लहर हिन्दी साहित्य की एक पत्रिका थी। इसका प्रकाशन 1957 ई० में आरंभ हुआ था। इसके संपादक थे कवि प्रकाश जैन तथा उनकी पत्नी मनमोहिनी। इस पत्रिका का हिन्दी साहित्य के इतिहास में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक योगदान माना गया है।

प्रकाशन-इतिहास संपादित करें

'लहर' का प्रकाशन 1957 ई० में आरंभ हुआ। यह साहित्यिक मासिक पत्रिका थी।[1] जुलाई 1957 में उसका पहला अंक प्रकाशित हुआ और करीब 17 वर्षों तक यह पत्रिका नियमित प्रकाशित होती रही। 1974 ई० के आसपास आर्थिक तंगी के कारण यह पत्रिका बंद हो गयी।[2] परन्तु, इसके संपादक प्रकाश जैन ने हार नहीं मानी। वे लहर को फिर से निकालने की कोशिश करते रहे। 1980 में लहर का पुनर्प्रकाशन आरंभ हुआ और 1986 तक जारी रहा।

महत्त्व संपादित करें

'लहर' के प्रकाशन के दो दौरों के बीच के लगभग 6 वर्ष छोड़ देने पर लहर की प्रकाशन-अवधि लगभग 25 वर्षों का रहा। इस अवधि में इस पत्रिका ने रचनात्मक श्रेष्ठता का कीर्तिमान स्थापित कर दिया था। डॉ० मैनेजर पांडेय के शब्दों में:

"स्वाधीनता के बाद निकलने वाली किसी दूसरी साहित्यिक लघु पत्रिका का जीवन शायद ही इतना लम्बा हो। इतने लम्बे समय तक वह केवल जीवित नहीं रही। खासतौर से पहले के 16-17 वर्षों में उसका जीवन अत्यन्त सार्थक और प्रभावशाली था। उस समय जहाँ तक प्रकाश की 'लहर' पहुंची उससे अधिक दूर तक 'लहर' का प्रकाश पहुंचा। उस समय के हिन्दी साहित्य के सर्वोत्तम का एक बड़ा हिस्सा लहर के पन्नों पर छपा। 1960 से 70 के बीच के हिन्दी साहित्य का इतिहास 'लहर' को छोड़कर नहीं लिखा जा सकता। 'लहर' को छोड़कर उस काल का जो भी इतिहास लिखा जाएगा वह अधूरा होगा।"[2]

'लहर' पत्रिका इसके संपादक प्रकाश जैन एवं मनमोहिनी जैन के लिए जीवन यापन का भी साधन थी। इसके बावजूद उन्होंने इसकी रचनात्मक श्रेष्ठता के क्षेत्र में कभी कोई समझौता नहीं किया। 25 वर्षों की लंबी अवधि में लहर में प्रायः कोई स्तरहीन रचना नहीं छपी।[3] इसके एक से एक अच्छे विशेषांक निकले। 1957 का कवितांक, 1958 का कहानी अंक, विश्व कविता अंक, राजकमल चौधरी विशेषांक, मुक्तिबोध विशेषांक, नागार्जुन विशेषांक आदि। सुप्रसिद्ध कहानीकार स्वयं प्रकाश के अनुसार:

" 'लहर' हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता का एक स्वर्णिम अध्याय है।... हिन्दी की गम्भीर रचनात्मकता एक इतिहास की तरह 'लहर' के पन्नों पर सुरक्षित है। हिन्दी कविता और हिन्दी कहानी के लम्बे आत्म-संघर्ष का पूरा आलेख 'लहर' के विशेषांकों में महफूज़ है। हिन्दी का कोई भी महत्त्वपूर्ण शोध प्रबन्ध 'लहर' के हवालों बग़ैर पूरा नहीं हो सकता।"[4]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. बृहद् हिन्दी पत्र-पत्रिका कोश, डॉ० सूर्य प्रसाद दीक्षित, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2004, पृष्ठ-307.
  2. शब्द और कर्म, मैनेजर पांडेय, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-1997, पृष्ठ-173.
  3. हमसफरनामा, स्वयं प्रकाश, अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद, पेपरबैक संस्करण-2010, पृष्ठ-101.
  4. हमसफरनामा, स्वयं प्रकाश, अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद, पेपरबैक संस्करण-2010, पृष्ठ-100.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें