जिला मुख्यालय से सारंगढ़ होकर ११० कि. मी. की दूरी पर अवस्थित है।
सौंदर्य और चतुर्भुजी विष्णु की मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। हर युग में इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है। भगवान श्रीराम और भगवान लक्ष्मण जी ने शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान करके इस घनघोर दंडकारण्य वन में आर्य संस्कृति के बीज प्रस्फुटित किये थे। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए "शबरी-नारायण" नगर बसा है। भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। कदाचित् इसी कारण इसे "गुप्त तीर्थधाम" कहा गया है। याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र में इसका उल्लेख है। भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था। प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं।
प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से जाने वाला यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द रहा है। यहां शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति रही है। छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है। इसे नारायण क्षेत्र या पुरूषोत्तम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र शिवरी नारायण के नाम से जाना जाता है।छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिला मुख्यालय से 45 किमी की दूरी पर मैकल पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य शिवनाथ, जोंक और महानदी के संगम पर स्थित शिवरी नारायण को तीर्थ नगरी प्रयाग जैसी मान्यता मिली है। यहाँ पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध शिवरी नारायण मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम को यहीं पर शबरी ने बेर खिलाये थे अत: शबरी के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर मे इसका नाम बिगाडकर शिवरी नारायण पड गया। यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना प्राचिन मंदिर भी है। पर्यटन की दृष्टी से यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां अत्यंत प्राचीन मन्दिर समूह है। इनमे से कुछ मंदिर निम्नानुसार है:
शिवरीनारायण मंदिर
संपादित करेंइस मंदिर को बडा मंदिर एवं नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। उक्त मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला एवं मुर्तिकला का बेजोड नमूना है। ऎसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा शबर ने करवाया था। ९वीं शताब्दी से लेकर १२वीं शताब्दी तक की प्राचीन मुर्तियो की स्थापना है। मंदिर की परिधि १३६ फीट तथा ऊंचाई ७२ फीट है जिसके ऊपर १० फीट के स्वर्णीम कलश की स्थापना है शायद इसीलिये इस मंदिर का नाम बडा मंदिर भी पडा। सम्पूर्ण मंदिर अत्यन्त सुंदर तथा अलंकृत है जिसमे चारो ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। मंदिर अत्यंत भव्य दिखायी देता है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Inde du Nord - Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Pratiyogita Darpan Archived 2019-07-02 at the वेबैक मशीन," July 2007