लक्ष्मीबाई केलकर
लक्ष्मीबाई केलकर (०६ जुलाई, १९०५ - २७ नवम्बर, १९७८ ) राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका थीं। उन्हें सम्मान से 'मौसी जी' कहते हैं। उनका मूल नाम कमल था।
जीवन परिचय
संपादित करेंलक्ष्मीबाई केलकर का जन्म नागपुर में हुआ था। १४ वर्ष की आयु में उनका विवाह वर्धा के एक विधुर वकील पुरुषोत्तम राव केलकर से हुआ। उनके छः पुत्र हुए। रूढ़िग्रस्त समाज से टक्कर लेकर उन्होंने अपने घर में हरिजन नौकर रखे। गांधीजी की प्रेरणा से उन्होंने घर में चरखा मँगाया। एक बार जब गान्धी जी ने एक सभा में दान की अपील की, तो लक्ष्मीबाई ने अपनी सोने की जंजीर ही दान कर दी।[1]
1932 में उनके पति का देहान्त हो गया। अब अपने बच्चों के साथ बाल विधवा ननद का दायित्व भी उन पर आ गया। लक्ष्मीबाई ने घर के दो कमरे किराये पर उठा दिये। इससे आर्थिक समस्या कुछ हल हुई। इन्हीं दिनों उनके बेटों ने संघ की शाखा पर जाना शुरू किया। उनके विचार और व्यवहार में आये परिवर्तन से लक्ष्मीबाई के मन में संघ के प्रति आकर्षण जगा और उन्होंने संघ के संस्थापक डा॰ हेडगेवार से भेंट की। उन्होंने १९३६ में स्त्रियों के लिए ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक एक नया संगठन प्रारम्भ किया। आगामी दस साल के निरन्तर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रान्तों में विस्तार हुआ।
1945 में राष्ट्र सेविका समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। देश की स्वतन्त्रता एवं विभाजन से एक दिन पूर्व वे कराची में थीं। उन्होंने सेविकाओं से हर परिस्थिति का मुकाबला करने और अपनी पवित्रता बनाये रखने को कहा। उन्होंने हिन्दू परिवारों के सुरक्षित भारत पहुँचने के प्रबन्ध भी किये।
उन्होंने स्त्रियों के लिए जीजाबाई के मातृत्व, अहल्याबाई के कर्तृत्व तथा लक्ष्मीबाई के नेतृत्व को आदर्श मानती थीं। उन्होंने अपने जीवनकाल में बाल मन्दिर, भजन मण्डली, योगाभ्यास केन्द्र, बालिका छात्रावास आदि अनेक प्रकल्प प्रारम्भ किये। वे रामायण पर बहुत सुन्दर प्रवचन देतीं थीं। उनसे होने वाली आय से उन्होंने अनेक स्थानों पर समिति के कार्यालय बनवाये।[2]
२७ नवम्बर, १९७८ को उनका देहान्त हो गया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "6 जुलाई / जन्म-दिवस; नारी जागरण की अग्रदूत: लक्ष्मीबाई केलकर". मूल से 5 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2016.
- ↑ नारी जागरण की अग्रदूत : लक्ष्मीबाई केलकर