लख़मी (अरबी भाषा: اللخميون‎‎, अल-लख़्मीऊन​; अंग्रेज़ी: Lakhmids) या बनू लख़्म​ (अरबी भाषा: بنو لخم) या मुनथ्री (अरबी भाषा: المناذرة‎) प्राचीनकाल में अरब ईसाईयों का एक समुदाय था जो दक्षिणी इराक़ में बसा करते थे और जिन्होनें २६६ ईसवी में अल-हीरा नमक शहर को अपनी राजधानी बनाया। उस युग के अरब कवियों ने इस शहर की तुलना स्वर्ग से की थी और एक अरबी मुहावरे के अनुसार सेहत के लिए 'अल-हीरा में एक दिन बिताना पूरे एक साल का इलाज करवाने से बेहतर है'।[1] अल-हीरा के खँडहर अब फ़ुरात नदी के पश्चिमी किनारे पर आधुनिक इराक़ के कूफ़ा शहर से ३ किमी दक्षिण में मिलते हैं।[2][3]

५६५ ईसवी के इस नक़्शे में लख़मी और उनके पड़ोसी देखे जा सकते हैं

इन्हें भी देखें

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  1. The Cambridge History of Iran Archived 2014-09-22 at the वेबैक मशीन, pp. 597, Cambridge University Press, 1983, ISBN 978-0-521-20092-9, ... an Arabic proverb stated that 'A day and night at Hira are better than a whole year's medicine' ...
  2. The Prophet Muhammad: A Biography, Barnaby Rogerson, pp. 33, Paulist Press, 2003, ISBN 978-1-58768-029-8, ... The Lakhmids had their own capital, the city of al-Hira, which was strategically placed on the junction of the desert ... both the Ghassanids and the Lakhmids were Christian ...
  3. Esat Ayyıldız, “Lahmîlerin Arap Edebiyatına Etkisi”, 2nd International Archeology, Art, History and Cultural Heritage Congress, ed. Kenan Beşaltı (Şanlıurfa: Iksad Yayınevi, 2022), 38-44.